बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बनाई 14 चौकियां, गांवों में मुनादी कराकर कर रहे जागरूक 

गौतमबुद्ध नगर प्रशासन ने कसी कमर : बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बनाई 14 चौकियां, गांवों में मुनादी कराकर कर रहे जागरूक 

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बनाई 14 चौकियां, गांवों में मुनादी कराकर कर रहे जागरूक 

Google Image | ये फोटो पिछले साल की है। डूब क्षेत्र में रहने वाले लोगों का ट्रैक्टर के जरिए रेस्क्यू किया गया था।

Noida News : प्रदेश सरकार ने बाढ़ प्रभावित जिलों को लेकर एक लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में गौतमबुद्ध नगर का भी नाम शामिल है। बताया जा रहा है कि जिले में करीब 14 ऐसी जगह है जहां कभी भी बाढ़ आ सकती है। जिला प्रशासन अब इन जगहों पर बाढ़ चौकियों का निर्माण करा रहा है। प्रभावित गांवों में रहने वाले लोगों को मुनादी कराकर दूसरे स्थान पर जाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। प्रशासनिक टीम ने तीनों तहसीलों में प्रभावित गांवों के साथ ही आबादी, गोशाला और मवेशियों का ब्योरा भी तैयार कर लिया है। लोगों के लिए 18 राहत शिविर तैयार किए जा रहे हैं। 

गांवों और डूब क्षेत्र में बने मकानों का कराया सर्वे
जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने बताया कि तीनों तहसीलों में यमुना और हिंडन किनारे बसे गांवों और डूब क्षेत्र में बने मकानों का सर्वे कराया गया है। सर्वे में सदर तहसील की टीम ने 52 बाढ़ प्रभावित गांवों का चयन किया है। इनमें 12 गैर आबादी वाले हैं। इन गांवों के डूब क्षेत्र में करीब एक हजार मकान बने हैं, जिनमें छह हजार लोग रह रहे हैं। गोशालाएं भी हैं, जिनमें करीब 1500 मवेशी हैं। सदर तहसील के डूब क्षेत्र में राहत के लिए छह बाढ़ चौकियां बनाई जा रही हैं। दादरी में 21 गांवों के 700 घरों में 2800 लोग रह रहे हैं। यहां 12 आश्रय गृह बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। गोशाला में 185 मवेशी हैं। यहां बाढ़ चौकियां बनाई जा रही हैं। 

पिछले साल बाढ़ में 7000 लोग हुए थे प्रभावित
वहीं, जेवर में 25 गांवों के डूब क्षेत्र में 2500 लोग रह रहे हैं। 81 मवेशियों को चिह्नित कर बाढ़ चौकियां बनाई जा रही हैं। बता दें कि गौतमबुद्ध नगर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लिहाज से संवेदनशील जिलों में गिना जाता है। जिले के 98 गांव हिंडन और यमुना से सटे हैं। पिछले साल बाढ़ के कारण डूब क्षेत्र में रहने वाले करीब 7000 लोग और 5940 मवेशी प्रभावित हुए थे, जिन्हें प्रशासनिक टीम ने सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया था। लोगों को कई दिनों तक सामुदायिक केंद्रों और शिविरों में रहना पड़ा था।

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