सीईओ को खत लिखकर बताया चपरासी, बाबू और अफसर हैं रिश्वतखोर

ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के ठेकेदारों ने खोला मोर्चा : सीईओ को खत लिखकर बताया चपरासी, बाबू और अफसर हैं रिश्वतखोर

सीईओ को खत लिखकर बताया चपरासी, बाबू और अफसर हैं रिश्वतखोर

Tricity Today | Greater Noida Authority

Greater Noida Authority : ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के निर्माण कार्याें में लगे ठेकेदारों की एसोसिएशन ने अथॉरिटी के वित्त विभाग और तकनीकी सेल के अधिकारियों पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। इस मामले को लेकर ठेकेदारों की एसोसिएशन ने एक शिकायत पत्र ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की सीईओ ऋतु महेश्वरी को भेजा है। ठेकेदारों का कहना है कि प्राधिकरण में टेंडर डालने के बाद तकनीकी विभाग से पहले वित्त विभाग निविदा की जांच करता हैं। वहां फाइल भेजी जाती है। वित्त विभाग में ठेकेदारों से कुल ठेके की रकम का हिसाब लगाकर रिश्वत ली जाती है। पहले बाबू रिश्वत लेता है, इसके बाद डीजीएम लेती हैं। 

डीजीएम ने तबादला रुकवा लिया, भ्रष्टाचार से विभाग का बुरा हाल
ठेकेदारों की एसोसिएशन का आरोप है कि यदि घूस नहीं दी जाती है तो टेंडर को छोटी-मोटी कमी बताकर निरस्त करने की संस्तुति कर दी जाती है। अथॉरिटी के फाईनेंस विभाग से सभी ठेकेदार परेशान हैं। ठेकेदार यूनियन के सदस्य निरंजन नागर ने बताया कि फाइनेंस विभाग में काम करने वाली डीजीएम का तबादला दूसरी जगह हो चुका है, लेकिन शासन में जुगाड़बाजी लगाकर डीजीएम अपना तबादला रूकवा लाई हैं। उन्होंने पूरे विभाग में खुलेआम भ्रष्टाचार फैला रखा है।

काम यहां और वेतन दूसरी जगह से ले रही हैं डीजीएम
नागर का कहना है, "मजेदार बात यह है कि डीजीएम काम ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में करती हैं और वेतन वहां से ले रही हैं, जहां शासन ने उनका तबादला किया था। इस तरह का खेल ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में चल रहा है। आखिर सवाल यह उठता है कि ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में जमे रहने की क्या मजबूरी है?" ठेकेदार यूनियन ने बैठक करने के बाद सीईओ ऋतु महेश्वरी को पत्र भेजकर शिकायत की है। आरोप लगाया है कि निविदा एक जगह स्वीकार की जाती है और वहीं दूसरी जगह निरस्त कर दी जाती है। उन्होंने बताया कि इन सभी आरोपों के सभी साक्ष्य उपलब्ध हैं। जांच में सहयोग करेंगे। भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।

300 दिनों में टेंडर पास कर रहे अथॉरिटी के फाइनेंस और टेक्निकल डिपार्टमेंट
ठेकेदारों ने सीईओ से मांग की है कि टेंडर डालने के बाद टेंडर प्रक्रिया का निराकरण एक ही समय और एक ही स्थान पर किया जाए। यह एक तय समय सीमा में किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया 90 दिन में पूरी कर ली जाए, लेकिन एक ही टेंडर को पास करने में 300 दिन तक लगा देते हैं। टेंडर डालने के उपरांत एनआईटी की जांच तकनीकी विभाग पर आधारित थी, लेकिन बाद में फाइनेंस स्तर तक जांच के लिए भेजे जाने लगे हैं। टेंडर प्रक्रिया में पूर्व में ऐसा कुछ नहीं था। फाइनेंस को फाईल क्यों भेजी जाती है? यदि फाईनेंस विभाग में डीजीएम से लेकर बाबू तक को पैसा नहीं दिए जाते है तो टेंडर को फेल का दिया जाता है। ठेकेदारों का उत्पीड़न किया जा रहा है। जबकि एनआईटी के नियमानुसार टेंडर 90 दिन में पास हो जाने चाहिएं। जिससे ठेकेदार निर्माण कार्य तय समय से शुरू करके पूरा कर सके। ठेकेदार एसोसिएशन ग्रेटर नोएडा यूनिट ने सीईओ से मांग की है कि ठेकेदारों का घूस लेने के बावजूद भी उत्पीडन करने वाले फाईनेंस और प्रॉजेक्ट विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। 

"टेक्निकल डिपार्टमेंट का तो चपरासी भी घूस लिए बिना नहीं चलता"
ठेकेदारों का आरोप है कि अथॉरिटी के तकनीकी विभाग में भी रिश्वत का बहुत बोला-बाला है। तकनीकी विभाग में तो चपरासी से लेकर बाबू, इंजीनियर और तकनीकी सेल के प्रभारी ठेकेदारों से कुल धनराशी का ढाई प्रतिशत अलग-अलग ले लेते हैं। उसके बाद काम शुरू होता है। कई बार तो काम होने से पहले घूस लेकर भी तकनीकी विभाग के प्रभारी फाईलों को लटकाकर रखते हैं। जिस ठेकेदार के टेंडर में सभी पेपर लगे होते हैं, उस टेंडर में भी कोई न कोई छोटी-मोटी गलती बताकर घूस वसूली जाती है। घूस लेने के बाद गलती ठीक हो जाती है। ठेकेदार निरंजन नागर ने डीजीएम फाईनेंस और निविदा सेल के प्रभारी से मुक्ति दिलाने की मांग सीईओ से की है।

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