Tricity Today | Noida
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में बड़े घोटाले का खुलासा किया है। सीएजी इन दोनों विकास प्राधिकरण का ऑडिट कर रहा है। नोएडा प्राधिकरण से जुड़ी रिपोर्ट सीएजी ने यूपी सरकार को सौंप दी है। वहीं, ग्रेटर नोएडा पर ऑडिट रिपोर्ट तैयार की जा रही है। दोनों प्राधिकरणों में कई बड़े घोटाले हुए हैं। अब पहली बार दोनों प्राधिकरणों का ऑडिट वर्ष 2005 से 2018 तक किया जा गया। लखनऊ सीएजी से जानकारी मिली है कि दोनों विकास प्राधिकरणों की आवासीय, संस्थागत और वाणिज्यिक भूमि और भूखंडों के आवंटन में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएं की गई हैं।
सीएजी ने नोएडा प्राधिकरण का ऑडिट करके अपनी रिपोर्ट पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी है और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण पर रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है। औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने पुष्टि की कि उनके कार्यालय को कुछ समय पहले नोएडा प्राधिकरण पर सीएजी की रिपोर्ट मिल गई है।
प्रमुख सचिव ने कहा, "नोएडा प्राधिकरण पर सीएजी की मसौदा रिपोर्ट प्राप्त हो गई है, हालांकि यह मेरी मेज तक अभी नहीं पहुंची है। हम जल्द ही इसकी जांच करेंगे और इसमें उठाई गई आपत्तियों पर अपने जवाबप्रस्तुत करेंगे।" दूसरी ओर सूत्रों ने कहा कि दोनों विकास प्राधिकरणों में व्यापक स्तर पर अनियमितताएं पाई गई हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि तुलनात्मक रूप से ग्रेटर नोएडा में स्थिति बेहतर थी। सूत्रों ने कहा, "नोएडा प्राधिकरण में तो वित्तीय अनियमितताएं कल्पना से परे हैं। घोटाले हजारों करोड़ रुपये के हैं।" मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राधिकरण ने भूमि और भूखंडों के आवंटन में अपने ही नियमों की अवहेलना की। वर्ष 2005 से 2018 के बीच कायदों को दरकिनार करके बिल्डरों को बड़े पैमाने पर जमीन का आवंटन किया गया है।
सूत्रों के अनुसार, मसौदा रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले, सीएजी ने नोएडा प्राधिकरण से विभिन्न ऑडिट पैरा के लिए जवाब मांगा लेकिन प्राधिकरण को बार-बार अनुस्मारक भेजने के बावजूद अधिकांश प्रश्नों के उत्तर देने में कोई सक्षम नहीं था। सूत्रों ने कहा, "प्राधिकरण के अधिकारी बमुश्किल 10% प्रश्नों का उत्तर दे सके हैं।"
गौरतलब है कि सीएजी को लगभग दो दशकों के प्रयासों के बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों के ऑडिट की अनुमति मिली थी। कैग नियमित रूप से यूपी सरकारों से इन दोनों प्राधिकरणों के ऑडिट की अनुमति देने की मांग कर रहा था, लेकिन राज्य सरकारों ने हर बार उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। केवल सार्वजनिक वित्त कैग ऑडिट के दायरे में था। जबकि, नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण स्ववित्त पोषित निकाय हैं। दोनों प्राधिकरण प्रदेश सरकार से कोई धन नहीं लेते हैं।
कैग ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने इन प्राधिकरणों के लिए भूमि का अधिग्रहण किया और समय-समय पर उन्हें कई अन्य रियायतें भी प्रदान की हैं। पहली बार योगी आदित्यनाथ सरकार ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा का ऑडिट 2005-2018 की अवधि के लिए करने की अनुमति दी थी।
नोएडा प्राधिकरण पहले भी कथित घोटालों को लेकर विवादों में घिर चुका है। 2012 में गाजियाबाद की एक सीबीआई अदालत ने यूपी की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव और उसके बाद आईएएस अधिकारी और नोएडा प्राधिकरण के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी राजीव कुमार को 1994 और 1995 के बीच हुए प्लॉट अलॉटमेंट घोटाले के लिए दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में दोनों को दो साल जेल की सजा सुनाई थी।
एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जरिए नोएडा में भूखंडों के आवंटन और रूपांतरण में गंभीर अवैधता के आरोप लगाए गए थे। जिसके बाद दोनों अफसरों सजा हुई। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि कई लोगों को अज्ञात कारणों से और नियमों के खिलाफ बड़े और बेहतर भूखंड दिए गए थे।
2016 में पूर्व नोएडा प्राधिकरण के मुख्य अभियंता यादव सिंह को 8 दिनों की अवधि में 1,280 अनुबंध बांड पर हस्ताक्षर करके 954 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में जेल में बंद किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2019 में उन्हें जमानत दे दी। हालांकि, एक अन्य मामले में यादव सिंह को सोमवार को सीबीआई ने फिर गिरफ्तार किया है।