प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं में संघ की भूमिका

जिम्मेदारीः प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं में संघ की भूमिका

प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं में संघ की भूमिका

Tricity Today | विशाल मिश्रा, जिला प्रचारक, गौतमबुद्ध नगर

(विशाल मिश्रा) - विवेकानंद के बारे पढ़ते हैं, तो उनके जीवन में एक प्रसंग आता है। एक बार वह विदेश के प्रवास पर थे और रात को सोते समय उनके कमरे से रोने की आवाज आई। उस घर की स्वामिनी, जिसको स्वामी जी मां कहते थे, उठकर आती हैं और देखती हैं कि स्वामी जी रात को 1:00 बजे बिस्तर से उठ कर बैठे हैं। उनकी आंखों से आंसू निकल रहे हैं और सिसकियां तेज हैं। मां स्वामी जी से पूछती हैं कि नरेंद्र क्यों रो रहे हो? बिस्तर में कुछ समस्या है क्या? कहो तो इसको बदल दूं। स्वामी जी कहते हैं, "नहीं मां, इस बिस्तर पर तो आनंद पूर्वक नींद आएगी। लेकिन मेरी आंखों के सामने से भारत की वर्तमान स्थिति को देखकर नींद नहीं आती है। भारत मां के बच्चों को भूखे सोते हुए देख कर मेरा हृदय अंदर से फट जाता है। मुझे नींद नहीं आती है। यह सभी चीजें देखकर मेरा मन बहुत दुखता है। भारत मां का दुख-कष्ट मुझे आराम से सोने नहीं देता है। जब मां कष्ट में होती है, तो मैं कैसे आराम से सो सकता हूं।" 

इस तरह की घटना स्वामी जी के जीवन में एक बार नहीं अनेक बार देखने को मिलती है। उसी तरीके से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संबंध इस भारत देश से है। इस भारत की संस्कृति से है। मानवता से है। भारत के मौलिक चिंतन से है। भारत के विचारों से है। भारत के जनमानस से है। भारत या दुनिया की मानवता, भारत का मौलिक विचार, भारत का आधार, भारत की संस्कृति जब भी आपदाओं से घिरती है, वह आपदा प्राकृतिक हो या मानवी, उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वही वेदना महसूस करता है, जो स्वामी जी किया करते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसके कार्यकर्ताओं ने भारत को आत्मसात कर लिया है। जब भी भारत कष्ट में होता है, तो आरएसएस का कार्यकर्ता अपना सब कुछ लगाकर इस समाज और राष्ट्र की रक्षा के लिए विपदा के समय मैदान में उतरता है। वह तब तक लगा रहता है, जब तक उसको यह महसूस नहीं हो जाता कि देश अब सुरक्षित है। 

साल 1925 में स्थापना हुई
सामान्य जनमानस जो संघ को नहीं जानता है। वह इनके सेवा और अनुशासन को देखकर आश्चर्यचकित रहता है। लोग आपस में चर्चा करते हैं कि पता नहीं संघ कैसे तैयार करता है अपने कार्यकर्ताओं को। जो देश-समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। 27 सितंबर 1925 में विजय दशमी के दिन महाराष्ट्र के नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। इसके संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार थे, जो पेशे से एक डॉक्टर थे। संघ जैसे-जैसे बड़ा होता गया, देश के ऊपर आने वाले प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाओं से देश को सुरक्षित निकालने का कार्य करता रहा। इस लेख के माध्यम से कुछ आपदाओं में संघ की क्या भूमिका थी, उसका उल्लेख करेंगे। वैसे तो छोटी-बड़ी सभी आपदाओं पर संघ अपनी नजर रखता है। उस समय समाज और देश के साथ खड़ा रहता है। 

विस्थापितों के लिए सारा प्रबंध किया
साल 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ, तो दुनिया के इतिहास में इतनी बड़ी आबादी का विस्थापन पहली बार लोग देख रहे थे। पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए हजारों से ज्यादा राहत शिविर लगाए। उस समय संघ का कार्य पाकिस्तान के कई हिस्सों में फैला हुआ था। जब दंगा शुरू हुआ तो वहां के हिंदू परिवारों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना, उनके लिए भोजन की व्यवस्था करना, बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था करना, ये सभी कार्य संघ के  कार्यकर्ताओं ने उस समय किए। इसके लिए सरकार के पास कोई तैयारी नहीं थी। संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर की सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर लगातार नजर रखी। उस समय जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांगने की कोशिश की, सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में अपने प्राण त्याग दिए थे। 

युद्ध में भी डटे रहे
इसी तरह 1962 में जब चीन के साथ युद्ध हुआ, तो सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा। स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी। सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवार की देखभाल करना। जवाहरलाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा। जिसमें संघ के 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए। 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में लाल बहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया। शास्त्री जी ने कानून व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया। घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाई पट्टी से बर्फ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था। 


आपातकाल और अकाल में निभाई जिम्मेदारी
1975 से 1977 के बीच आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका आज भी याद की जाती है। आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों को भरने में स्वयंसेवक आगे थे। 1971 में उड़ीसा में आए भयंकर चक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में भी संघ के कार्यकर्ताओं ने राहत-बचाव कार्य में भाग लिया। 1967 में बिहार में भयंकर अकाल पड़ा। जिसमें भारत सरकार की तरफ से जय प्रकाश नारायण को प्रभारी बनाया गया था। उस भयंकर अकाल में संघ के स्वयंसेवकों के कार्य की जय प्रकाश नारायण बहुत प्रशंसा करते हुए एक घटना का जिक्र करते हैं और कहते हैं कि एक संघ का कार्यकर्ता भोजन के पैकेट लेकर जा रहा था। तो मैंने देखा कि भोजन का बड़ा पैकेट साइकिल के पीछे हैं और एक छोटा पैकेट साइकिल के हैंडल में लटका हुआ है। जयप्रकाश नारायण उससे पूछते हैं कि यह भोजन किसका है? उसने बताया कि छोटी थैली में जो भोजन रखा है, यह भोजन मेरा है। यह मैं अपने लिए घर से लाया हूं और बड़ा पैकेट राहत-शिविर के लिए है। प्रकाश जी इसको कहते हैं कि तुम भी इसी में भोजन कर सकते हो। तो स्वयंसेवक कहता है कि हम अपने घर से लाया हुआ भोजन करके सेवा कार्य करते हैं। 

जयप्रकाश नारायण ने की ताऱीफ
उस समय बिहार में कई सामाजिक संगठन सेवा कार्य में लगे थे, जिनका सेवा कार्य करते समय व्यक्तिगत खर्चा बहुत ज्यादा था। लेकिन संघ के कार्यकर्ता अपने रहने-खाने का सारा खर्चा खुद वहन करते थे। यह सब देख जयप्रकाश नारायण के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया। पटना के गांधी मैदान के एक भाषण में जयप्रकाश नारायण ने कहा है कि अगर संघ देशद्रोही है, तो मैं भी देशद्रोही हूं। 1991 में उत्तरकाशी में भयंकर प्राकृतिक आपदा आई। संघ के एक कार्यकर्ता डॉ. नित्यानंद जी थे। जिन्होंने उस समय प्राकृतिक आपदा से प्रभावित कई गांव को पुनः स्थापन का कार्य किया। एक शिक्षक होने के नाते अपने शिष्यों को भी इस काम में लगाया। नित्यानंद जी वैसे रहते तो देहरादून में थे, लेकिन इस आपदा के पश्चात इस आपदा से प्रभावित हुए लोगों के बीच में ही रहने लगे। अपना पूरा जीवन प्रभावित लोगों के लिए लगा दिया। लंबे समय तक उत्तराखंड के उत्थान के लिए काम किया। बच्चों के लिए कई विद्यालय बनवाएं, गौशाला स्थापित की। संघ के विभिन्न दायित्वों पर कार्य किया और पूरा जीवन राष्ट्र कार्य में लगा दिया। 

हर आपदा में मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं
12 नवंबर 1996 को हरियाणा में चरखी दादरी से 5 किलोमीटर दूर गांव टिकनाकला व सनसनवाल में दो विमान आपस में टकरा गए, जिसमें 349 लोगों की मौत हो गई। एक विमान सऊदी अरब से आ रहा था, तो दूसरा विमान सऊदी अरब के लिए उड़ान भरा था। दुर्घटना के बाद मरे हुए लोगों की लाशें 30-35 किलोमीटर में फैल गई थी। संघ के कार्यकर्ताओं ने सभी मृत शरीरों का उनके धार्मिक परंपरा के अनुसार क्रियाकर्म किया। विमान सऊदी अरब से होने के कारण अधिकतम यात्री मुस्लिम थे। संघ के कार्यकर्ता पूरे समय राहत-बचाव कार्य में लगे रहे। संघ के कार्यकर्ताओं को देखकर  रेडिकल पत्रिका (Radical Patrika) ने एक पूरा लेख इन कार्यों पर लिखा। जिसका शीर्षक था, "शाबाश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"। एक और विमान दुर्घटना सन 2000 में बिहार की राजधानी पटना में हुई, जिसमें कुल 65 यात्रियों की जान गई। उस समय घटनास्थल पर बचाव कार्य के लिए सबसे पहले संघ के कार्यकर्ता पहुंचे। जब सुरक्षा बलों ने लोगों को वहां से हटाना चाहा, तो शरद यादव ने सुरक्षाबलों से कहा कि आप लोग इनको मत हटाइए। यह लोग आपकी पूरी सहायता करेंगे, आपको जो ब्लैक बॉक्स (Black Box) चाहिए, यही लोग दिलाएंगे। जबकि शरद यादव संघ विचार के नेता नहीं है। लेकिन संघ की सेवा कार्य की प्रशंसा करने से नहीं थकते। 

गुजरात भूकंप में निभाई जिम्मेदारी
26 जनवरी 2001 को भारत के 51वें गणतंत्र दिवस की सुबह 08:46 बजे गुजरात भूकंप, जिसे भुज भूकंप के नाम से भी जाना जाता है ने तबाही मचाई। यह 2 मिनट से अधिक समय तक चला। इसका केंद्र भारत के गुजरात के कच्छ जिले के भचौ तालुका में चबारी गांव के लगभग 9 किमी दक्षिण-दक्षिणपश्चिम में था। उस समय गुजरात में बहुत ज्यादा जानमाल का नुकसान हुआ उसमें भी संघ के कार्यकर्ताओं ने राहत-बचाव कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई। भूकंप से प्रभावित लोगों के लिए आवास की व्यवस्था, बच्चों के लिए विद्यालय की व्यवस्था, भोजन की व्यवस्था तथा अन्य जरूरतमंद चीजों की व्यवस्था तब तक की जब तक  प्रभावित लोगों का जीवन सामान्य न हो गया।

राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कई बार तारीफ की
सन 2005 में जब अमेरिका में कैटरीना तूफान आया तो अमेरिका में रहने वाले संघ के कार्यकर्ता राहत-सामग्री लेकर सबसे पहले पहुंचे। उस समय अमेरिकी लोग कह रहे थे कि यह कार्य सरकार का है, हमारा नहीं है। लोगों ने मृत शरीर को छूने से मना कर दिया। उस समय हिंदू स्वयंसेवक संघ (संघ का एक संगठन, जो विदेशों में कार्य करता है) के कार्यकर्ताओं ने इन सेवा कार्यों को संभाला। इसका नेतृत्व एक कार्यकर्ता वेद प्रकाश नंद जी ने किया। इन सभी सेवा कार्यों की चर्चा तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अपने भाषण में कई बार की। आज के वर्तमान समय में जब पूरी दुनिया कोरोना नामक भयानक बीमारी से ग्रसित है, तो इस कठिन काल में भी संघ के कार्यकर्ता समाज के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर सेवा कार्य के लिए घर से बाहर निकले। सन 2020 में जब प्रवासी मजदूर अपने घर जाने के लिए पैदल चलने को मजबूर थे, तो उन्हें घर भेजने की व्यवस्था, भोजन की व्यवस्था, बच्चों के लिए दूध, मरीजों के लिए दवाई, जो मजदूर नंगे पैर चल रहे थे, उनके लिए चप्पल का प्रबंध किया।

महामारी में मसीहा का किरदार
कोरोना महामारी में जिनका रोजगार चला गया, उनके रोजगार की व्यवस्था, अस्पतालों में रक्त की व्यवस्था, जो मरीज अवसाद में चले गए, उनके लिए डॉक्टर का सुझाव, स्कूली बच्चों के लिए नि:शुल्क कोचिंग क्लासेज, कोरोना मे लोगों का जन जागरण, जिन घरों में राशन नहीं था उनके घर पर राशन की व्यवस्था, संघ के कार्यकर्ताओं ने की। जब से कोरोना का दूसरा वेरिएंट आया और अस्पताल में ऑक्सीजन व बेड की कमी हुई, संघ ने कार्यकर्ताओं की सहायता से जगह-जगह कोविड केयर सेंटर, हेल्पलाइन सेंटर, प्लाज्मा दान, आयुर्वेदिक काढ़े का वितरण, अंतिम संस्कार करने में भी कार्यकर्ता सेवा दे रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर आइसोलेशन सेंटर बनवाया गए हैं। छोटे-छोटे स्थानों को अस्थाई अस्पताल में परिवर्तित किया गया है। इस सेवा कार्य को करते-करते कई कार्यकर्ताओं ने अपने प्राणों की आहूति दे दी। कुछ ठीक होकर दोबारा सेवा कार्य में आकर लग गए। संघ का कार्यकर्ता सेवा के कार्य को ईश्वर का कार्य मानकर पूरे मनोयोग से करता है। "नर सेवा, नारायण सेवा" का भाव हरदम उसके मन में रहता है। राष्ट्र देव ही उसके भगवान हैं और अनवरत अपना जीवन उनकी सेवा में लगाता है। 

(लेखक विशाल मिश्रा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गौतमबुद्ध नगर के जिला प्रचारक हैं।)

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