अथॉरिटी को नक्शा पास करना होगा और जीरो पीरियड देना पड़ेगा, बोर्ड की ओर से लगाई गई पाबंदी रद्द

नोएडा स्पोर्ट्स सिटी विवाद पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : अथॉरिटी को नक्शा पास करना होगा और जीरो पीरियड देना पड़ेगा, बोर्ड की ओर से लगाई गई पाबंदी रद्द

अथॉरिटी को नक्शा पास करना होगा और जीरो पीरियड देना पड़ेगा, बोर्ड की ओर से लगाई गई पाबंदी रद्द

Tricity Today | Noida Authority and Allahabad High Court

Noida/Prayagraj : नोएडा के सेक्टर-150 में स्पोर्ट्स सिटी से जुड़े ऐस बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी (Noida Authority) के विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बड़ा फैसला दिया है। नोएडा अथॉरिटी को तगड़ा झटका लगा है। दरअसल, सेक्टर-150 में स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट के तहत भूमि आवंटन किया गया था, जिसमें ऐस बिल्डर भी हिस्सेदार है। कंपनी ने जमीन की एवज में पूरा पैसा जमा कर दिया दिया। इसके बावजूद अथॉरिटी ने पूरी जमीन पर आज तक कब्जा नहीं दिया है। जब कंपनी ने भूखंड पर निर्माण करने के लिए संशोधित नक्शे दाखिल किए तो अथॉरिटी ने बोर्ड बैठक में लगाई गई पाबंदियों का हवाला देते हुए नक्शा पास करने से इंकार कर दिया। दूसरी तरफ, प्राधिकरण लगातार पैसा की मांग कर रहा है। कंपनी ने भुगतान रोका तो भूखंड आवंटन रद्द करने के लिए नोटिस भेज दिया गया। अब हाईकोर्ट ने प्राधिकरण बोर्ड की और से लगाई गई पाबंदियों को रद्द कर दिया है। कंपनी को जमीन पर कब्जा देने और नक्शे पास करने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं, कंपनी को भूखंड आवंटन की तारीख से लेकर अब तक जीरो पीरियड का लाभ देना पड़ेगा। ब्याज की धनराशि समायोजित करनी पड़ेगी।

क्या है पूरा मामला
ऐस इंफ्रासिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कंपनी ने हाईकोर्ट को बताया कि प्राधिकरण ने 2014-15 में स्पोर्ट्स सिटी योजना लॉन्च की थी। कंपनियों के कंसोर्टियम में ऐस इंफ्रासिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल थी। कंसोर्टियम ने 12,00,000 वर्गमीटर भूमि का आवंटन 19,400 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से हासिल किया था। इसमें से ऐस इंफ्रासिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित कुल क्षेत्रफल 60,000 वर्गमीटर था। याचिकाकर्ता कंपनी ने जरूरी 20% धनराशि 23,28,00,000 रुपये जमा की और अथॉरिटी ने लीज डीड कर दी थी। लेकिन, इस भूखंड को चिह्नित करके वास्तविक भौतिक कब्जा नहीं दिया गया था। किसानों और भूमि मालिकों के साथ विवादों के कारण कंपनी को आज तक जमीन पर कब्जा नहीं मिल पाया। दूसरी तरफ पूरे कंसोर्टियम को केवल 3,00,000 वर्गमीटर भूमि मिली, जबकि आवंटन 12,00,000 वर्गमीटर का किया गया था। ऐस इंफ्रासिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने लीज डीड करवाने के बाद 8 मार्च 2016 को भवन निर्माण योजनाओं की मंजूरी प्राप्त की। हालांकि, बड़े हिस्से का निर्माण शुरू नहीं हो सका। क्योंकि भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया और क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा अस्तित्वहीन था।

कंपनी ने अथॉरिटी में रिव्यू दाखिल किया
ऐस इंफ्रासिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को आगे बताया कि ऐसी परिस्थिति में अथॉरिटी में 26 अगस्त 2022 को आवेदन किया। भवन योजनाओं का पुनरीक्षण अनुमोदन करने की मांग की। यह भी बताया कि 60,000 वर्गमीटर जमीन के लिए 31.03.2023 तक 116,40,10,476 रुपये का भुगतान करना था। कंपनी 134,37,86,891 रुपये का भुगतान कर चुकी है।

और पैसा चुकाने का नोटिस भेज दिया
याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील ने अदालत से आग्रह किया कि दिनांक 07.04.2015 को ऐस इंफ्रासिटी के नाम सब-लीज डीड हो गई थी। नोएडा अथॉरिटी संशोधित नक्शों को मंजूरी नहीं दे रही है। आज तक जमीन पर काम शुरू नहीं हो पाया है। कंपनी को कब्जा नहीं मिला है। कुल प्रीमियम 1,16,40,10,476 रुपये के मुकाबले 134,37,86,891 रुपये का भुगतान किया जा चुका है। इसके बावजूद अथॉरिटी ने 79,01,14,116 रुपये का और भुगतान करने का नोटिस भेजा है। भुगतान न करने पर याचिकाकर्ता को आवंटन रद्द करने की धमकी दी गई है। अथॉरिटी हर तरह से केवल अपना फायदा देख रही है।

कोर्ट में नहीं टिक पाया प्राधिकरण
दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने और रिकॉर्ड देखने के बाद अदालत ने कहा, 'इस न्यायालय ने पाया कि पट्टा विलेख दिनांक 19.12.2014 को हो गया था। नोएडा अथॉरिटी ने मेसर्स क्रेस्ट के पक्ष में निष्पादित किया। क्षेत्रफल 60,000 वर्गमीटर मेसर्स क्रेस्ट प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड को सब-लीज किया गया है। इसके बाद परियोजना को विकसित करना और पूरा करना था। ऐस इंफ़्रासिटी के नाम से यह प्रोजेक्ट बाज़ार में लॉन्च किया गया। विकास प्राधिकरण ने दिनांक 08.03.2016 को भवन निर्माण योजनाओं की मंजूरी प्रदान की। विकास प्राधिकरण का कहना है कि याचिकाकर्ताओं को बाधा मुक्त कब्ज़ा सौंप दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने इसके बाद वर्ष 2018 में निर्माण शुरू कर दिया था। इस तथ्य में योग्यता नहीं मिली है। निर्माण साबित करने के लिए प्राधिकरण ने गूगल इमेज पेश की है। जिनके पिक्सल बहुत खराब हैं। इनसे निर्माण या अतिक्रमण की वास्तविकता का पता नहीं लग रहा है। विकास प्राधिकरण ने दावा किया है कि प्रश्नगत भूमि का कब्ज़ा याचिकाकर्ता को दे दिया गया था, लेकिन फाइल में न तो पजेशन मेमो संलग्न किया है और न ही उस तारीख का उल्लेख किया गया है, जिस दिन भूमि का कब्ज़ा दिया गया था। कोर्ट ने आगे कहा कि रिकॉर्ड दर्शाता है कि प्राधिकरण ने लोटस ग्रीन कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को शून्य अवधि का लाभ दिया है। आवंटन की तारीख से 30.09.2016 तक के लिए ज़ीरो पीरियड दिया गया है। 

अथॉरिटी ने हाईकोर्ट के आदेश अनदेखे किए
अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि दिनांक 12.09.2016 को एक पत्र के माध्यम से कंसोर्टियम ने अथॉरिटी को बताया कि किसानों के हस्तक्षेप के कारण मौके पर काम नहीं हो पा रहा है। कंसोर्टियम के प्रमुख सदस्य ने 2017 में रिट याचिका के माध्यम से न्यायालय को भी जानकारी दी थी। इस न्यायालय ने दिनांक 15.12.2017 को वह याचिका निस्तारित करते हुए आदेश दिया था कि कंपनी के आवेदन पर अथॉरिटी निर्णय ले। जमीन का कब्ज़ा सौंप दें। कंसोर्टियम के लीड मेंबर को ज़ीरो पीरियड दें। प्राधिकरण की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो लीड सदस्य ने पुनः 2019 न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जिसे इस न्यायालय ने 29.5.2019 को फिर आदेश दिया। कंसोर्टियम शून्यकाल का लाभ देते हुए एक महीने के भीतर जमीन का कब्जा दिया जाए। रिकॉर्ड दर्शाते हैं कि संपूर्ण भूमि का कब्ज़ा कंसोर्टियम को नहीं दिया गया है। इस दौरान दिनांक 18.01.2021 को नोएडा अथॉरिटी ने अपनी 201वीं बोर्ड बैठक की। जिसमें बिल्डिंग प्लान और अन्य मंजूरियों पर रोक लगा दी गई। अब जब याचिकाकर्ता ने संशोधित नक्शा मंजूर करवाने के लिए दिनांक 26.8.2022 को एक आवेदन किया तो उसका आज तक निस्तारण नहीं किया है। ऊपर से दिनांक 29.3.2023 को डिमांड नोटिस भेजकर किश्तों और वार्षिक पट्टा किराये के बकाया के रूप में 79,01,14,116 रुपये की मांग की गई है।

अब अदालत ने सुनाया यह आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने अपने आदेश में लिखा है, "इन सारे तथ्यों आलोक में इस न्यायालय को निर्णय लेना है कि क्या याचिकाकर्ता शून्य अवधि के लाभ का हकदार है। भवन योजनाओं की संशोधित मंजूरी पर प्राधिकरण की 201वीं बोर्ड बैठक के प्रतिबंध वैध हैं? अभिलेखों से हमें पता चला कि याचिकाकर्ता ने आवंटित भूखण्ड के प्रीमियम के विरुद्ध 1,34,37,86,891 रुपये की धनराशि जमा की है, जो वास्तविक कीमत 1,16,40,10,476 रुपये से अधिक है। काम शुरू नहीं हुआ और विकास प्राधिकरण ने प्रीमियम राशि स्वीकार की है। भवन योजनाओं को मंजूरी नहीं दी गई और आगे 79,01,14,116 रुपये की बढ़ी हुई मांग की गई। हमारी राय में 201वीं बोर्ड बैठक के प्रतिबंध अनुचित हैं। याचिकाकर्ता की संशोधित भवन योजनाओं को मंजूरी दी जानी चाहिए। पैसे की अतिरिक्त मांग पूरी तरह से अनुचित है। नोएडा अथॉरिटी की 201वीं बोर्ड बैठक में लगाए प्रतिबंध गलत हैं।" अदालत ने आगे कहा, "इस चर्चा के आलोक में हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता कंपनी अपने हिसाब से काम पूरा नहीं कर पाई। पूरे क्षेत्र पर कब्ज़ा नहीं मिला। आंदोलन और किसानों द्वारा मौके पर रुकावट की गई। नोएडा की 201वीं बोर्ड बैठक के प्रतिबंध गलत हैं। इस प्रकार याचिकाकर्ता भूमि आवंटन की तिथि से अब तक शून्य अवधि का लाभ लेने का हकदार है। प्राधिकरण की अतिरिक्त मुआवजे की मांग ख़ारिज की जाती है। लीज प्रीमियम की किस्त और वार्षिक लीज किराया मांग ख़ारिज की जाती है। सरकार और अथॉरिटी को निर्देशित किया जाता है कि लीज प्रीमियम राशि की वसूली न करें। साथ ही बीच की अवधि के लिए याचिकाकर्ता से पट्टा किराया नहीं लिया जाएगा। कंपनी पर 19.12.2014 से अब तक की बकाया ब्याज राशि भी समायोजित करें। ऐस इंफ्रासिटी की संशोधित भवन योजना जो 60,000.54 वर्गमीटर पर है, यहां ऊपर की गई टिप्पणियों पर विचार करते हुए मंजूर की जाए।"
यह फ़ैसला मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की अदालत ने 9 नवंबर 223 को सुनाया है। ऐस इंफ्रासिटी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फ़हीम अहमद ने पक्ष रखा। सरकार और प्राधिकरण की ओर से चीफ स्टैंडिंग काउंसिल, मनीष गोयल, कौशलेंद्र नाथ सिंह और राहुल सहाय अदालत के सामने हाज़िर हुए थे।

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