Noida : समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के दिग्गज नेता और रामपुर के विधायक मोहम्मद आजम खान 9 साल के लिए राजनीति से बाहर हो चुके हैं। उन्हें आज (गुरुवार) भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी पाते हुए एमपी-एमएलए कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई है। कानून की एक व्यवस्था ने उन्हें हाथों-हाथ जमानत दे दी। जिसकी बदौलत आजम खान को राहत मिल गई, लेकिन दूसरी व्यवस्था उनके पॉलीटिकल करियर पर बड़ा दुष्प्रभाव डालेगी। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का असर यह हुआ है कि अब आजम खान उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य हो गए हैं। मतलब, वह अब विधानसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकते। इतना ही नहीं वह अगले 9 वर्षों तक कोई चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। सवाल यह उठता है कि आजम खान के पास अब क्या कानूनी विकल्प हैं? जिनका सजा मिलने और जमानत पर छूटने के तुरंत बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए आजम खान ने जिक्र किया है।
क्या है कानून
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। राजनीति से अपराधियों को दूर रखने के लिए कहा था कि सांसद-विधायक निचली अदालत में दोषी करार दिए जाने की तिथि से ही अयोग्य हो जाएंगे। इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था, जो आपराधिक मुकदमों में दोषी करार सांसदों व विधायकों को ऊपरी अदालत में अपील लंबित रहने तक अयोग्यता से बचाता था। इस फैसले के बाद निर्धारित हो गया कि दो साल या इससे अधिक वक्त की सजा पाए जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बरकरार नहीं रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई 2013 को जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार दिया था। कानून की धारा को निरस्त कर दिया गया था। अदालत ने व्यवस्था दी थी कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही विधायक, विधान परिषद सदस्य या सांसद पर अयोग्यता प्रभावी होती है। अब सुप्रीम कोर्ट की यही व्यवस्था मोहम्मद आजम खान पर लागू हो गई है। कुल मिलाकर साफ है कि वह अदालत का फैसला आते ही उत्तर प्रदेश विधानसभा से अयोग्य हो गए हैं। एक तरह से उनकी सदस्यता समाप्त हो चुकी है।
अब आजम खान के पास है यह विकल्प
रामपुर में एमपी-एमएलए कोर्ट से सजा सुनने और जमानत मिलने के बाद मोहम्मद आजम खान बाहर निकले। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत की। मोहम्मद आजम खान ने कहा, "अधिकतम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान है। अधिकतम सजा सुनाई गई है। हाथों हाथ जमानत देने की व्यवस्था है। लिहाजा, मुझे जमानत दे दी गई है। मैं इंसाफ की लड़ाई लडूंगा।" इसका मतलब साफ है कि आजम खान निचली अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और वह हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। आपको बता दें कि ऐसे मामलों को लेकर 10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले पर एक बार फिर मुकदमा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। 18 फरवरी 2019 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने एनजीओ ‘लोक प्रहरी’ की याचिका पर अपना फैसला सुनाया। उस मुकदमे में एनजीओ ने आरोप लगाया कि लिली थॉमस मामले में 2013 के शीर्ष अदालत के फैसले का सांसद, विधायक और विधान पार्षद उल्लंघन कर रहे हैं। आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि के बावजूद उनकी सदस्यता बनी हुई हैं। राज्य सरकारें और विधान मंडल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं कर रहे हैं।
'लोक प्रहरी' ने यह तर्क दिया
एनजीओ ने अदालत को बताया कि शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई 2013 को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को निरस्त कर दिया था। उसमें दोषी ठहराए जा चुके सांसदों, विधायकों को इस आधार पर सदस्य बने रहने की अनुमति दी गई थी कि दोषसिद्धि के तीन महीने के भीतर उनकी ओर से अपील दायर की गई हैं। अदालत ने कहा था, ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) की शक्ति के बारे में एकमात्र सवाल है और हम कहते हैं कि यह अधिकारातीत (अल्ट्रा वायर्स) है और अयोग्यता दोषसिद्धि की तारीख से होगी।' एनजीओ ने नई याचिका में कहा कि सांसद-विधायक की अयोग्यता दोषसिद्धि के तुरंत बाद हो जाती है और अपीलीय अदालत दोषसिद्धि पर रोक लगाकर पूर्व प्रभाव से सदस्यता को बहाल नहीं कर सकती है। 2013 का फैसला अपीलीय अदालतों को किसी सांसद, विधायक की दोषसिद्धि पर रोक लगाने से रोकता है।
अपीलीय अदालत को रोक लगाने का अधिकार
पीठ ने कहा, "कृपया हमें फैसले की उन पंक्तियों को दिखाएं जिसमें कहा गया है कि दोषसिद्धि के खिलाफ याचिका दिए जाने पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी।" पीठ ने आगे कहा, "कानून बिल्कुल साफ है कि अगर कोई व्यक्ति दोषी ठहराया जाता है और उसकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई गई है तो उसकी सदस्यता चली जाएगी। अगर दोषसिद्धि पर रोक लगा दी गई है तो वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकता है। अगर कोई रोक नहीं लगाई गई है तो वह सदस्यता के लिए अयोग्य हो चुका है।" पीठ ने यह भी कहा कि अपीलीय अदालतें विरले ही आपराधिक मामलों में सांसदों और विधायकों की दोषसिद्धि पर रोक लगाती हैं। शीर्ष अदालत ने कहा था कि अगर कोई सांसद या विधायक किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है तो वह सदन की सदस्यता से तत्काल अयोग्य हो जाएगा और उसे अपील दायर करने के लिये तीन महीने का वक्त नहीं दिया जाएगा, जैसा पहले प्रावधान था।
आजम खान 9 साल के लिए अयोग्य, बस हाईकोर्ट से उम्मीद
कुल मिलाकर साफ है कि रामपुर के विधायक मोहम्मद आजम खान 3 साल की सजा होने के चलते उत्तर प्रदेश विधानसभा से अयोग्य हो गए हैं। अब उनके पास केवल एक मात्र कानूनी विकल्प हाईकोर्ट में अपील दाखिल करके राहत हासिल करना है। हालांकि, यह राहत मिलने की संभावना बेहद कम है। आपको यह भी बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले ने सामान्य लोगों और चुने हुए जन प्रतिनिधियों के बीच भेदभाव को समाप्त कर दिया था। सांसद और विधायकों को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत सुरक्षा हासिल थी। अब आजम खान पर जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) भारी पड़ेगी। दरअसल, कानून की इस धारा के तहत अगर किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा सुनाई जाती है तो वह सजा की अवधि और अतिरिक्त छह साल के लिए अयोग्य हो जाएगा। मतलब, साफ है कि मोहम्मद आजम खान सजा सुनने से लेकर अगले 9 वर्षों तक चुनावी राजनीति से फिलहाल बाहर हो चुके हैं।
रामपुर के नवाब को हराकर राजनीति शुरू की
14 अगस्त 1948 को एक सामान्य परिवार में जन्मे मोहम्मद आजम खान ने रामपुर के नवाब को हराकर राजनीतिक करियर की शुरुआत की। साल 1980 में जनता पार्टी सेक्यूलर के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा और नवाब मंजूर अली खान को हराकर कामयाबी हासिल की थी। तब से 42 वर्षों में वह रामपुर के 10 बार विधायक रहे। आज़म दूसरी बार लोकदल, तीसरी बार जनता दल और फिर लगातार समाजवादी पार्टी के विधायक रहे हैं। वह रामपुर से लोकसभा के सांसद रहे और समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। आजम खान पहले मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सरकारों में कद्दावर कैबिनेट मिनिस्टर रहे थे। अखिलेश यादव की सरकार में उनके पास 7 विभाग थे। आजम खान ने साल 2012 में रामपुर में मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की स्थापना की। जिससे जुड़े विवादों के चलते उन्हें करीब 3 साल जेल में रहना पड़ा है। आजम खान अभी 74 साल के हैं। वह बीमार भी हैं। अगर गुरुवार को उनके खिलाफ आया फैसला कायम रहता है तो अगले 9 वर्षों में उनकी उम्र 83 वर्ष हो जाएगी। कुल मिलाकर जानकारों का मानना है कि आजम खान अपने पॉलीटिकल करियर के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गए हैं।