Lucknow News : आखिरकार बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी को उसका नया उत्तराधिकारी दे ही दिया। लखनऊ में पार्टी पदाधिकारियों के लगभग डेढ़ घंटे चली बैठक के बाद माया ने यह घोषणा की है। बता दें कि यूपी और उत्तराखंड में पार्टी की जिम्मेदारी मायावती ही संभालेंगी, जबकि बाकी 26 राज्यों का काम आकाश देखेंगे। पार्टी की विरासत और राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए मायावती ने अपने भतीजे को आगे किया है। रविवार की मीटिंग में पार्टी के 28 राज्यों के पदाधिकारी मौजूद थे।
यूथ पॉलिटिक्स पर फोकस, नई पीढ़ी की शुरुआत
बहुजन समाज पार्टी के जुड़े लोगों का कहना है कि बसपा में नई पीढ़ी की शुरुआत आकाश आनंद के जरिए की जा रही है। आकाश आनंद के रहते हुए यूपी-उत्तराखंड समेत देश के 21 राज्यों में बहुजन समाज के मूवमेंट से जुड़े कार्यकर्ताओं को नई दिशा मिलेगी। बसपा से MLC भीमराव अंबेडकर के अनुसार, आकाश आनंद को जनता के बीच संघर्ष करने के लिए मायावती ने उतारा है। जैसा कि लोग परिवारवाद का आरोप लगाते हैं, तो उन्होंने उनको राज्यसभा या एमएलसी का टिकट नहीं दिया। उन्होंने पार्टी को मजबूत करने के लिए आकाश आनंद को जिम्मेदारी दी है। बहुजन समाज पार्टी के मूवमेंट में आकाश आनंद नई सोच के साथ-साथ यूथ में बड़ी भागीदारी निभाएंगे।
ये भी हैं बड़ी वजह 1- चंद्रशेखर उर्फ रावण : पश्चिम यूपी में आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की दलित वर्ग के बीच पकड़ मजबूत होती देख मायावती ने दलित समाज के युवाओं को मैसेज देने का प्रयास किया कि बसपा में युवा नेता और पार्टी का ऑप्शन आकाश है। दरअसल, चन्द्रशेखर की जमात उन्हीं वोटरों की है, जो मौलिक तौर पर बसपाई हैं। ऐसे में चन्द्रशेखर की इस सेंधमारी को रोकने के लिए मायावती ने ये कदम उठाया है। 2- युवाओं पर फोकस : यूपी में विधानसभा 2022 के चुनाव में बसपा को तगड़ा झटका लगा था। पार्टी का वोट शेयर 22% से घटकर 11% पर आ गया था। इसलिए बसपा अपना खोया जनाधार पाने के लिए युवाओं को जोड़ना चाहती है। इसीलिए मायावती ने आकाश को उत्तराधिकारी चुना है। 3- बसपा के सामने अब ज्यादा ऑप्शन नहीं : चार बार यूपी की सीएम रह चुकीं मायावती की पार्टी बसपा की अब प्रदेश में स्थिति कमजोर हो रही है। अभी बसपा का सिर्फ एक विधायक है। जबकि 10 सांसद थे, जिसमें से एक सांसद दानिश अली को उन्होंने पार्टी से निलंबित कर दिया है।
ऐसे हुई थी आकाश की एंट्री
बता दें कि मायावती के उत्तराधिकारी आकाश आनंद की अचानक एंट्री नहीं हुई है। साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव हारने के बाद बसपा सुप्रीमो ने उन्हें जनता के सामने पेश किया था। साल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने आकाश को स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया था। इसी समय बसपा का सपा के साथ गठबंधन टूट गया था और आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर घोषित किया गया। आकाश आनन्द दिल्ली, राजस्थान, एमपी, केरल और गुजरात में पार्टी के लिए काम कर चुके हैं।
पहली बार 2017 में आए थे नजर
आकाश, मायावती के सबसे छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। मौजूदा समय में पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं। सार्वजनिक तौर पर मायावती के साथ आकाश पहली बार 2017 में सहारनपुर में नजर आए थे। आकाश ने लंदन से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) की पढ़ाई की है। आकाश की शादी बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ की बेटी डॉ. प्रज्ञा से इसी साल मार्च में हुई थी। आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ की गिनती मायावती के भरोसेमंद नेताओं में होती है।
ऐसे बनी बसपा और माया का सफर
दलित कार्यकर्ता और सिविल सेवा के अधिकारी कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था। पार्टी बनाने के पीछे कांशीराम की प्रेरणा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर थे। पार्टी का कहना है कि वह अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के हित में काम करती है।
ये हैं बसपा के खास वोट बैंक
दलित समुदाय दलित समुदाय पार्टी का खास वोट बैंक हैं। मायावती ने 2003 में बसपा की बागडोर संभाली थीं। उन्होंने बसपा को देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख पार्टी बनाया। 1993 में सपा के साथ गठबंधन करके बसपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में आईं। हालांकि 2 साल में ही यह गठबंधन टूट गया और भाजपा से गठबंधन कर पहली बार मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती का पहला कार्यकाल सिर्फ 5 महीने का रहा। इसके बाद 1997 में 6 महीने के लिए 2000-03 में वह 15 महीने के लिए मुख्यमंत्री रहीं।
साल 2007 में बनी पूर्ण बहुमत की सरकार
2004 में मायावती ने ब्राह्मण नेता सतीश चंद्र मिश्र को पार्टी का जनरल सेक्रेटरी बनाया। इसके बाद 2007 में बसपा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही और मायावती पहली बार पूरे 5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनीं। इस कार्यकाल के दौरान मायावती ने जगह-जगह मूर्तियां लगवाईं। इस दौरान पार्टी में भ्रष्टाचार के कई केस भी सामने आए, जिसका असर अगले चुनाव पर पड़ा। साल 2012 के विधानसभा के चुनाव में बसपा मात्र 80 सीट ही जीत सकी। इसके बाद मायावती ने कुछ समय के लिए राजनीतिक संन्यास ले लिया। 2014 में बहुजन समाज पार्टी लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत सकी।