फोर्टिस हॉस्पिटल ने बड़ी सफलता हासिल की, जानलेवा दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीज 15 दिन में स्वस्थ हुआ, पढ़ें खास रिपोर्ट

अच्छी खबरः फोर्टिस हॉस्पिटल ने बड़ी सफलता हासिल की, जानलेवा दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीज 15 दिन में स्वस्थ हुआ, पढ़ें खास रिपोर्ट

फोर्टिस हॉस्पिटल ने बड़ी सफलता हासिल की, जानलेवा दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीज 15 दिन में स्वस्थ हुआ, पढ़ें खास रिपोर्ट

Google Image | Fortis Hospital

  • फोर्टिस अस्पताल ने एक 43 साल के व्यक्ति को इलाज के बाद जीवनदान दिया है
  • उसे मल्टीपल मायलोमा नाम की दुर्लभ बीमारी थी
  • यह एक तरह का कैंसर है, जो श्वेत रक्त कोशिकाओं या प्लाज्मा कोशिकाओं में पैदा होता है
  • इस कैंसर से ग्रस्त प्लाज्मा कोशिकाएं बोन मैरो में जमा हो जाती हैं
नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल ने एक 43 साल के व्यक्ति को इलाज के बाद जीवनदान दिया है। उसे जानलेवा और दुर्लभ बीमारी थी। अमूमन ऐसी बीमारी में मरीज की जान चली जाती है। अगर प्राथमिक स्टेज है, तो भी उसे स्वस्थ होने में महीने भर से ज्यादा का वक्त लगता है। मरीज़ को पीठ में गंभीर दर्द की शिकायत थी। जांच में पता चला कि उसे मल्टीपल मायलोमा नाम की दुर्लभ बीमारी थी। यह एक तरह का कैंसर है, जो श्वेत रक्त कोशिकाओं या प्लाज्मा कोशिकाओं में पैदा होता है।

इस कैंसर से ग्रस्त प्लाज्मा कोशिकाएं बोन मैरो में जमा हो जाती हैं और स्वस्थ रक्त कोशिकाओं के चारों तरफ घेरा बना लेती हैं। ये स्वस्थ कोशिकाएं एंटीबॉडी का निर्माण करती हैं और शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं। इनके नष्ट होने से जान को खतरा पैदा हो जाता है। इसलिए मरीज का यथाशीघ्र बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) करना पड़ता है। नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल में हेमैटोलॉजी तथा बोन मैरो ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर और प्रमुख, डॉ राहुल भार्गव और उनकी टीम ने तत्परता दिखाते हुए बीएमटी कर मरीज़ की ज़िंदगी बचा ली।

क्या है यह बीमारी
बोन मैरो ट्रांसप्लांट में क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी बोन मैरो को स्वस्थ बोन मैरो स्टेम सेल से बदला जाता है। बोन मैरो हड्डियों के अंदर मौजूद नरम, वसायुक्त टिश्यू होता है। दरअसल बोन मैरो रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है। स्टेम सेल बोन मैरो में मौजूद अविकसित कोशिकाएं होती हैं, जो रक्त कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। बोन मैरो ट्रांसप्लांट की तकनीक में अब क्रांतिकारी बदलाव आ चुका है। यह पेरीफेरल ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, यानि प्लेटलेट्स एफेरेसिस जैसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन की तरह ही है। इसके लिए एनेस्थीसिया की जरूरत नहीं होती। 

मरीज को कीमोथेरेपी की जरूरत थी
उक्त मरीज की जांच से यह पता चला कि बीएमटी से पहले उसे कीमोथेरेपी की आवश्यकता थी। कीमोथेरेपी के बाद 10वें दिन डॉक्टरों की टीम ने मरीज़ के शरीर में स्टेम सेल्स डालीं। इससे शरीर में नई स्वस्थ कोशिकाओं का निर्माण आरम्भ हो गया। अस्पताल में आधुनिक उपकरणों और डॉक्टरों की विशेषज्ञता की वजह से बीएमटी प्रक्रिया बिना किसी परेशानी के पूरी हुई। 15 दिनों के भीतर मरीज़ को छुट्टी दे दी गई। आमतौर पर ऐसे मामले में मरीज को ठीक होने में 25-30 दिन लगते हैं। लेकिन फोर्टिस अस्पताल में मौजूद सुविधाओं की वजह से मरीज़ महज 15 दिन में ठीक हो गया।

बेहद जटिल केस था
फोर्टिस अस्पताल, नोएडा में हेमैटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर और प्रमुख, डॉ राहुल भार्गव ने कहा, “यह मामला बहुत जटिल था। क्योंकि मरीज बेहद जोखिम वाले मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित था। मल्टीपल मायलोमा दुर्लभ प्रकार का कैंसर है। हमने सभी ज़रूरी सावधानियां बरतीं और सबसे पहले मरीज की कीमोथेरेपी की। कीमोथेरेपी के बाद उसकी हालत में सुधार आया। उसके बाद सफलतापूर्वक बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किया गया। प्रक्रिया बहुत सरलता से पूरी हुई। इस दौरान किसी तरह की परेशानी सामने नहीं आई। हम मरीजों से अनुरोध करते हैं कि वे बीएमटी से न डरें और आवश्यकता पड़ने पर इस इलाज को करवाएं।”

मरीजों को बचाना हमारी प्राथमिकता है
नोएडा के फोर्टिस अस्पताल के जोनल डायरेक्टर हरदीप सिंह ने फोर्टिस अस्पताल के क्लिनिकल एक्सीलेंस के बारे में कहा, “नोएडा के फोर्टिस अस्पताल की टीम मरीजों की जान बचाने की पूरी कोशिश करती है। जान बचाने का एक फीसदी मौका होने पर भी हार नहीं मानती। इस मामले में मरीज़ बहुत ज्यादा जोखिम वाले मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित था। इसके इलाज के लिए तुरंत बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने की ज़रूरत थी। डॉ राहुल भार्गव और उनकी टीम ने इस मामले को बहुत अच्छी तरह से संभाला। मैं क्लिनिकल विशेषज्ञता और मरीजों की देखभाल के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता के लिए डॉक्टरों की टीम की सराहना करता हूं।”

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