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हाथरस में एक युवती के साथ कथित बलात्कार और उसकी मौत के बाद दलित समुदाय के साथ दिखने की राजनीतिक दलों की होड़ ने राज्य में अगले महीने होने वाले विधानसभा उपचुनावों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ा दी है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 में प्रस्तावित हैं, लेकिन तीन नवंबर को विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान होना है। इस उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रतिष्ठा सर्वाधिक दांव पर लगी है क्योंकि सात में से छह सीटों पर भाजपा का ही कब्जा था। सिर्फ जौनपुर जिले की मल्हनी सीट समाजवादी पार्टी (सपा) ने जीती थी।
एक अनुमान के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में क़रीब 22 फ़ीसदी आबादी दलित समुदाय की है। उत्तर प्रदेश में दलितों के बूते 2007 में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और 2017 में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। साल 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली सपा ने भी बसपा के इस वोट बैंक में सेंध लगाई थी। साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों में से भाजपा को 69 सीटें मिलीं। साल 2007 में बसपा ने 62 और 2012 में समाजवादी पार्टी ने 58 सीटें जीती थीं।
दलित राजनीति के विशेषज्ञ अशोक चौधरी ने कहा, ''भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में दलित वोटों को प्रभावित किया लेकिन अब उस आकर्षण को बचाए रखना कठिन है।'' उत्तर प्रदेश में इस समय हाथरस के अलावा बलरामपुर जिले में दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला राजनीतिक दलों के लिए मुद़दा बना हुआ है। हाथरस में पुलिस अधीक्षक समेत पांच अधिकारियों को निलंबित किये जाने और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा संपूर्ण मामले की सीबीआई जांच की संस्तुति के बाद भी विपक्ष इस मसले को छोड़ने को तैयार नहीं है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाथरस के जिलाधिकारी पर कार्रवाई की मांग की है। बसपा प्रमुख मायावती ने भी हाथरस के डीएम को हटाने पर जोर दिया है जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो हाथरस में घटना के समय तैनात रहे सभी अफसरों के नार्को टेस्ट कराये जाने की मांग कर रहे हैं। भाजपा के प्रमुख दलित नेता और उत्तर प्रदेश सरकार के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने आरोप लगाया है कि विपक्ष हाथरस का सच सामने नहीं आने देना चाहता है और वह जातीय दंगा भड़काना चाहता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है, ''जिसे विकास अच्छा नहीं लगा रहा है, वे लोग जातीय और सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं। इस दंगे की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए उनको अवसर मिलेगा, इसलिए नये षड़यंत्र कर रहे हैं।'' लखनऊ के हजरतगंज थाने में मुख्यमंत्री की छवि खराब करने और माहौल खराब करने की साजिश में शनिवार की रात पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया है।
दलित चिंतक बद्री नारायण का कहना है, ''जो सत्ता में है उसको कार्रवाई करनी चाहिए और जो विपक्ष में है उसे आवाज उठानी चाहिए। इस मामले में जो जमीन पर लड़ते दिखेगा उसे लाभ होगा और अगर सरकार ने सही समय पर एक्शन नहीं लिया तो उसे नुकसान होगा।'' हालांकि, गोरखपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष रहे अशोक चौधरी कहते हैं कि हाथरस मामले में कांग्रेस ने आगे बढ़कर आंदोलन की शुरुआत की है और उसकी कोशिश अपना खोया जनाधार पाने की है।
उल्लेखनीय है कि हाथरस की पीडि़ता की मौत के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा ने घटनास्थल पर जाने की कोशिश की लेकिन वहां पर निषेधाज्ञा लागू होने का हवाला देकर प्रशासन ने ग्रेटर नोएडा में ही इनको रोक दिया था। प्रतिबंध हटने के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा शनिवार को हाथरस जाकर पीड़ित परिवार से मिले और तबसे कांग्रेस काफ़ी आक्रामक है। सपा भी दो अक्टूबर से आंदोलनरत है और उसका प्रतिनिधि मंडल हाथरस और बलरामपुर गया है।
समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि प्रदेश की जनता समझ गई है कि सपा ही एकमात्र विकल्प है। उप चुनाव के जनादेश से भाजपा को अपनी असलियत पता चल जाएगी। हाथरस के मामले पर वामपंथी दलों ने गांधी जयंती पर गांधी की प्रतिमा के समक्ष प्रदेश भर में धरना दिया। उधर, राष्ट्रीय लोकदल भी इस आंदोलन में कूद पड़ा है। दल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी और कार्यकर्ताओं पर रविवार को हाथरस में पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किये जाने का आरोप लगा है। बसपा प्रमुख मायावती ने एक अक्टूबर को पत्रकारों से बातचीत कर हाथरस मामले में कार्रवाई में विफल होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस्तीफे की मांग की।
भाजपा दलित समुदाय पर अपनी पकड़ ढीली नहीं होने देना चाहती है। इसीलिए, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सहयोगी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और केंद्र सरकार में सामाजिक अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले शनिवार को लखनऊ आये और उन्होंने मुख्यमंत्री की अब तक की कार्रवाई को जायज ठहराते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और बसपा प्रमुख मायावती को आड़े हाथों लिया। गौरतलब है कि हाथरस में 14 सितंबर को दलित युवती के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया। पिछले मंगलवार को उसकी दिल्ली के एक अस्पताल में मौत हो गई। गत बुधवार को उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। रात में जबरन अंतिम संस्कार कराये जाने का विपक्षी दलों ने आरोप लगाया। तबसे इस मामले ने तूल पकड़ लिया है और उत्तर प्रदेश की राजनीति दलितों के उत्पीड़न के मुद़दे पर केंद्रित हो गई है।
उल्लेखनीय है कि योगी सरकार के मंत्री चेतन चौहान और कमल रानी वरुण के निधन से रिक्त हुई क्रमश: अमरोहा जिले की नौगांव सादात तथा कानपुर जिले की घाटमपुर सुरक्षित क्षेत्र, वीरेंद्र सिंह सिरोही के निधन से उनकी सीट बुलंदशहर, पूर्व मंत्री एसपी बघेल के आगरा से सांसद बनने के बाद फिरोजाबाद की टूंडला, कुलदीप सेंगर के सजायाफ़ता होने से उन्नाव जिले की बांगरमऊ, जनमेजय सिंह के निधन से देवरिया और सपा के पारसनाथ यादव के निधन से जौनपुर जिले की मल्हनी सीट पर तीन नंबर को उपचुनाव होने हैं। इनमें टुंडला और घाटमपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरिक्षत हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का कहना है कि कांग्रेस सभी सीटों पर पूरा दमखम लगाकर चुनाव लड़ेगी। उप चुनाव के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने रविवार से नौगांव सादात विधानसभा क्षेत्र से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं से संवाद शुरू कर दिया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह का कहना है कि हमारे कार्यकर्ता लगातार जनसंपर्क और कोरोना काल में सेवा कर रहे हैं। सबका साथ-सबका विकास ही हमारा ध्येय है।
(यह विश्लेषण भाषा के आनन्द राय ने लिखा है।)