एक बाप की जिद के आगे गुरुग्राम पुलिस को भी झुकना पड़ा

बेटे को न्याय दिलाने के लिए पिता ने खुद इकठ्ठा किये सबूत : एक बाप की जिद के आगे गुरुग्राम पुलिस को भी झुकना पड़ा

एक बाप की जिद के आगे गुरुग्राम पुलिस को भी झुकना पड़ा

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Gurugram News : कहते हैं, बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए पिता खून पसीना एक कर देता है, लेकिन जान से भी प्यारे बच्चे को अगर कोई मार दे तो पिता पीछे कैसे हट सकता है। ऐसा ही एक मामला फरीदाबाद से सामने आया है, जिसमें पिता की ज़िद ने पुलिस को अपने आगे झुका दिया। उसके बाद पुलिस को 8 साल पुराने मामले को न केवल दोबारा खोलना पड़ा, बल्कि आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करनी पड़ी। 

क्या है पूरा मामला 
जानकारी के मुताबिक, 8 साल पहले 2015 में 15 वर्षीय एक छात्र को एक कार ने कुचल दिया था। हादसे के बाद वाहन चालक मौके से फरार हो गया था। छात्रा ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। घटना के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था, लेकिन पुलिस ने हिट एंड मामले की जांच में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। सबूत न जुटा पाने के बाद पुलिस ने मामले को अनट्रेस कहकर बंद कर दिया। इससे दुखी पिता ने खुद ही अपने बेटे को इंसाफ दिलाने का फैसला कर लिया। पिता ने बेटे की जान लेने वाले आरोपी को न्याय के कटघरे में लाने के लिए टूटे हुए साइड मिरर की मदद से खुद ही मामले की जांच शुरू कर दी। 15 साल के बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए पिता ने खुद ही सबूत जुटाए और उन्हें कोर्ट में पेश किया है। 

आठ साल तक जुटाए सबूत 
पिता ने सारे सबूत को इकट्ठा करने के लिए कई वर्कशॉप और सर्विस सेंटर का दौरा किया। उन्होंने यह चेक किया कि क्या कोई कार साइड मिरर ठीक कराने के लिए आई थी। मैकेनिक ने पिता की पहचान में मदद की और बताया कि साइड मिरर मारुति स्विफ्ट कार की है। बस फिर क्या था पिता ने ऐसी स्विफ्ट कार को ढूंढना शुरू कर दिया, जिसका एक्सीडेंट के समय शीशा टूटा हो। छानबीन के दौरान उन्हें पता चला कि उसी कार का शीशा ठीक कराने वाला एक दुकान में आया है। उसके बाद पिता ने अंत में अपने बेटे के आरोपी को पकड़ लिया और उसे लेकर कठघरे में खड़ा कर दिया।

जनवरी 2023 में याचिका दायर की
जनवरी 2023 में पीड़ित ने वाहन मालिक के खिलाफ आपराधिक याचिका दायर की। शिकायतकर्ता मामले को फिर से खोलने के लिए पुलिस अधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी गई थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि शुरुआत में की गई जांच को ध्यान में रखते हुए, शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से पुलिस प्रशासन पर विश्वास खो दिया था, जिसने उसे अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया। अगर पुलिस ने नागरिक का विश्वास बहाल नहीं किया तो अदालत अपने कर्तव्य में विफल हो जाएगी।

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