इन कॉलोनियों को प्राधिकरण की बिलजी, सीवर लाइनों और मुख्य सड़कों से जोड़ा जा सकेगा
इन अवैध कालोनियों को रेगुलराइज करने से प्राधिकरण को अच्छा-खासा फंड मिल सकता है
रेगुलराइज करके शमन शुल्क और डेवलपमेंट चार्ज के रूप में बड़ी आमदनी हो सकती है
भू-माफिया किस्म के लोग अवैध कालोनियां बसाकर आम आदमी की गाढ़ी कमाई लूट लेते हैं
इन अवैध कॉलोनियों से एक और बड़ा खतरा ग्रेटर नोएडा शहर के नियोजित विकास को है
शहर के विकास में एक बड़ी कमी लोअर वर्किंग क्लास के लिए अच्छी आवासीय सुविधाएं नहीं होना है
अगर इन कॉलोनियों को रेगुलराइज कर दिया जाएगा तो यह तबका राहत की सांस लेगा
Greater Noida News : उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी गुरुवार को ग्रेटर नोएडा में थे। वह 2 दिवसीय दौरे पर गौतमबुद्ध नगर आए हैं। गुरुवार की सुबह नोएडा विकास प्राधिकरण में अफसरों के साथ बैठक की। शाम को इसी तरह की बैठक ग्रेटर नोएडा में हुई। बैठक के दौरान शहर में बढ़ रहे अवैध कॉलोनाइजेशन का मुद्दा उठा। जिस पर ग्रेटर नोएडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुरेंद्र कुमार सिंह ने मंत्री के सामने बड़ा प्रस्ताव रखा है। सीईओ ने कहा, "अवैध रूप से बन चुकी कॉलोनियों को नियमित करने के लिए शमन नीति बनाई जानी चाहिए।" इस पर मंत्री ने विचार करने की बात कही है।
सीईओ ने रखा यह प्रस्ताव
सीईओ ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में अवैध रूप से बन चुकीं कॉलोनियों के लिए शमन नीति लागू करने की सिफारिश की है। जिसके तहत शुल्क लेकर इन कॉलोनियों को रेगुलराइज कर दिया जाएगा। सीईओ ने कहा कि इससे अवैध कॉलोनियों में बने घरों की गुणवत्ता की परख हो जाएगी। प्राधिकरण को भी आमदनी हो जाएगी। मुख्य कार्यपालक अधिकारी के प्रस्ताव पर औद्योगिक विकास मंत्री ने विचार करने की बात कही है। उम्मीद है कि जल्दी ही ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण शमन नीति बनाने के लिए अध्ययन शुरू करेगा।
इस नीति से होंगे कई बड़े फायदे 1. प्राधिकरण को आमदनी होगी : ग्रेटर नोएडा के तमाम गांवों के आसपास बहुत तेजी से अवैध कॉलोनी बसाई जा रही हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान सबसे ज्यादा अवैध कॉलोनी बसी हैं। भू-माफिया और बिल्डर किस्म के लोग इन अवैध कॉलोनियों के जरिए करोड़ों रुपए कमा रहे हैं। इससे शहर में अनियोजित विकास बढ़ रहा है। अवैध कॉलोनियों में सीवर, बिजली, पानी, सड़क और नालियों से जुड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं। एक तरह से स्लम बस्तियां तेजी से आकार ले रही हैं। इन कॉलोनियों को रेगुलराइज कर दिया जाए और बदले में शमन शुल्क और विकास शुल्क प्राधिकरण ले। इन कॉलोनियों को प्राधिकरण की बिलजी, सीवर लाइनों और मुख्य सड़कों से जोड़ा जा सकेगा। यहां रहने वाले लोगों को भी अच्छी मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी।
2. प्राधिकरण के भारी भरकम कर्ज को उतारने में मदद मिलेगी : ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण पर इस वक्त 6,000 करोड़ रुपए कर्ज है। रोजाना करीब 80 लाख रुपए ब्याज के रूप में चुकाने पड़ रहे हैं। इन अवैध कालोनियों को रेगुलराइज करने से प्राधिकरण को अच्छा-खासा फंड मिल सकता है। प्राधिकरण की आमदनी का एकमात्र जरिया भूमि आवंटन है। अवैध कालोनियों को रेगुलराइज करके शमन शुल्क और डेवलपमेंट चार्ज के रूप में बड़ी आमदनी हो सकती है। जिससे प्राधिकरण के कर्ज को उतारने में बड़ी मदद मिलेगी।
3. अवैध और आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण होगा : यह अवैध कॉलोनाइजेशन शहर की कानून-व्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा है। इन कॉलोनियों के खिलाफ लगातार शिकायतें होती हैं। जिन पर पुलिस, प्रशासन और विकास प्राधिकरण को संज्ञान लेना पड़ता है। अभी प्राधिकरण के पास इन्हें तोड़ने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जब प्राधिकरण का अमला इस तरह की अवैध कॉलोनियों को ध्वस्त करने पहुंचता है तो कानून-व्यवस्था संकट में पड़ जाती है। दूसरी ओर भू-माफिया किस्म के लोग अवैध कालोनियां बसाकर आम आदमी की गाढ़ी कमाई लूट लेते हैं। उन पर तमाम तरह की कार्रवाई करने के बावजूद ठगी के शिकार परिवारों को कोई राहत नहीं मिलती है। ध्वस्तीकरण से इन परिवारों को बड़ी आर्थिक चोट पहुंचती है। अगर अवैध कॉलोनियों को रेगुलराइज किया जाएगा तो इनमें रहने वाले परिवारों को बड़ी राहत मिल जाएगी।
4. अनियोजित विकास को रोकने में कामयाबी मिलेगी : इन अवैध कॉलोनियों से एक और बड़ा खतरा ग्रेटर नोएडा शहर के नियोजित विकास को है। जगह-जगह बड़े पैमाने पर इन कॉलोनियों की शक्ल में स्लम बस्तियां पनप रही हैं। जिन कॉलोनियों में परिवार रहने लगे हैं, उन्हें हटाना आसान बात नहीं है। इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से प्राधिकरण पर मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है। इस तरह की कॉलोनियों को रेगुलराइज करके इस झंझट से भी मुक्ति मिल जाएगी।
5. लोवर वर्किंग क्लास को मिलेगा वैध आशियाना : अगर सीईओ यह नीति लागू करवाने में कामयाब हो जाते हैं तो एक बड़े तबके को बड़ा लाभ मिल सकता है। शहर के विकास में एक बड़ी कमी लोअर वर्किंग क्लास के लिए अच्छी आवासीय सुविधाएं नहीं होना है। यह मुद्दा रह रहकर उठता रहता है। सही मायनों में फैक्ट्रियों, कंपनियों और बाजारों में काम करने वाले लोग इन अवैध कॉलोनियों में रह रहे हैं। शहर के विकास में इसी वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन यही सबसे ज्यादा उपेक्षित है। दरअसल, पिछले डेढ़-दो दशक के दौरान शहर की ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं में इस तबके को कोई जगह नहीं मिल पाई है। इन्हें शहर में रहकर रोजगार और काम धंधे करने हैं। लिहाजा, रहने के लिए छत तो चाहिए। इसी मजबूरी का फायदा भू-माफिया और अवैध बिल्डरों ने उठाया है। अगर इन कॉलोनियों को रेगुलराइज कर दिया जाएगा तो यह तबका राहत की सांस लेगा।