खुर्जा की खुरचन, मथुरा के पेड़े, आगरा के पेठे और लखनऊ की रेवड़ी में बढ़ेगी मिठास

योगी सरकार का खास फैसला : खुर्जा की खुरचन, मथुरा के पेड़े, आगरा के पेठे और लखनऊ की रेवड़ी में बढ़ेगी मिठास

खुर्जा की खुरचन, मथुरा के पेड़े, आगरा के पेठे और लखनऊ की रेवड़ी में बढ़ेगी मिठास

Google Image | योगी सरकार

  • - जी उठेगा गोरखपुर का पनियाला, मीरजापुर का देशी बाजरा और ज्वार को मिलेगी संजीवनी
  • - मऊ के बैगन, बुंदेलखंड की अरहर दाल और बलिया के बोरो धान के भी बहुरेंगे दिन
Lucknow News : पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण शहर दर शहर और कस्बों की अपनी कुछ पहचान हैं। न जाने कब से यह पहचान उन जगहों के साथ ऐसे नत्थी हो गई है कि शहर या कस्बे का नाम लेते ही उनकी पहचान बन चुकी इन चीजों का नाम भी बरबस जेहन में उभर आता है। कुछ तो इनके स्वाद और स्वरूप का भी अहसास कराने लगते हैं। अभी पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुनाने की तैयारी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार कर रही है।

आगरा ताजमहल ही नहीं पेठे के लिए भी मशहूर
आगरा सिर्फ ताजमहल के लिए ही नहीं अपने तरह-तरह के फ्लेवर वाले पेठों के लिए भी जाना जाता है। ब्रज की पावन भूमि मथुरा राधा-कृष्ण के साथ अपने पेड़ों के मिठास के लिए भी प्रसिद्ध है। पूर्वांचल के मऊ जिले के गोठा कस्बे के गुड़ की सोंधी-सोंधी महक व मिठास के आसपास के लोग ही नहीं बल्कि सारनाथ से कपिलवस्तु, लुम्बिनी या कुशीनगर जाने वाले बौद्धिस्ट भी कायल हैं। संडीला का लड्डू, खुर्जा की खुरचन और भी ऐसी तमाम चीजें हैं, जो उनके शहर या कस्बे की पर्याय बन चुकी हैं।

प्रोडक्ट्स को ब्रांड के तौर पर आगे बढ़ाएंगे
अब ऐसी चीजों को योगी सरकार ब्रांड बनाने की तैयारी में है। यह एक तरीके से इन चीजों के और उत्तर प्रदेश के ब्रांड को देश-दुनिया में विस्तार देने की पहल है। ठीक उसी तरह जैसे 2018 में ऐसी ही कुछ चीजों को सरकार ने एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) घोषित कर किया था। इस बार भी तरीका वही होगा। इनमें से कुछ चीजों को ओडीओपी में शामिल किया जाएगा तो कुछ को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) दिलवाकर उनकी पहचान को और मुकम्मल किया जाएगा। यह सिलसिला शुरू हो चुका है। ओडीओपी को विस्तार देने के साथ ऊपर उल्लिखित उत्पादों को जीआई टैग दिलवाने की गंभीर पहल चल रही है।

सीएम के आदेश पर बनाई गई हाईपावर कमेटी
आपको बता दें कि कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर शासन और प्रशासन ने 100 से अधिक ऐसे उत्पादों की सूची बनाई है, जिनको स्थानीय खूबियों के नाते जीआई टैग दिलाने की पहल की जा सकती है। इन तमाम उत्पादों में से 21 को इस बाबत गठित हाई पॉवर कमेटी हरी झंडी दे चुकी है। लगे हाथ अपर मुख्य सचिव ने संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों को इस संबंध में शीघ्र आवेदन देने का भी निर्देश दिया था। बचे उत्पादों पर कमेटी अगले चरण पर विचार करेगी।

सबसे पहले इन्हें आगे बढ़ाएगी सरकार
जिन उत्पादों को हाई पावर कमेटी ने हरी झंडी दी है उनमें बाराबंकी और रामपुर का मेंथा, गोरखपुर का पनियाला, मऊ का बैगन, मेरठ की गजक, बुंदेलखंड की अरहर दाल, हाथरस का गुलाबजल, गुलकंद, बलिया का बोरो धान, एटा का चिकोरी, फर्रुखाबाद का फुलवा आलू, फतेहपुर का मालवा पेड़ा, सोनभद्र की चिरौंजी, कानपुर की लाल ज्वार, मीरजापुर की ज्वार और देशी बाजरा शामिल हैं।
 
क्या हैं जीआई के लाभ
भौगोलिक संकेतक उत्पाद के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। अन्य लोगों द्वारा किसी पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत प्रयोग को रोकता है। यह संबंधित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।

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