युवा आईएएस मनुज जिंदल ने गढ़चिरोली के आदिवासी इलाके में कायाकल्प किया, गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद से बड़ा रिश्ता

युवा आईएएस मनुज जिंदल ने गढ़चिरोली के आदिवासी इलाके में कायाकल्प किया, गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद से बड़ा रिश्ता

युवा आईएएस मनुज जिंदल ने गढ़चिरोली के आदिवासी इलाके में कायाकल्प किया, गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद से बड़ा रिश्ता

Tricity Today | युवा आईएएस मनुज जिंदल ने गढ़चिरोली के आदिवासी इलाके में कायाकल्प किया

प्रशानिक अधिकारी और वह भी आईएएस बनने का मतलब ऐश और आराम की जिंदगी, हनक और धमक ही नहीं है, यह एक दायित्व है समाज में बदलाव लाने का। समाज को नई दिशा देना और सकारात्मक बदलाव लाना एक आईएएस की पहली जिम्मेदारी है। इसी वजह से मेहनती और अच्छी सोच वाले युवकों को संघ लोक सेवा आयोग बतौर आईएएस चुनता है। आज हम एक ऐसे ही युवा आईएएस मनुज जिंदल की बात करने जा रहे हैं। मनुज वर्ष 2017 बैच के अफसर हैं और उन्हें महाराष्ट्र कैडर आवंटित किया गया है। उन्हें तीन महीने पहले महाराष्ट्र सरकार ने गढ़ चिरौली के भामरागढ़ का डिप्टी कलेक्टर बनाकर भेजा है। इस छोटी सी अवधि में मनुज ने जो काम किया उसकी तारीफ जितनी की जाए कम ही है।

मनुज के काम से पहले थोड़ा उनके बारे में व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। दिल्ली-एनसीआर के दो टॉप शहरों से उनका ताल्लुक है। मनुज ग्रेटर नोएडा जैसे स्मार्ट शहर में पैदा हुए। पिता थानसेन जिंदल बैंक अफसर थे। पिता परिवार के साथ गाजियाबाद में इंदिरापुरम जाकर बस गए थे। वह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। 2017 में मनुज ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा 53वीं रैंक के साथ पास की। मनुज ने अमेरिका की फाइनेंस यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया से अर्थशास्त्र में बीएस किया और नेशनल डिफेंस अकादमी के लिए परीक्षा पास की।

मनुज जिंदल ने 12वीं पास करते ही एनडीए पास किया था। उन्होंने वर्ष 2005 में नेशनल डिफेंस अकादमी के लिए परीक्षा पास की थी। यहां से मनुज के जीवन ने बड़ा मोड़ लिया। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें चोट लग गई और अनफिट होने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा था। उनके लिए कष्टकारी समय आया लेकिन हार नहीं मानी। नए सिरे से खुद को तैयार किया। करीब 12 साल तक पढ़ाई करने के बाद अंततः तीसरे प्रयास में वह आईएएस बनने में कामयाब हुए। दो बार वह टेलिकॉम सर्विसेज के लिए चुने गए थे।

मनुज ने बताया कि वह समय उनके लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण था, जब चोट लगने के कारण सेना की सेवा से वापस लौटना पड़ा था। दोबारा नए सिरे से शुरुआत की। मनुज ने बताया कि मैं बीकॉम करने के लिए अमेरिका गया। वहां से वापस लौटकर सिविल सर्विसेज के लिए तैयारी की और कामयाबी मिल गई।

अब गढ़चिरोली की बात करते हैं। मनुज ने तीन महीने पहले भामरागढ़ में कार्यभार संभाला। यह पूरा आदिवासी इलाका है। भामरागढ़ में तहसीलदार के कार्यालय की पुरानी बिल्डिंग बुरी हालत में थी। दरवाजे-खिड़की नहीं थे। कूड़े का ढेर था और जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ा था। मनुज ने इसके कायाकल्प की ठान ली। वह बताते हैं, मैंने सबसे पहले आसपास के गांवों का दौरा किया। युवकों और युवतियों से मिला। उनसे बात की और एक प्रशिक्षण केंद्र इस इमारत में शुरू करने की योजना बनाई। युवक-युवतियों ने श्रमदान करके इस इमारत का पुनर्निर्माण किया। अब यह इमारत भव्य और सुंदर रूप ले चुकी है।

बेहाल और अनुपयोगी इमारत अब बरबस लोगों को अपनी ओर खींच लेती है। सुंदर चित्रकारी और रंगाई ने इसे ऐसा मोहक रूप दिया है कि कोई कह नहीं सकता कि यह सरकारी इमारत है। इस प्रशिक्षण केंद्र में अब करीब 50 युवक-युवतियां आर्ट और क्राफ्ट की ट्रेनिंग ले रहे हैं। मनुज कहते हैं, यह पहला चरण है। ये युवक-युवतियां अगली भूमिका में मास्टर ट्रेनर बन जाएंगे, जो और बड़ी संख्या में इलाके के लोगों को प्रशिक्षित करेंगे। जल्दी ही इन सबको मिलाकर स्वयं सहायता समूह या कोऑपरेटिव सोसायटी का गठन किया जाएगा। इसके बाद इनके आर्ट और क्राफ्ट को ई-कॉमर्स के जरिए बाजार मुहैया करवाया जाएगा।

मनुज का यह प्रयास बहुत सुखद परिणाम लेकर आया है। उनके काम से पूरे इलाके के आदिवासी समाज में प्रशासन के प्रति आदर भाव बढ़ा है। यहां के सबसे बुजुर्ग आदिवासी मुखिया मोगल चाचा अपने डिप्टी कलेक्टर के काम से बहुत खुश हैं। वह कहते हैं, यह लड़का अफसर बड़ा मिलनसार है। हमारे बच्चों को अपना बहन-भाई मानता है। पुरानी टूटी बिल्डिंग को ऐसा बना दिया है कि अब हर कोई वहां दिन में घण्टा दो घण्टा बिताना चाहता है। तीन महीने पहले उधर आदमी तो दूर जानवर भी जाकर झांकना पसन्द नहीं करते थे।

इस पूरे इलाके में आदिवासी मराठी या अपनी स्थानीय भाषा बोलते हैं। मनुज बताते हैं, शुरू में मुझे बड़ी दिक्कत हुई लेकिन मैंने मराठी सीख ली है। अब कोई परेशानी नहीं है। यहां माड़िया आदिवासी हैं। भारत सरकार ने इस जाति के आदिवासियों को सबसे अल्पतम विकसित माना है। मतलब, ये हर दृष्टिकोण से बहुत पिछड़े हुए हैं। अब यहां के युवकों में आत्मविश्वास बढ़ रहा है। मुझे भरोसा है कि इनके पास जो कला है, वह जल्दी सबके सामने होगी। वही इन्हें आत्मनिर्भर बना देगी।

गढ़चिरोली एक नक्सल प्रभावित इलाका है। छत्तीसगढ़ की सीमा पर है और नागपुर डिवीजन में है। यह विदर्भ रीजन में है, जहां हर साल बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर लेते हैं। इन सारी परेशानियों को मनुज अच्छे से समझते हैं। मनुज का कहना है, यह क्षेत्र बहुत पिछड़ा है। खेतीबाड़ी करना आसान नहीं है। उद्योग नहीं हैं। शिक्षा का स्तर नीचे है। नौकरियों में भी यहां के लोग नहीं की बराबर हैं। लेकिन, इनके पास अपनी परम्परा, कला और प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है। इनके मौलिक गुणों और कला को और बेहतर ढंग से उभारने की जरूरत है। इससे इन्हें अच्छी आमदनी हो सकती है।

मनुज जिंदल के काम की प्रंशसा केवल स्थानीय आदिवासी ही नहीं कर रहे हैं बल्कि आईएएस एसोशिएशन ने भी की है। आईएएस एसोसिएशन ने बुधवार को मनुज जिंदल के प्रोजेक्ट की प्रशंसा करते हुए ट्वीट किया। जिसमें इस युवा आईएएस के काम की तारीफ की गई है।

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