गौतमबुद्ध नगर कोर्ट के 2 वकील फर्जी जमानत देते पकड़े गए, मुकदमा चलाने का आदेश, अदालत मामला बार काउंसिल भेजेगी

BIG BREAKING : गौतमबुद्ध नगर कोर्ट के 2 वकील फर्जी जमानत देते पकड़े गए, मुकदमा चलाने का आदेश, अदालत मामला बार काउंसिल भेजेगी

गौतमबुद्ध नगर कोर्ट के 2 वकील फर्जी जमानत देते पकड़े गए, मुकदमा चलाने का आदेश, अदालत मामला बार काउंसिल भेजेगी

Tricity Today | गौतमबुद्ध नगर कोर्ट

Greater Noida News : गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय से गुरुवार को बड़ा अजीबोगरीब मामला सामने आया है। विद्युत अधिनियम से जुड़े एक मामले में 2 वकीलों ने अभियुक्तों की फर्जी जमानत देने की कोशिश की। अदालत को शक हुआ तो छानबीन शुरू की गई। पूरा मामला खुलकर सामने आ गया। अब विद्युत अधिनियम के विशेष न्यायाधीश और अपर जिला सत्र न्यायाधीश ने दोनों वकीलों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। साथ ही इनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश (UP Bar Council) को पूरी जानकारी भेजी जा रही है। दोनों वकीलों के रजिस्ट्रेशन कार्ड भी अदालत ने जब्त करके सील कर दिए हैं।

क्या है मामला
जिला न्यायालय से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2018 में नोएडा के थाना सेक्टर-20 पुलिस ने महेश्वर पुत्र लखन के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 244/2018 विद्युत अधिनियम की धारा 138 बी के तहत दर्ज किया था। इस मामले में 21 सितंबर को विशेष न्यायाधीश के सामने जमानत अर्जी दाखिल की गई। अदालत ने जमानत स्वीकार कर ली। आरोपी महेश्वर को 20-20 हजार रुपये के दो पर्सनल बेलबॉण्ड और इतनी ही धनराशि के दो जमानती प्रस्तुत करने का आदेश दिया। महेश्वर की जमानत लेने के लिए दो व्यक्ति कृष्णपाल और नरेश कुमार पुत्रगण परमानंद अदालत के सामने हाजिर हुए। इन दोनों ने अपने जमानत पत्रों में पता गाजियाबाद जिले के मोदीनगर थाना क्षेत्र का ईशाकनगर गांव लिखा था। इन दोनों जमानती ने अदालत को बताया कि वे गौतमबुद्ध नगर में अधिवक्ता हैं और रामेश्वर के रिश्तेदार हैं।

अदालत को शक हो गया
विशेष न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा है कि इन दोनों जमानती के आचरण और व्यक्तव्यों से अदालत को शक हो गया और विश्वास नहीं हुआ। लिहाजा, दोनों उपस्थित जमानती से उनके पहचान पत्र और अधिवक्ता रजिस्ट्रेशन मांगे गए। दोनों तथाकथित व्यक्तियों कृष्णपाल और नरेश कुमार ने अपने-अपने अधिवक्ता रजिस्ट्रेशन अदालत में पेश किए। जमानत पत्रों और दोनों वकीलों के एडवोकेट रजिस्ट्रेशन पर दर्ज नाम, पिता का नाम और पते अलग-अलग पाए गए। मतलब, दोनों वकीलों ने अभियुक्त महेश्वर के जमानत पत्रों पर अपने नाम और पते गलत लिखे थे, लेकिन फोटो सही चस्पा कर रखे थे। इतना ही नहीं इन दोनों वकीलों ने फर्जी खतौनी अभी अदालत में पेश की हैं।

अभियुक्त की जमानत रद्द
वकीलों का यह कृत्य देखकर अदालत आश्चर्यचकित रह गई। अदालत ने अभियुक्त महेश्वर के  प्रतिभू पत्र, बंध पत्र और शपथ पत्र फर्जी मानते हुए निरस्त कर दिए हैं। महेश्वर का वारंट बनाकर जिला जेल भेज दिया है। उसकी जमानत भी रद्द कर दी गई है।

अदालत ने दुख जाहिर किया
अदालत ने अपने आदेश में लिखा है, "दोनों वकीलों ने जमानती बनकर न्यायालय के साथ छल करने का प्रयास किया है। वकालत समाज सेवा और जनसामान्य के हित व अधिकारों को सुरक्षित करने का व्यवसाय है। साथ ही वकालत ज्ञान से परिपूर्ण सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय में से एक है। अधिवक्तागण के न्यायालय में ही चल करने का प्रयास जैसा आचरण न केवल समाज को हानि पहुंचाता है बल्कि जन सामान्य के विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है।"

वकीलों पर होगी कार्रवाई
विशेष न्यायाधीश ने आदेश दिया है, "वकीलों ने अदालत के साथ छल करने का प्रयास किया है। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 205 के तहत जुर्म है। इसमें 3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 के तहत परिवाद योजित किया जाए। न्यायालय के प्रस्तुतकार हरकेश कुमार को आदेशित किया जाता है कि वह वकीलों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में परिवाद दाखिल करें।" अदालत ने मामले के लिपिक कुमार गौरव को आदेश दिया है कि वह वकीलों के रजिस्ट्रेशन कार्ड सील बंद लिफाफे में सुरक्षित रखेंगे।

अभियुक्त का वकील भी शामिल
विशेष न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा है, "महेश्वर के योग्य अधिवक्ता ने भी स्वयं न्यायालय में कई बार यह दोहराया कि वह अभियुक्त और दोनों जमानती को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। इस प्रकार से वह भी इस छल के प्रयास में भागीदार हैं। लिहाजा, तीनों वकीलों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को सूचित किया जाए।" कुल मिलाकर यह पूरा मामला गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय में चर्चा का विषय बना हुआ है। मुद्दे पर बार एसोसिएशन के चेयरमैन एडवोकेट मनोज भाटी से बात की गई। उन्होंने फिलहाल कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

(हम भी माननीय अदालत की तरह वकालत के पेशे को पवित्र और सामाजिक हित में मांनते हैं। इस महत्वपूर्ण बिंदु को ध्यान में रखते हुए तीनों अधिवक्ताओं के नाम समाचार में प्रकाशित नहीं किए गए हैं।)

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