जिसकी वजह से रितु माहेश्वरी के खिलाफ हुआ था गैर जमानती वारंट जारी, उस मामले में नोएडा प्राधिकरण को मिली राहत

बड़ी खबर : जिसकी वजह से रितु माहेश्वरी के खिलाफ हुआ था गैर जमानती वारंट जारी, उस मामले में नोएडा प्राधिकरण को मिली राहत

जिसकी वजह से रितु माहेश्वरी के खिलाफ हुआ था गैर जमानती वारंट जारी, उस मामले में नोएडा प्राधिकरण को मिली राहत

Tricity Today | Ritu Maheshwari

Noida News : सेक्टर-82 बस ट्रर्मिनल की जमीन को लेकर उच्च न्यायालय में चल रहे अवमानना के दो केस खारिज हो गए। इनमें एक केस मनोरमा कुच्छल और दूसरा आरके अग्रवाल से जुड़ा हुआ है। ये दोनों केस खारिज होने से नोएडा प्राधिकरण को राहत मिली है। अधिकारियों का कहना है कि बस ट्रर्मिनल से संबंधित कोई केस किसी न्यायालय में नहीं है। हालांकि इस मामले में केस हारने वालों के पास उच्चतम न्यायालय का विकल्प बचा हुआ है।

मनोरमा कुच्छल मामले में रितु माहेश्वरी की परेशानियां बढ़ी थी
मनोरमा कुच्छल मामले में कुछ महीने पहले उच्च न्यायालय ने तारीख में देरी से पहुंचने पर नोएडा प्राधिकरण की तत्कालीन सीईओ रितु माहेश्वरी के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिए थे। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी।

कोर्ट ने दिया यह आदेश
नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी अविनाश त्रिपाठी ने बताया कि दोनों केस खारिज होने के साथ-साथ उच्च न्यायालय ने आदेश भी दिया है। आदेश दिया है कि 2,520 वर्ग मीटर जमीन प्राधिकरण से ले लें और 6,116 मीटर जमीन प्राधिकरण को वापस कर दें। प्राधिकरण अधिकारियों ने बताया कि 2,520 वर्ग मीटर जमीन जो प्राधिकरण लेगा, उसका मुआवजा देना होगा। जिलाधिकारी स्तर से खेती की जमीन के रेट पर मुआवजा तय किया गया है। यह मुआवजा राशि करीब 1 करोड़ 33 लाख रुपए का होगा।

6,116 मीटर जमीन पर बस टर्मिनल का निर्माण नहीं
अधिकारियों ने बताया कि दूसरी तरफ दोनों केस में करीब 700 करोड़ रुपए मुआवजा दोनों केस में मांगा जा रहा था। अधिकारियों ने यह भी दावा किया कि 6,116 मीटर जो जमीन वापस की जानी है, उस पर बस टर्मिनल का कोई निर्माण नहीं है। यह जमीन बाहर है,  इसका उपयोग मास्टर प्लान में ग्रीन बेल्ट का है।

क्या है मामला
नोएडा के सेक्टर-82 में अथॉरिटी ने 30 नवंबर 1989 और 16 जून 1990 को 'अर्जेंसी क्लोज' के तहत भूमि अधिग्रहण किया था। जिसे जमीन की मालकिन मनोरमा कुच्छल ने चुनौती दी थी। वर्ष 1990 में दायर मनोरमा की याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर 2016 को फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने 'अर्जेंसी क्लॉज' के तहत किए गए भूमि अधिग्रहण को रद्द कर दिया था। मनोरमा कुच्छल को नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत सर्किल रेट से दोगुनी दरों पर मुआवजा देने का आदेश दिया था। इसके अलावा प्रत्येक याचिका पर 5-5 लाख रुपये का खर्च आंकते हुए भरपाई करने का आदेश प्राधिकरण को सुनाया था।

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