ग्रेटर नोएडा: द्रोणाचार्य मंदिर ने कोरोना वायरस के बावजूद कृष्ण जन्माष्टमी पर कुश्ती करवाई, जानिए क्यों 100 वर्षों से चली आ रही है परंपरा

ग्रेटर नोएडा: द्रोणाचार्य मंदिर ने कोरोना वायरस के बावजूद कृष्ण जन्माष्टमी पर कुश्ती करवाई, जानिए क्यों 100 वर्षों से चली आ रही है परंपरा

ग्रेटर नोएडा: द्रोणाचार्य मंदिर ने कोरोना वायरस के बावजूद कृष्ण जन्माष्टमी पर कुश्ती करवाई, जानिए क्यों 100 वर्षों से चली आ रही है परंपरा

Tricity Today | द्रोणाचार्य मंदिर ने कोरोना वायरस के बावजूद कृष्ण जन्माष्टमी पर कुश्ती करवाई

ग्रेटर नोएडा के दनकौर कस्बे में महाभारत कालीन द्रोणाचार्य मंदिर है। मंदिर के पास ही ऐतिहासिक द्रोणाचार्य अखाड़ा भी है। जहां सोशल डिस्टेंसिंग के बीच बुधवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कुश्ती का आयोजन करवाया गया है। हालांकि, इस बार केवल दो मुकाबले हुए। यह कुश्ती 100 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखने के लिए करवाई गई हैं।

दनकौर के प्राचीन ऐतिहासिक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेला में द्रोण अखाड़े की परंपरा को बनाए रखने के लिए द्रोणाचार्य मंदिर प्रबंध समिति ने बुधवार को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ दो केवल कुश्तियां कराई हैं। चार पहलवानों की दोनों कुश्ती बराबर पर छूटी हैं। इन दोनों मुकाबलों को रस्मी तौर पर आयोजित किया गया था। यही वजह है कि इसमें हार जीत को शामिल नहीं किया गया।

द्रोणाचार्य मंदिर प्रबंधन समिति के प्रबंधक रजनीकांत अग्रवाल, महिपाल गर्ग, संदीप जैन, सिंटू चौधरी, कमल गोयल, सुशील बाबा आदि गिने-चुने लोगों ने बुधवार को द्रोणाचार्य अखाड़े का पूजन किया। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए दीपक गढ़ी और रविंद्र ढाक के बीच 7 मिनट की पहली कुश्ती कराई गई। यह मुकाबला बराबर पर रहा। दूसरी कुश्ती सत्येंद्र नवादा और कैलाश रीलखा के बीच हुई। यह कुश्ती भी ग्यारह सौ रुपए के ईनाम वाली थी एयर बराबरी पर छूटी है। 

अखाड़ा परिसर में इस परंपरा को बनाए रखने के लिए मात्र गिने-चुने दर्शक और चुनिंदा पुलिसकर्मी मौजूद रहे। इस अवसर पर प्रबंधक रजनीकांत अग्रवाल ने बताया कि मेले और द्रोण अखाड़े की गरिमा को बनाए रखने और परंपरा का निर्वाह करने के लिए ही सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मात्र दो कुश्तियां कराई गई हैं। पिछले करीब 100 वर्षों से यहां प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर विशाल मेला आयोजित किया जाता है। करीब एक सप्ताह तक देशभर के चोटी के पहलवान इस ऐतिहासिक अखाड़े में अपनी विशेषताएं प्रदर्शित करने पहुंचते हैं।

क्या है द्रोण अखाड़े का इतिहास

पौराणिक मान्यता है कि हस्तिनापुर के कौरव और पांडव राजकुमारों को गुरु द्रोणाचार्य ने दनकौर में ही प्रशिक्षण दिया था। यहां गुरु द्रोणाचार्य का आश्रम और मंदिर था। यह ऐतिहासिक मंदिर अभी भी मौजूद है। मंदिर परिसर के ठीक बराबर में एक विशाल अखाड़ा है। इस अखाड़े को महाभारत कालीन माना जाता है। मान्यता है कि इसी अखाड़े में कौरव और पांडवों को मल्लयुद्ध के लिए प्रशिक्षित किया गया था। जिसमें भीम और दुर्योधन सबसे बड़े मल्ल थे। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अधिसूचित किया है

इस ऐतिहासिक मंदिर और पूरे परिसर की महत्ता को समझते हुए पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने करीब 5 वर्ष पहले द्रोणाचार्य मंदिर को अधिग्रहित किया है। इसे राष्ट्रीय महत्व का स्थान घोषित किया गया है। जल्दी ही इस पूरे परिसर के जीर्णोद्धार की प्रक्रिया शुरू होगी। इसे महाभारत सर्किट में भी शामिल करने की केंद्र और राज्य सरकार की योजना है। दनकौर कस्बे के पास से ही यमुना नदी बहती है। मान्यता है कि महाभारत काल में दनकौर मंदिर के समीप से ही यमुना बहती थी। हालांकि, अब करीब 3 किलोमीटर दूर यमुना नदी की धारा पहुंच चुकी है।

इलाके का यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण विकास कर रहा है

अब यह इलाका यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण का अधिसूचित क्षेत्र है। यमुना एक्सप्रेस वे मंदिर से शरीर 400 मीटर की दूरी से ही होकर गुजरता है। ठीक सामने बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट है।

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