SANDRP | Narora Ganga Barrage
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश जल निगम को कड़ी फटकार लगाई है। दरअसल, बुलंदशहर जिले के नरौरा शहर में घरों से सीवर को जोड़ने का काम तेजी से पूरा नहीं किया जा रहा है। अब एनजीटी ने आदेश दिया है कि गंगा नदी में गंदा पानी नहीं छोड़ा जाए। एनजीटी नोदाई बांगर गांव के निवासियों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
हरित पैनल ने नरौरा में सीवेज शोधन संयंत्र के काम नहीं करने और सीवेज का गंदा पानी नदी के पास स्थित एक तालाब में छोड़े जाने पर जल निगम को फटकार लगाई है। राज्य सरकार को भी मामले में संजीदगी से काम करने के लिए कहा गया है।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ''उत्तर प्रदेश जल निगम को निश्चित तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और यह नहीं कह सकते कि गलती ठेकेदार की थी। घरों से सीवर जोड़ने का काम तेजी से पूरा किया जाना चाहिए। जिसकी समीक्षा उत्तर प्रदेश के शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव कर सकते हैं।"
एनजीटी ने कहा कि गलती के लिए जल निगम को पांच लाख रुपये का जुर्माना भरना होगा। जिसे एक महीने के अंदर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा कराना होगा। जिसे पर्यावरण कार्यों में खर्च किया जाएगा।
एनजीटी एक देखरेख समिति की रिपोर्ट पर गौर कर रही थी। जिसके प्रमुख उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जल निगम के मुख्य अभियंता ने सूचित किया था कि नरौरा परियोजना को 2015 में मंजूरी दी गई थी। परियोजना के मुताबिक यह प्रस्ताव था कि जल का शोधन करके उसे गंगा में छोड़ा जाएगा।
समिति ने कहा, ''सीवेज शोधन संयंत्र को 2018 में लगाया गया था लेकिन इसने दो फरवरी से काम करना शुरू किया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक, नरौरा एसटीपी की क्षमता चार एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) है, लेकिन वर्तमान में कुल उपयोग दो एमएलडी का है। अधिक क्षमता होने के बावजूद अब भी पांच एमएलडी गंदा सीवेज पानी नालों के माध्यम से गंगा नदी में छोड़ा जा रहा है।
अधिकरण नरौरा शहर के नोदाई बांगर गांव के निवासियों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में आरोप लगाया गया है कि एसटीपी इकाई गंदा पानी गंगा नदी में छोड़ रहा है। जिससे न केवल गंगा प्रदूषित हो रही है, बल्कि आसपास के गांवों का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है।