मुलायम सिंह यादव और दादरी का गहरा पॉलिटिकल कनेक्शन, चारों बार संकट में पड़ीं सपा की सरकार

बस यादें रह गईं! मुलायम सिंह यादव और दादरी का गहरा पॉलिटिकल कनेक्शन, चारों बार संकट में पड़ीं सपा की सरकार

मुलायम सिंह यादव और दादरी का गहरा पॉलिटिकल कनेक्शन, चारों बार संकट में पड़ीं सपा की सरकार

Google Image | मुलायम सिंह यादव

Greater Noida : 'धरतीपुत्र' और 'नेताजी' जैसे उपनामों से मशहूर मुलायम सिंह यादव नहीं रहे। उन्होंने सोमवार की सुबह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आखिरी सांस ली है। मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा। एक वक्त ऐसा था जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति के पर्याय बन गए थे। इस सबके बावजूद गौतमबुद्ध नगर जिला हमेशा मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के लिए ऊसर-बंजर ही बना रहा। कभी सपा को इस जिले में कामयाबी नहीं मिल पाई। इसके उलट समाजवादी पार्टी की चारों सरकारें गौतमबुद्ध नगर या यूं कहें दादरी की वजह से झंझावातों में फंसी। पहले सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की तीनों सरकारें और फिर उनके बेटे अखिलेश यादव की सरकार पर गौतमबुद्ध नगर के मुद्दे संकट बनकर आए।

1989 : महेंद्र सिंह भाटी ने मुलायम सिंह का विरोध किया
मुलायम सिंह यादव पहली बार 5 दिसंबर 1989 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त लोक दल में विभाजन हुआ था। एक तरफ मुलायम सिंह यादव और चंद्रशेखर थे तो दूसरी तरफ विश्वनाथ प्रताप सिंह और चौधरी अजीत सिंह खड़े थे। ऐसे में लोक दल के दादरी से तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह भाटी ने मुलायम सिंह यादव की वजह चौधरी अजीत सिंह का साथ दिया। महेंद्र सिंह भाटी का यह विरोध नाकामयाब रहा। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गए। मुलायम सिंह की वह सरकार 24 जून 1991 तक चली। 13 सितंबर 1992 को महेंद्र सिंह भाटी की हत्या कर दी गई। जिसमें बुलंदशहर के विधायक और मुलायम सिंह यादव की पहली सरकार में पंचायतराज मंत्री रहे डीपी यादव का नाम आया। महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के बाद गुर्जर समाज में मुलायम सिंह के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गए। जिन्हें खत्म करने के लिए सपा सुप्रीमो ने सहारनपुर के समाजवादी गुर्जर नेता रामशरण दास को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। हालांकि, इस फैसले का भी सपा को कभी कोई फायदा नहीं मिल पाया था।

5 दिसम्बर 1993 : दादरी में मुलायम सिंह का विरोध हुआ
मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। उन्हें यह मालूम था कि दादरी के तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या को लेकर गुर्जर समाज में उनके प्रति नाराजगी है। उन्होंने इस नाराजगी को दूर करने का निर्णय लिया। वह महेंद्र सिंह भाटी की पुण्यतिथि पर दादरी आए। इस दौरान भीड़ ने उनका विरोध भी किया था। इस सबके बावजूद मुलायम सिंह यादव लगातार दादरी क्षेत्र के लोगों की नाराजगी दूर करने का प्रयास करते रहे। मुलायम सिंह की है सरकार 3 जून 1995 तक चली थी।

29 अगस्त 2003 : इस कार्यकाल में 3 बड़ी घटनाएं हुईं
1. सरकार के खिलाफ 6 महीने आंदोलन चला : मुलायम सिंह यादव तीसरी बार 29 अगस्त 2003 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। वह तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती की सरकार को गिराकर कुर्सी तक पहुंचे थे। मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान गौतमबुद्ध नगर जिले का सृजन किया था। बुलंदशहर जिले से जेवर, दनकौर ब्लॉक काटे गए थे। इसी तरह गाजियाबाद से बिसरख और दादरी ब्लॉक काटकर गौतमबुद्ध नगर में शामिल किए गए थे। मायावती मूल रूप से बादलपुर गांव की रहने वाली हैं, जो उस वक्त गाजियाबाद के दादरी ब्लॉक का गांव हुआ करता था। लिहाजा, मायावती ने अपने गृह जनपद के तौर पर गौतमबुद्ध नगर का सृजन किया था। मुख्यमंत्री बनते ही मुलायम सिंह यादव ने जिला भंग कर दिया। बुलंदशहर और गाजियाबाद के हिस्से वापस दोनों जिलों में मिला दिए गए थे। मुलायम सिंह और उनकी सरकार के खिलाफ गौतमबुद्ध नगर में जन आक्रोश पैदा हो गया था। तमाम विपक्षी दल सरकार के खिलाफ खड़े हो गए। तत्कालीन सांसद अशोक प्रधान, दादरी के तत्कालीन विधायक नवाब सिंह नागर, मायावती की सरकार में राजस्व मंत्री रहे रवि गौतम और हालिया वक्त में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने उस आंदोलन की अगुवाई की थी। तब राजकुमार भाटी देहात मोर्चा में थे। यह सारे नेता दिल्ली जाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुलायम सिंह की शिकायत करने गए थे। एक तरफ लोग सड़कों पर थे तो दूसरी तरफ सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। करीब छह महीने सड़कों पर चले। आंदोलन के बावजूद मुलायम सिंह टस से मस नहीं हुए। अंततः जनवरी 2004 में सरकार सुप्रीम कोर्ट में हार गई। तब मुलायम सिंह यादव को गौतमबुद्ध नगर जिले को दोबारा सृजित करना पड़ा था।

2. निठारी कांड : नोएडा में निठारी गांव के पास सेक्टर-31 की कोठी नंबर डी-5 में 19 लड़कियों की हत्या सुरेंद्र कोली और उसके मालिक मनिंदर सिंह पंढेर ने कर दी थी। इन हत्याओं को मुलायम सिंह यादव के इस शासनकाल के दौरान 8 फरवरी 2005 से 25 अक्टूबर 2006 तक अंजाम दिया गया था। इस नरसंहार कांड को निठारी कांड के नाम से जाना जाता है। यह न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छा गया। जिसके लिए मुलायम सिंह यादव की सरकार को दोषी ठहराया जा रहा था। इन सीरियल किलिंग को लेकर सरकार पर उपेक्षित रवैया बरतने का आरोप लगाया गया।विपक्ष ने मुलायम सिंह और उनकी सरकार को जमकर घेरा था। जब 2007 में विधानसभा चुनाव हुए तो सपा चुनाव हार गई। हार से जुड़े कारणों में निठारी कांड को भी बड़ी वजह माना गया।

3. बझेड़ा में रिलायंस प्रोजेक्ट विवाद : सरकार के आखिरी दिनों में और 2007 के चुनाव से ठीक पहले दादरी के पास बछेड़ा खुर्द गांव में रिलायंस पावर के थर्मल पावर प्रोजेक्ट को लेकर बड़ा बवाल खड़ा हो गया था। गांव में करीब 1000 एकड़ जमीन सरकार ने अधिगृहित करके रिलायंस कंपनी को दे दी थी। किसानों को ₹100 प्रति वर्ग गज की दर से मुआवजा दिया गया था। किसान ₹151 प्रति वर्ग गज की दर से मुआवजा मांग रहे थे। सरकार और किसानों के बीच सहमति नहीं बनी। विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और मामला गोलीकांड तक पहुंच गया था। उस वक्त एक बार फिर दादरी मुलायम सिंह यादव के लिए सिरदर्द बन गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, फिल्म अभिनेता से नेता बने राज बब्बर और देहात मोर्चा के राजकुमार भाटी इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। पूरे साठा चौरासी का इलाका मुलायम सिंह यादव के खिलाफ खड़ा हो गया था। निठारी कांड के साथ-साथ बझेड़ा खुर्द कांड भी मुलायम सिंह यादव की हार में दूसरी बड़ी वजह थी।

अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुआ बिसाहड़ा कांड
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उत्तर प्रदेश में पहली बार सपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी। मुलायम सिंह यादव ने खुद मुख्यमंत्री बनने की बजाय अपने बेटे अखिलेश यादव की ताजपोशी कर दी। समाजवादी पार्टी की इस चौथी सरकार के कार्यकाल में भी दादरी ने बड़ा संकट खड़ा किया। 28 सितंबर 2015 की रात दादरी इलाके के बिसाहड़ा गांव में गोकशी के आरोप में अखलाक नाम के बुजुर्ग की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इसके बाद यह हत्याकांड 'दादरी लिंचिंग केस' के नाम से पूरी दुनिया में कुख्यात हो गया था। तब तक केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर आए थे। पूरे विपक्ष ने समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार पर जोरदार हमले बोले। ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव और उनकी सरकार का बचाव करने के लिए मोर्चा संभाला था। मुलायम सिंह ने बिसाहडा कांड को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने का वक्त मांगा था। जब उन्हें प्रधानमंत्री ने मिलने का समय नहीं दिया तो उन्होंने संसद में भारतीय जनता पार्टी के तीन नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए थे। मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि दादरी कांड को भाजपा के तीन नेताओं ने अंजाम दिया है। हालांकि, उन्होंने इन तीन नेताओं के नाम का भी जाहिर नहीं किए। जब उनसे नाम पूछे गए तो उन्होंने कहा था, "मुझे अगर प्रधानमंत्री मिलने का वक्त देते थे तो उन्हें नाम भी बता देता और षड्यंत्र की पूरी जानकारी भी दे देता।"

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