Noida/Delhi : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में नोएडा ऑथोरिटी (Noida Authority) को झटका दिया है। दरअसल, कम्पनी के दिवालिया समाधान से जुड़े एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने अथॉरिटी को फाइनेंशियल क्रेडिटर मानने से इनकार कर दिया। नोएडा प्राधिकरण का डिफ़ॉल्ट रियल एस्टेट कंपनियों पर हजारों करोड़ रुपये बकाया हैं। ऐसे में प्राधिकरण यह पैसा वसूलने के लिए संघर्ष कर रहा है। अब प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की है। अगर इसमें भी सफलता नहीं मिलती तो गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरण सरकार से इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) में संशोधन करने की मांग करेंगे।
अदालत ने प्राधिकरण को फाइनेंशियल क्रेडिटर नहीं माना
नोएडा की सीईओ रितु माहेश्वरी ने कहा, "हमने सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की है। जिसमें हमने बैंकों की तरह वित्तीय लेनदार का दर्जा मांगा है। अगर हमारी समीक्षा याचिका विफल हो जाती है तो सरकार से आईबीसी कानून में बदलाव करने की मांग करेंगे।" आपको बता दें कि इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि आईबीसी में मौजूद परिभाषा के आधार पर प्राधिकरण को दिवालिया कार्यवाही में एक परिचालन लेनदार (ऑपरेशनल क्रेडिटर) का दर्जा प्राप्त होगा, न कि वित्तीय लेनदार (फाइनेंशियल क्रेडिटर) माना जाएगा। ऐसे में प्राधिकरण लेनदारों की समिति (सीओसी) में नहीं रहेगा। इस कानून में वित्तीय लेनदार को शीर्ष पर रखा गया है, जो दिवाला समाधान प्रक्रिया का संचालन करते हैं और मतदान से लेकर पूरी देखरेख करते हैं।
भूमि और निर्माण के लिए कच्चा माल देने वाले प्राथमिक नहीं
सीओसी में ऑपरेशनल क्रेडिटर का कोई स्थान नहीं होता है। यदि कोई परियोजना समाप्त हो जाती है तो पैसा पहले वित्तीय लेनदारों के पास जाएगा। परिचालन लेनदार वह होते हैं, जिन्होंने किसी परियोजना के लिए भूमि आवंटित की है या निर्माण के आपूर्तिकर्ता लेनदार हैं। जिन्होंने कच्चा माल दिया है।दिवाला प्रक्रिया में भरपाई के लिए बैंकों, संस्थागत उधारदाताओं और खरीदारों जैसे वित्तीय लेनदारों की देनदारियों को पूरा करने के बाद इन पर विचार होता है। नोएडा अथॉरिटी की सीईओ का मानना है कि सीओसी में शामिल होने से दिवाला मामलों के त्वरित समाधान होने की संभावना है। जो घर खरीदारों के लिए एक राहत होगी। वहीं, इससे अथॉरिटी को बड़ा वित्तीय नुकसान हो सकता है।
सीओसी में नहीं रहने से अथॉरिटी को बड़ा झटका लगेगा
रितु माहेश्वरी ने कहा, "अगर नोएडा को वित्तीय लेनदार के रूप में नहीं माना जाता है तो दिवाला समाधान प्रक्रिया में हमारी कोई सुनवाई नहीं होगी और यह हमें बड़ा वित्तीय झटका होगा।" उन्होंने कहा कि इससे प्राधिकरण की वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह शहर में विकास कार्यों के लिए हानिकारक होगा। आपको बता दें कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों ने केवल 10% अग्रिम भुगतान पर डेवलपर्स को बड़ा भूमि आवंटन किया है। इससे बिल्डरों पर इनके हजारों करोड़ रुपये बकाया हो गए हैं, क्योंकि डेवलपर्स वक्त पर भुगतान नहीं किया। शहर में कई प्रमुख डेवलपर्स हैं, जिनके खिलाफ इन्सॉल्वेंसी कोर्ट (एनसीएलटी) में मुकदमे चल रहे हैं। जिसमें जेपी इंफ्राटेक, सुपरटेक, लॉजिक्स और 3-सी समूह की कंपनियां शामिल हैं। इन सभी पर विकास प्राधिकरण के हजारों करोड़ रुपए बकाया हैं।
तीनों अथॉरिटी के बिल्डरों पर 30 हजार करोड़ रुपये बकाया
ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं में भूमि आवंटन के सापेक्ष बिल्डरों पर नोएडा प्राधिकरण का कुल बकाया लगभग 12,000 करोड़ रुपये है। इसमें से लगभग 3,000 करोड़ रुपये दिवाला कार्यवाही में फंस गए हैं। तीनों प्राधिकरणों को मिलाकर बकाया राशि 30,000 करोड़ रुपये है। रितु माहेश्वरी ने कहा, "नोएडा अथॉरिटी वित्तीय लेनदार नहीं हैं। आईबीसी में इस स्थिति के कारण डेवलपर्स कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं।" आपको बता दें कि एक कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के तहत रियल एस्टेट कंपनी का पहला दायित्व परियोजना को पूरा करके फ्लैट खरीदारों के हितों को सुरक्षित करना है। मौजूदा वित्तीय तनाव वाले दौर में रियल्टी कंपनी के लिए परियोजना को पूरा करना बड़ी चुनौती है। इसलिए एक परिचालन लेनदार को ही अधिकतम कटौती का सामना करना पड़ेगा।
कुल मिलाकर अब विकास प्राधिकरणों को समझ आ रहा है कि किस तरह रियल एस्टेट डेवलपर्स ने संसाधनों की लूट की है। कानून की कमियों का फायदा उठाकर तीनों प्राधिकरणों को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया है।