बोले- राकेश टिकैत आंदोलन नहीं मनमानी कर रहे हैं

नोएडा-दिल्ली बॉर्डर बंद करने की चेतावनी से बिफरे शहर के लोग, बोले- राकेश टिकैत आंदोलन नहीं मनमानी कर रहे हैं

बोले- राकेश टिकैत आंदोलन नहीं मनमानी कर रहे हैं

Tricity Today | Rakesh Tikait

Farmers Agitation: केंद्र सरकार के Farmers Laws के खिलाफ गाजियाबाद-दिल्ली बॉर्डर पर करीब साढे 3 महीने से धरना देकर बैठे भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने मंगलवार को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि जल्दी ही नोएडा-दिल्ली बॉर्डर भी बंद करेंगे। राकेश टिकैत की चेतावनी से नोएडा, ग्रेटर नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के निवासी बिफर गए है। लोगों का कहना है कि राकेश टिकैत अब आंदोलन नहीं कर रहे हैं। वह मनमानी कर रहे हैं। आम आदमी की परेशानी से उनका कोई सरोकार नहीं है। यह आंदोलन का गांधीवादी तरीका नहीं है। इससे आम आदमी का उनके प्रति कायम हुआ भावनात्मक रिश्ता समाप्त हो जाएगा।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट की रहने वाली और 'वूमन ऑन व्हील' की संचालिका विजेता पांडे पंजाब नेशनल बैंक में काम करती हैं। उनका कार्यालय दिल्ली कनॉट प्लेस में है। लिहाजा, उन्हें रोजाना दिल्ली और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बीच सुबह-शाम आवागमन करना पड़ता है। राकेश टिकैत की चेतावनी का जब से उन्हें पता चला है, वह बेहद परेशान हैं। वह कहती हैं, "किसानों ने जब आंदोलन की शुरुआत की थी तो करीब डेढ़ महीने तक नोएडा-दिल्ली बॉर्डर को बंद कर दिया था। रोजाना लाखों लोग बॉर्डर से दोनों शहरों के बीच आवागमन करते हैं। यह कामकाजी लोग दिल्ली या नोएडा में काम करते हैं और इन्हें रोजाना लौटकर अपने घर वापस जाना पड़ता है। मेरी केवल एक साल की बेटी है। उस डेढ़ महीने के दौरान केवल मुझे परेशानी नहीं हुई, मेरी बेटी को भी बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा। शाम 5:00 बजे दफ्तर खत्म होने के बाद सामान्य दिनों में अधिकतम 45 मिनट से एक घंटे का वक्त घर वापस लौटने में लगता है। जब किसानों ने बॉर्डर बंद कर दिया था तो मैं तीन-तीन घंटे ट्रैफिक जाम में फंसी रहती थी। कई दिन तो रात 10:00 बजे घर पहुंच गई थी।"

विजेता पांडे आगे कहती हैं, "इस दौरान मेरी बेटी का रो रोकर बुरा हाल हो जाता था। अब अगर राकेश टिकैत एक बार फिर नोएडा-दिल्ली बॉर्डर बंद कर देंगे तो मैं और मेरी जैसी हजारों महिलाएं संकट में घिर जाएंगी। मैं राकेश टिकैत से व्यक्तिगत रूप से अपील करती हूं कि वह अपनी चेतावनी वापस लें। ऐसा गलत फैसला बिल्कुल नहीं करें। आम आदमी किसानों की परेशानी समझ सकता है। उनके साथ भावनात्मक समर्थन है। अगर वह आम आदमी के लिए परेशानी खड़ी करेंगे तो यह भावनात्मक सपोर्ट खो देंगे। लाखों लोगों को परेशान करके कुछ हासिल नहीं होगा। राकेश टिकैत गांधीवादी हैं तो उन्हें इस तरह के जनविरोधी तरीके आंदोलन में इस्तेमाल नहीं करने चाहिए।"

मजबूर होकर शहर के लोग भी विरोध में सड़क पर उतरेंगे
नोएडा के सामाजिक संगठन जन जागृति मंच के संयोजक प्रमोद कुमार शर्मा भारतीय किसान यूनियन और राकेश टिकैत के फैसले से सहमत नहीं हैं। प्रमोद शर्मा का कहना है किसानों को अपने हक मांगने का संवैधानिक और नैतिक अधिकार है, लेकिन किसी दूसरे को परेशान करने का हक किसी को भी नहीं है। अगर वह नोएडा-दिल्ली बॉर्डर बंद करते हैं तो यह जनविरोधी फैसला होगा। पूर्व में किसानों ने लंबे अरसे तक इस रास्ते को बंद करके रखा। जिससे शहर के लोगों को भारी परेशानी से गुजरना पड़ा था। अब एक बार फिर वह नोएडा आकर दिल्ली बॉर्डर बंद करना चाहते हैं। यह बात उचित नहीं है। पिछली बार भी शहर के लोगों ने किसानों का विरोध किया था। उस वक्त शहर की पुलिस ने समझदारी का परिचय दिया था। लोगों को समझाया था। जिससे टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। अब अगर एक बार फिर लोगों के लिए यह समस्या पैदा की गई तो मजबूर होकर हमें भी सड़क पर उतरना पड़ेगा।" प्रमोद शर्मा आगे कहते हैं, "शहर का कोई एक प्रमुख रास्ता बंद होने पर पूरी यातायात व्यवस्था चरमरा जाती है। इससे लाखों लोग दिनभर ट्रैफिक जाम में फंसे रहते हैं। इन हालात पर गौर करते हुए राकेश टिकैत को यह गलत कदम नहीं उठाना चाहिए।" 

अपने फैसले पर पुनर्विचार करें राकेश टिकैत और भारतीय किसान यूनियन
रोजाना बड़ी संख्या में सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारी नोएडा व ग्रेटर नोएडा से दिल्ली आवागमन करते हैं। ग्रेटर नोएडा की जलवायु विहार सोसायटी में रहने वाले बैंकिंग जनरल मैनेजर एके सिंह का कहना है, "मैं खुद मुजफ्फरनगर के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं। मेरी सहानुभूति किसानों के साथ है। हम चाहते हैं कि सरकार और किसानों के बीच बातचीत हो। लंबे अरसे से चले आ रहा यह गतिरोध समाप्त होना चाहिए, लेकिन मंगलवार को राकेश टिकैत ने नोएडा में दिल्ली बॉर्डर फिर बंद करने की चेतावनी दी है। उनकी यह बात कदाचित जायज नहीं है। राकेश टिकैत को केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए दूसरे अहिंसात्मक रास्ते अपनाने चाहिए। अगर वह रास्ता बंद करके लोगों को लिए कष्ट पैदा करते हैं तो यह भी हिंसा ही है। इसे अहिंसक आंदोलन नहीं कहा जा सकता है। उनकी वजह से रोजाना जितने लोगों को परेशानी होगी, वह उन लोगों का नैतिक समर्थन खो देंगे। लिहाजा, राकेश टिकैत और भारतीय किसान यूनियन को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।"

रणनीतिक तौर पर भी नोएडा में मोर्चा खोलना राकेश टिकैत के लिए ठीक नहीं
आम आदमी के अलावा इस आंदोलन पर शुरू से नजर रख रहे लोगों का कहना है कि रणनीतिक रूप से भी नोएडा में नया मोर्चा खोलना भारतीय किसान यूनियन और राकेश टिकैत के लिए उचित नहीं होगा। अभी गाजियाबाद आंदोलन स्थल पर राकेश टिकैत के पास अच्छी खासी भीड़ है। अगर वह नोएडा आकर बॉर्डर बंद करने की रणनीति अपनाते हैं तो गाजियाबाद में चल रहा धरना कमजोर पड़ जाएगा। दरअसल, उन्हें नोएडा में गाजियाबाद के मुकाबले बेहद कम समर्थन प्राप्त होगा। फिलहाल गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, अलीगढ़ और बुलंदशहर से रोटेशन सिस्टम के तहत किसान गाजियाबाद बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं। अगर राकेश टिकैत नोएडा में भी मोर्चा खोलते हैं तो यह संख्या बंट जाएगी। जिसका अच्छा मैसेज पुलिस प्रशासन और सरकार तक नहीं पहुंचेगा। पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं की फसल पकने वाली है। किसान आने वाले दिनों में करीब 2 महीने के लिए फसल काटने, उठाने और बेचने में जुट जाएंगे। लिहाजा, राकेश टिकैत के लिए आने वाले दिनों में किसानों की भीड़ बढ़ाना टेढ़ी खीर होगी। ऐसे में राकेश टिकैत को गाजियाबाद आंदोलन स्थल पर किसानों को जुटाए रखना चाहिए।

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