Ghaziabad News : निर्भय, निडर, और पराक्रमी भारत माता का वीर सपूत मेजर मोहित शर्मा जिसका नाम सुनकर आतंकवादियों की रूह कांप उठती थी। आतंकवादियों का काल कहे जाने वाले मेजर मोहित शर्मा के शब्दकोश में भय नाम का कोई शब्द ही नहीं था। 'मेरी माटी-मेरा देश' नाम के अभियान के अंतर्गत आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गाजियाबाद में मेजर मोहित शर्मा के घर की मिट्टी लेने आ रहे हैं। जानते हैं कौन हैं मेजर मोहित शर्मा? यूं तो उनके पराक्रम के किस्सों पर पूरी एक किताब लिखी जा सकती है, लेकिन आज हम आपके साथ मेजर शर्मा के उस साहसिक किस्से को साझा करेंगे जिसकी वजह से उन्हें विशिष्ठ पहचान मिली।
गाजियाबाद और दिल्ली में हुई स्कूलिंग
13 अगस्त 1978 को माता सुशीला शर्मा और पिता राजेंद्र प्रसाद शर्मा के घर जन्मे मेजर मोहित शर्मा का बचपन रोहतक, हरियाणा में गुजरा जिसके बाद उनकी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली और गाजियाबाद में हुई। घर में उन्हें सभी प्यार से चिंटू कहकर पुकारते थे। गाजियाबाद में निवास के दौरान उनकी शिक्षा यहीं के दिल्ली पब्लिक स्कूल में हुई थी। जिसके बाद वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने महाराष्ट्र चले गए थे। जहां उन्होंने एनडीए की परीक्षा पास की और एनडीए पाठ्यक्रम की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वर्ष 1998 में भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गए। एनडीए अकादमी में मोहित शर्मा का अपने समय के दौरान प्रतिभाशाली अकादमिक रिकार्ड रहा था। जिसके बाद उन्हें पहली पोस्टिंग मद्रास रेजिमेंट, हैदराबाद में मिली जहां उन्हें पेरा कमांडो की ट्रेनिंग दी गई।
एक मुश्किल मिशन को बनाया कामयाब
साल 2003 में उनको कैप्टन के पद पर पदोन्नत कर उनकी पोस्टिंग कश्मीर के शोपियां में कर दी गई। जहां उनके जीवन की अलसी परीक्षा होनी अभी बाकी थी। कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान, मोहित शर्मा को हिजबुल में घुसपैठ करने का मिशन दिया गया जहां उन्हें उनकी योजनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठा करनी थी। इस मिशन के लिए मोहित ने अपना नाम बदलकर इफ्तिखार भट्ट रख लिया और चेहरे के बाल बढ़ाकर आतंकवादियों का रूप रख लिया। उन्होंने आतंकवादियों की तरह वेशभूषा धारण की और एक दिन इस्लामिक हिजबुल मुजाहिदीन संगठन के दो आतंकवादियों के साथ शामिल होने में कामयाब हो गए।
आतंकियों को ऐसे दिलाया भरोसा
दोनों आतंकवादी हिजबुल मुजाहिद संगठन के लिए काम करते थे। इफ्तिखार भट्ट बने मोहित शर्मा ने दोनों आतंकवादियों को एक कहानी सुनाई उन्होंने बताया कि उनके भाई को भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मार दिया गया है। भाई की मौत का बदला लेने के लिए वह भारतीय सुरक्षाबलों की चौकी पर हमला करना चाहता है। इस काम को करने के लिए इफ्तिखार भट्ट ने दोनों आतंकवादियों से हथियार उपलब्ध कराने के लिए मदद मांगी थी। आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के दोनों आतंकवादियों अबू तोरार और अबू सबजार ने इफ्तिखार भट्ट बने मोहित शर्मा की बात पर विश्वास कर लिया।
आतंकियों के मंसूबे किए नाकाम
मोहित शर्मा ने दोनों आतंकवादियों को यह भी बताया कि वह किस चौकी पर हमला करना चाहता है। इसके बाद अबू तोरार और अबू सबजार के साथ मिलकर इफ्तिखार भट्ट ने ग्रेनेड का इंतजाम किया। इस दौरान इफ्तिखार भट्ट साये की तरह दोनों के साथ रहते थे। और सभी इनपुट भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को देता था। चौकी पर हमले से पहले एक दिन जब दोनों आतंकवादी अबु तोरार और अबु सबजार किसी विषय पर बात कर रहे थे। तभी इफ्तिखार भट्ट बने कैप्टन मोहित शर्मा ने अपनी पिस्टोल निकाली और दोनों को गन पाइंट पर ले लिया। यह देखकर दोनों आतंकवादी बुरी तरह से चौंक गए। इसके बाद मोहित शर्मा ने दोनों को मौत के घाट उतार दिया। इस मिशन के लिए एक बार फिर से मोहित शर्मा को पदोन्नत किया गया और गुप्त मिशन को सफल बनाने के लिए ‘सेना पदक’ से सम्मानित किया गया।
मुठभेड़ में बचाई साथियों की जान
इसके बाद मोहित शर्मा को साल 2008 में कमांडो को ट्रेनिंग देने के लिए बेल्जियम भेजा गया और एक प्रशिक्षक के रूप में रहकर उन्होंने ट्रेनिंग दी। साल 2008 में उन्हें वापस कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर में तैनात किया गया। यहां वे ब्रावो स्ट्राइक टीम का नेतृत्व कर रहे थे। एक दिन कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर में हफरुदा के घने जंगलों में आतंकवादियों से मुठभेड़ हो गई। तीन तरफ से आतंकवादियों द्वारा घिरे अपने दो साथियों की जान बचाते हुए मेजर मोहित शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गए।
मोहित शर्मा को मिला अशोक चक्र
15 अगस्त 2009 को भारत सरकार की तरफ से घोषणा की गई कि मेजर मोहित शर्मा को वीरता के लिए देश का सर्वोच्च शांति पुरस्कार अशोक चक्र (मरणोपरांत) मिला। व 26 जनवरी 2010 को उनकी पत्नी मेजर रिशिमा शर्मा ने भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पुरस्कार प्राप्त किया।