विक्रम बत्रा: कारगिल युद्ध के हीरो, जिसके सामने मौत भी घुटने टेक गई थी

विक्रम बत्रा: कारगिल युद्ध के हीरो, जिसके सामने मौत भी घुटने टेक गई थी

विक्रम बत्रा: कारगिल युद्ध के हीरो, जिसके सामने मौत भी घुटने टेक गई थी

Google Image | विक्रम बत्रा

कैप्टन विक्रम बत्रा को करगिल युद्ध के दौरान तीन टास्क भारतीय सेना ने सौंपाgangaविक्रम बत्रा ने अपनी यूनिट के साथ तीनों चोटियों पर फतह हासिल कीgangaतीसरी लड़ाई के दौरान पाक सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन जीत हासिल कीgangaअपने जूनियर अफसर की जान बचाते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने सीने पर गोली खाई

कैप्टन विक्रम बत्रा, यह नाम एक सैनिक का नहीं, उस पराक्रमी योद्धा का है, जिसके सामने मौत भी घुटने टेक गई थी। कारगिल वॉर के इस योद्धा ने न केवल पाकिस्तान के आतंकवादियों को मार भगाया, बल्कि एक के बाद एक तीन जीत हासिल की थीं। कैप्टन विक्रम बत्रा ऐसे अकेले आर्मी ऑफिसर थे, जिन्हें युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पदोन्नति देकर लेफ्टिनेंट कर्नल से कैप्टन बनाया था। उन्होंने अपने जूनियर ऑफिसर की जान बचाने के लिए जान की बाजी लगाई। कैप्टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और शौर्य के लिए उन्हें देश के सबसे बड़े सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से विभूषित किया गया था।

कैप्‍टन विक्रम बत्रा का जन्‍म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर शहर में हुआ था। विक्रम बत्रा ने अपने सैन्‍य जीवन की शुरुआत 6 दिसंबर 1997 को भारतीय सेना में की थी। नेशनल डिफेंस एकेडमी से पास होने के बाद उन्होंने 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में जॉइनिंग की थी। इसी दौरान करगिल में भारतीय भू-भाग पर पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों और सेना ने कब्जा जमा लिया। तमाम बातचीत के बाद जब बात नहीं बनी तो भारत सरकार ने युद्ध की घोषणा कर दी। भारतीय सेना को जमीन खाली करवाने और पाक सेना को मार भगाने का आदेश दिया गया।

कमांडो ट्रेनिंग खत्म कर सीधे करगिल पहुंचे लेफ्टिनेंट बत्रा
कमांडो ट्रेनिंग खत्‍म होते ही लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को कारगिल के युद्ध क्षेत्र में तैनात कर दिया गया। करीब 1 महीने तक करगिल में क्लाइमेटाइजेशन करने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा को आखिरकार दुश्मन से लोहा लेने के लिए भेज दिया गया। 1 जून 1999 को लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा अपनी यूनिट के साथ दुश्‍मन सेना के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया था।

दुश्‍मनों का अंत करके हम्‍प और रॉक नाब माउंट वापस हासिल कीं
पहली तैनाती के साथ ही लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने हम्प और रॉक नाब की चोटियों पर कब्‍जा जमाकर पाकिस्तानी सेना को मार  गिराया। लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की इस शानदार सफलता के लिए सेना मुख्‍यालय ने उनकी पदोन्‍नति की। विक्रम बत्रा को कैप्‍टन बना दिया था। पदोन्‍नति के तुरन्त बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा को श्रीनगर-लेह मार्ग के बेहद करीब स्थित 5140 प्‍वाइंट को मुक्‍त करवाने का टास्क दिया गया। कैप्‍टन विक्रम बत्रा ने अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी का परिचय दिया। 20 जून 1999 की सुबह करीब 3:30 बजे इस प्‍वाइंट पर फतह हासिल कर ली।

तीसरा लक्ष्य प्‍वाइंट 4875 पर तिरंगा फहराने का मिला
पॉइंट 5140 पर तिरंगा फहराने के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा ने एक शानदार संदेश भेजा था। उन्‍हें देश में नई पहचान दिलाई थी। यह संदेश 'ये दिल मांगे मोर' था। प्‍वाइंट 5140 पर जीत हासिल करने के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा को 4875 प्‍वाइंट पर भारतीय ध्‍वज फहराने का लक्ष्‍य दिया गया था। कैप्‍टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर और लेफ्टिनेंट नवीन अन्‍य साथियों के साथ अपना अगला लक्ष्‍य हासिल करने के लिए निकल पड़े।

कैप्टन बत्रा को जीत और शहादत एक साथ मिलीं
करगिल में आतंकियों के भेष में पहाड़ियों पर बैठी पाकिस्‍तानी सेना से आमने-सामने की लड़ाई जारी थी। दोनों तरफ से लगातार गोलियों की बौछार हो रही थी। इसी दौरान लेफ्टिनेंट नवीन के पैर में गो‍ली लग गई। पाक सैनिक लेफ्टिनेंट नवीन को निशाना बनाते हुए लगातार फायरिंग कर रहे थे। अपने साथी की जान बचाने के लिए कैप्‍टन विक्रम बत्रा उसकी ओर दौड़ पड़े और लेफ्टिनेंट नवीन को खींच कर ला रहे थे। तभी एक गोली उनके सीने में लगी। उन्‍होंने 'जय माता दी' का उद्घोष किया और वीरगति को प्राप्‍त हो गए। कैप्‍टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को उनकी वीरता के लिए सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया।

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