Noida News : जानवरों के अधिकारों के लिए संघर्षरत समाजसेवी रंजन तोमर द्वारा दाखिल किए गए एक महत्वपूर्ण आरटीआई से कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इन खुलासों से पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में भी हाथियों की मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह बढ़ती जा रही है, जो चिंता का विषय है।
चिंताजनक रिपोर्ट
रंजन तोमर ने बताया कि वर्ष 2019-20 में करंट लगने से 76 हाथियों की मौत हुई थी। अगले वर्ष 2020-21 में यह संख्या कुछ कम होकर 65 हो गई। वर्ष 2021-22 में यह और भी कम होकर 57 हुई, लेकिन वर्ष 2022-23 में यह बढ़कर चौंकाने वाले 100 हो गई। यह वृद्धि अत्यंत चिंताजनक है। सबसे अधिक हाथी ओडिशा, आसाम, तमिलनाडु और कर्नाटक में मारे जा रहे हैं।
ट्रेन हादसों में भी नहीं आई कोई बड़ी कमी
ट्रेन हादसों में भी हाथियों की मौत का सिलसिला जारी है। वर्ष 2018-19 में 19 हाथियों की मौत हुई थी, जो वर्ष 2019-20 में घटकर 14 हो गई। वर्ष 2020-21 में यह 12 हो गई, लेकिन वर्ष 2021-22 और वर्ष 2022-23 में फिर से बढ़कर 15-15 हो गई। इससे स्पष्ट है कि ट्रेन हादसों में भी कोई बड़ी कमी नहीं आई है।
सरकार द्वारा किए गए प्रयास, लेकिन...
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बताया है कि सरकार ने इस दिशा में कई प्रयास किए हैं। इनमें राज्य सरकारों को प्रोजेक्ट टाइगर, एलीफैंट के तहत आर्थिक पैकेज उपलब्ध करवाना, राज्यों एवं बिजली कंपनियों को करंट से बचाव के लिए उपायों की एडवाइजरी जारी करना, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ऊर्जा मंत्रालय के साथ लगातार मीटिंग करना और भिन्न मंत्रालयों, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, विश्व बैंक आदि द्वारा हाथियों को होने वाली क्षति सम्बन्धी एक पुस्तिका प्रकाशित करना शामिल हैं।
भूमिका को और मजबूत करनी होगी : रंजन तोमर
समाजसेवी रंजन तोमर का कहना है कि इन सबके बावजूद हाथियों की मृत्यु दर में कोई सुधार नहीं आया है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर और अधिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी, साथ ही राज्य सरकारों को भी इस दिशा में अपनी भूमिका को और मजबूत करनी होगी।