इंटरव्यू से पहले प्रोफेसर, सेवा के बदले पीए बना प्रोफेसर

Lucknow : इंटरव्यू से पहले प्रोफेसर, सेवा के बदले पीए बना प्रोफेसर

इंटरव्यू से पहले प्रोफेसर, सेवा के बदले पीए बना प्रोफेसर

Google Image | भाषा विश्वविद्यालय

  • - ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती भाषा विवि लखनऊ का हाल
  • - स्थानीय निधि लेखा परीक्षा की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
  • - आरोपियों को ही मिल रहा कार्यवाहक कुलपति का चार्ज
Lucknow News : उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा में नियुक्तियों, निर्माण कार्यों, परीक्षा मूल्यांकन में  भ्रष्टाचार के आखिर इतने आरोप क्यों ? उत्तर है- अयोग्य (अनर्ह) उम्मीदवारों का प्रोफेसर पदों पर चयन। एकेटीयू , आईईटी, सीएसजेएमयू के साथ ख्वाजा मोईन उद्दीन भाषा विश्वविद्यालय में अयोग्य व्यक्तियों को प्रोफेसर पद पर नियुक्त किये जाने का खुलासा स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग प्रयागराज की जांच से हुआ है। जांच रिपोर्ट दो साल से धूल खा रही है। आश्चर्यजनक ये है कि जांच रिपोर्ट में विसंगतियां उजागर होने के बाद भी कुलपति प्रो.एनबी सिंह बार-बार अनर्ह व्यक्ति को न सिर्फ कार्यवाहक कुलपति का कार्यभार सौंप रहे हैं बल्कि उन्हें ढेरों जांच कमेटियों में भी शामिल कर रहे हैं।

सवाल ये है कि जिन शिक्षकों की खुद की नियुक्तियां ही सवालों के घेरे में जांच में नियम विरुद्ध पायी गयी हैं, वे लोग प्रशासनिक पदों पर काम कैसे कर रहे हैं और उन्हें दूसरे शिक्षकों की आंतरिक जांच का जिम्मा कैसे दिया जा रहा है। इसका उत्तर देने को कोई तैयार नहीं है। कुलपति कार्यालय में मौजूद लेखा परीक्षा रिपोर्ट के पहले ही पन्ने पर कहा गया है कि अरेबिक विषय के प्रोफेसर पद पर अनर्ह ( योग्यता न रखने वाला व्यक्ति) व्यक्ति डॉ.मसूद आलम को साक्षात्कार के पूर्व ही चयनित घोषित कर दिया गया। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ.मसूद आलम का चयन 8 अप्रैल 2013 को साक्षात्कार के आधार पर किया गया था। यूपी सरकार के 2010 के शानादेश में  स्पष्ट कहा गया है कि शिक्षकों का चयन विवि अनुदान आयोग के नियमों के मुताबिक किया जाना चाहिए। लेखा परीक्षक की जांच रिपोर्ट में कहा गया है पत्रावली संख्या-100/12 (A) के पृष्ठ 124, 125 के अनुसार मसूद आलम द्वारा अरेबिक विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर पद हेतु भी आवेदन किया गया था, जिसके साक्षात्कार में वह 7 अप्रैल 2013 को उपस्थित भी हुये थे। इसमें शामिल हुये 18 अभ्यर्थियों में सर्वाधिक 88 नम्बर प्राप्त हुये थे परन्तु चयन अब्दुल हफीज का किया गया, जिन्हें 74 अंक मिले थे। गोलमाल का खेल देखिये पत्रावली की पृष्ठ संख्या-124 पर मार्किंग शीट पृष्ठ संख्या-2 के क्रमांक 18 पर अभ्यर्थी मसूद आलम के नाम के नीचे चयन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष व कुलपति ने अंग्रेजी में “सलेक्ट फार प्रोफेसर पोस्ट” लिखकर नोटिंग कर दी। यह नोटिंग 7 अप्रैल 2013 को की गयी जबकि प्रोफेसर अरेबिक पद पर चयन का साक्षात्कार 8 अप्रैल 2013 को होना था यानी साक्षात्कार की तिथि के एक दिन पहले ही चयन कर लिया। जांच रिपोर्ट में लिखा गया है कि उक्त शिक्षक के चयन के कारण अकेडमिक काउंसिल के सदस्य डॉ. असलम जो तत्कालीन समय में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में डीन थे, उन्होने मानक के विपरीत नियुक्ति के खिलाफ लिखित विरोध पत्र के साथ पद से इस्तीफा दे दिया था। सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन कुलपति ने इस संबंध में हुए पत्राचार पर शासन को भी गलत सूचना दी थी। जांच रिपोर्ट में नियुक्ति और कार्यभार ग्रहण कराने को लेकर छह आपत्तियां दाखिल की गयी हैं। लेखा परीक्षक ने कहा है इस नियुक्ति से राज्य सरकार पर लगातार वित्तीय बोझ बढ़ रहा है।

लेखा परीक्षा रिपोर्ट में इसी तरह आउट सोर्सिंग के जरिये कुलपति के पीए, आशुलिपिक पद पर तैनात रहे अब्दुल हफीज को सहायक प्रोफेसर पर नियुक्त किये जाने पर सवाल उठाया गया है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में कुलपति के पीए के रूप में पत्रावली तैयार करने, साक्षात्कार बोर्ड के सदस्यों की फूडिंग,  लाजिंग करने की व्यवस्था पर खर्च भुगतान की पत्रावली पर हस्ताक्षर करने वाले हफीज की अरेबिक विभाग में शिक्षक के रूप में नियुक्ति कर दी गयी, जिस तिथि में  इनकी नियुक्ति हुई, उस दिन तक इस पद के लिए आये 15 दावेदारों के साक्षात्कार ही नहीं लिये गये। यह नियुक्ति चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि चयनित व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता तत्कालीन समय में सिर्फ पीएचडी थी लेकिन जिस जर निगार को वेटिंग में रखा गया था, वह पीएचडी के साथ नेट भी थी और उसके एकेडमिक अंकों की संख्या में भी हफीज के बराबर 22 थी। लेकिन बोर्ड ने कम्प्यूटर ज्ञान में पांच अंकों का अंतर किया। हफीज को कम्प्यूटर में 15 ओर जर निगार को 10 नम्बर दिये गये। इसी तरह तीसरे नम्बर पर सुमैया को रखा गया, जिनका चयन ही नहीं हुआ क्योंकि अकेडमिक और कम्प्यूटर ज्ञान दोनों में उनके नम्बर कम थे। इस संबंध में कुलपति प्रो.एनबी सिंह से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हुये।

विज्ञापन में प्रकाशित अर्हताओं के नियम संशोधति किये
लेखा परीक्षक ने अपने जांच रिपोर्ट में कहा है कि 7 सितम्बर 2012 को ख्वाजा मोईन उद्दीन विवि में शिक्षण कार्य के लिए 37 पदों का जो विज्ञापन जारी किया गया था, उसके क्रम संख्या -02 में स्पष्ट कहा गया था कि यूजीसी के नियमो के अनुरूप नियुक्तियां की जाएंगी। पर नियुक्तियों के लिए 100 नम्बरों को चार हिस्सों में बांट कर जो स्केलिंग की गयी, वह यूजीसी के नियमों में कहीं भी शामिल नहीं थी।

दो साल से लंबित है रिपोर्ट
लेखा परीक्षक नीरज कुमार गुप्ता ने ख्वाजा मोईऩ उद्दीन चिश्ती भाषा विवि में नियुक्तियों में व्यापक गड़बड़ियों की रिपोर्ट 18 सितम्बर 2020 को विवि के तत्कालीन कुलपति को सौंप दी थी और जिसकी प्रति कुलाधिपति को भेजी गयी थी लेकिन आरोपित शिक्षकों में से किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा कुलपति ने उन्हीं लोगों को प्रमुख पदों पर तैनात रखा है जिनकी नियुक्तियों पर सवाल उठा है।

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