बहुत लंबा है इस रेस का इतिहास, ये हैं दुनिया की सबसे पुरानी रेसिंग बाइक, अब तक कोई नहीं तोड़ पाया इस राइडर का रिकॉर्ड

Indian MotoGP : बहुत लंबा है इस रेस का इतिहास, ये हैं दुनिया की सबसे पुरानी रेसिंग बाइक, अब तक कोई नहीं तोड़ पाया इस राइडर का रिकॉर्ड

बहुत लंबा है इस रेस का इतिहास, ये हैं दुनिया की सबसे पुरानी रेसिंग बाइक, अब तक कोई नहीं तोड़ पाया इस राइडर का रिकॉर्ड

Tricity Today | Symbolic

Greater Noida News : ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर 24 सितंबर को पहली इंडियन मोटो जीपी (Indian MotoGP) बाइक रेसिंग होगी। जिसमें पूरी दुनिया के टॉप बाइक रेसर हिस्सा लेंगे। यह स्पर्धा बहुत पुरानी है। आखिर इसका आयोजन क्यों किया जाता है? दुनिया का सबसे सफल बाइक रेसर कौन है? कैसे इस प्रतियोगिता के नियम निर्धारित होते हैं? नियम बदलने से कैसे तकनीक और खेल बदल जाता है? इस रेस की बदौलत भारत दुनिया के उन चुनिंदा 20 मुल्कों में शामिल हो जाएगा, जहां मोटो जीपी रेसिंग होती हैं। इतना ही नहीं भारत का इकलौता बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट (Buddh International Circuit) दुनिया का एकमात्र रेसिंग ट्रैक बन जाएगा, जिस पर एफ वन रेस और मोटो जीपी रेस हो सकती हैं।

बहुत पुराना है ग्रांड प्रिक्स मोटरसाइकिल रेसिंग का इतिहास
ग्रांड प्रिक्स मोटरसाइकिल रेसिंग फेडरेशन इंटरनेशनेल डी मोटोसाइक्लिज्म (एफआईएम) का स्वीकृत आयोजन है। यह सड़क सर्किट पर आयोजित मोटरसाइकिल रोड रेसिंग कार्यक्रमों की प्रमुख श्रृंखला है। हमारी दुनिया में बीसवीं सदी की शुरुआत से ही स्वतंत्र मोटरसाइकिल रेसिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती रही हैं। उस वक्त बड़े राष्ट्रीय आयोजनों को ग्रैंड प्रिक्स का नाम दिया जाता था। साल 1949 में मोटरसाइकिल खेल के लिए अंतरराष्ट्रीय शासी निकाय के रूप में फेडरेशन इंटरनेशनेल डी मोटोसाइक्लिज्म की स्थापना की गई। इस संस्था ने नियमों और विनियम बनाए। यह दुनिया की सबसे पुरानी स्थापित मोटरस्पोर्ट विश्व चैंपियनशिप है।

सिंग के मकसद से बनाई जाती हैं खास मोटर साइकिलें
ग्रांड प्रिक्स मोटरसाइकिलें रेसिंग के उद्देश्य से विशेष रूप से तैयार की जाती हैं, जो आम जनता के खरीदने के लिए उपलब्ध नहीं हैं। सार्वजनिक सड़कों पर कानूनी रूप से चलाई नहीं जा सकती हैं। यह रेसिंग की विभिन्न श्रेणियों जैसे सुपरबाइक वर्ल्ड चैंपियनशिप और आइल ऑफ मैन टीटी रेस से अलग हैं। इन रेसों में जनता के लिए सड़क पर चलने वाली मोटरसाइकिलों के संशोधित संस्करण होते हैं। मौजूदा रेसिंग बाइक वर्ष 2002 से मोटोजीपी के रूप में चलाई जा रही हैं। जब फोर-स्ट्रोक युग शुरू हुआ तो यह बाइक सामने आईं। इससे पहले सबसे बड़ी बाइक 500 सीसी वाली थीं, जो अभी दोनों आधिकारिक विश्व चैम्पियनशिप के लिए उपयोग में लाई जाती हैं।

अभी दुनिया भर में चार हिस्सों में होती है बाइक रेसिंग
मोटरसाइकिल चैंपियनशिप को वर्तमान में चार वर्गों में विभाजित किया गया है। इनमें सबसे ऊपर मोटोजीपी है। इसके बाद मोटो-2, मोटो-3 और मोटो-ई हैं। पहले तीन वर्ग की रेसिंग में फोर-स्ट्रोक इंजन का उपयोग किया जाता है। जबकि मोटो-ई वर्ग में इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल का उपयोग होता है। यह भविष्य की मोटरसाइकिलों को ध्यान में रखकर रेसिंग होती है।

ये हैं दुनिया के तीन सबसे बड़े बाइक रेसिंग राइडर
ग्रांड प्रिक्स के इतिहास में सबसे सफल राइडर जियाकोमो एगोस्टिनी है, जिसने 15 खिताब और 122 रेस जीती हैं। शीर्ष श्रृंखला में एगोस्टिनी ने आठ खिताब जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। उसके बाद वैलेंटिनो रॉसी ने सात ख़िताब हासिल किए हैं। अभी मोटो जीपी के सक्रिय राइडर मार्क मार्केज़ छह खिताब जीतकर दुनिया के तीसरे राइडर हैं। वर्ष 2020 तक रॉसी के पास 89 सबसे अधिक टॉप-फ़्लाइट रेस जीतने का रिकॉर्ड है।

ये चार संस्थाएं करती हैं वर्ल्ड मोटोजीपी को कंट्रोल
एफआईएम रोड रेसिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप ग्रांड प्रिक्स पहली बार 1949 में फेडरेशन इंटरनेशनेल डी मोटोसाइक्लिज्म ने आयोजित की थी। अब इसके वाणिज्यिक अधिकार डोर्ना स्पोर्ट्स के पास हैं। डोर्ना स्पोर्ट्स से ही भारतीय कंपनी ने इंडियन मोटोजीपी आयोजित करने के लिए लाइसेंस हासिल किया है। एफआईएम खेल को मंजूरी देने वाली संस्था है। टीमों का प्रतिनिधित्व इंटरनेशनल रोड रेसिंग टीम्स एसोसिएशन (आईआरटीए) और निर्माताओं का प्रतिनिधित्व मोटरसाइकिल स्पोर्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एमएसएमए) करती है। नियमों और विनियमों में बदलाव का निर्णय यही चार संस्थाएं करती हैं। तकनीकी संशोधनों के मामलों में एमएसएमए अपने सदस्यों के बीच सर्वसम्मति से बदलावों को एकतरफा लागू कर सकता है या वीटो कर सकता है। इन चार संस्थाओं को मिलाकर ग्रांड प्रिक्स कमीशन बनता है।

कुछ इस तरह बढ़ती गई मोटरसाइकिलों की ताकत
परंपरागत रूप से प्रत्येक आयोजन में इंजन के आकार के आधार पर मोटरसाइकिलों की श्रेणी तय की जाती हैं। एक वर्ग के लिए कई दौड़ होती रही हैं। इनमें 50 सीसी, 80 सीसी, 125 सीसी, 250 सीसी, 350 सीसी, 500 सीसी और 750 सीसी सोलो मशीनों की श्रेणियां मौजूद थीं। 1950 के दशक तक और 1960 के दशक के अधिकांश समय तक चार-स्ट्रोक इंजन सभी वर्गों पर हावी रहे। 1960 के दशक में इंजन का डिज़ाइन बदला और प्रौद्योगिकी में तेजी प्रगति हुई। लिहाजा, दो-स्ट्रोक इंजन छोटी कैटेगरी में जड़ें जमाने लगे। 1969 में एफआईएम ने नियमों का हवाला दिया। जिसमें छोटे पिस्टन और उच्च गति वाले सिलेंडरों व गियर की बहुलता आ गई। सभी श्रेणियों को छह गियर और अधिकतर दो सिलेंडर (350 सीसी और 500 सीसी) तक सीमित करने वाले नए नियम लाए गए।

दुनिया की टॉप बाइक निर्माता कंपनियों को झटका लगा
नियमों में बदलाव के कारण पहले से अत्यधिक सफल होंडा, सुजुकी और यामाहा जैसी टीम खेल से बाहर हो गईं। जिससे अगले कई वर्षों के लिए परिणाम तालिका बदल गई। एमवी अगस्ता प्रभावी रूप से 1973 तक खेल में एकमात्र टीम बची थी। सुज़ुकी 1974 में नए दो-स्ट्रोक डिज़ाइन के साथ वापस आई। इस समय तक सभी वर्गों में दो-स्ट्रोक ने चार-स्ट्रोक वाले इंजनों की जगह ले ली थी। वर्ष 1979 में होंडा ने जीपी रेसिंग में अपनी वापसी की। कंपनी ने एनआर-500 के साथ फोर-स्ट्रोक वाली शीर्ष श्रेणी में वापस लाने का प्रयास किया, लेकिन यह परियोजना विफल रही और 1983 में होंडा भी टू-स्ट्रोक 500 सीसी लेकर आई। परिणाम होंडा के पक्ष में आए। पहले चैंपियनशिप में 1962 से 1983 तक 50 सीसी की बाइक शमिल होती थीं। बाद में 1984 से 1989 तक इसे 80 सीसी वर्ग में बदल दिया गया। मुख्य रूप से स्पेनिश और इतालवी निर्माताओं के प्रभुत्व के बाद इस वर्ग को 1990 सीज़न के लिए हटा दिया गया था। इसमें 1949 से 1982 तक 350 सीसी क्लास और 1977 से 1979 तक 750 सीसी क्लास शामिल की गई थी। 1990 के दशक में साइडकार वाली बैंकों को विश्व चैंपियनशिप स्पर्धाओं से हटा दिया गया था।

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