Google Image | पीएम मोदी के साथ प्रधानमंत्री शेख हसीना और रिटायर्ड कर्नल अशोक कुमार तारा
Noida News : बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना का बचपन से ही भारत के साथ सबसे खास रिश्ता रहा है। पाकिस्तान से अलग होने के बाद से आज तक भारत और भारतीयों ने उनका सबसे ज्यादा साथ निभाया। नोएडा निवासी रिटायर्ड कर्नल अशोक कुमार तारा ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके परिवार की जान बचाई थी। यह बात है 1971 की। जब बांग्लादेश पाकिस्तान से आजाद ही हुआ था। उस समय रिटायर्ड कर्नल अशोक कुमार तारा को शेख हसीना के परिवार को बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसे कर्नल ने बखूबी अंजाम दिया। इतना ही नहीं बांग्लादेश का झंडा भी सबसे पहले कर्नल अशोक कुमार तारा ने ही शेख हसीना के घर की छत पर फहराया था। आइए अब आपको रिटायर्ड कर्नल अशोक कुमार तारा की जुबानी इस पूरे घटनाक्रम से रूबरू कराते हैं जो अब इतिहास में दर्ज हो चुके हैं।
अपने ही घर में बंधक था परिवार
रिटायर्ड कर्नल अशोक कुमार तारा बताते हैं कि जिस घर में शेख हसीना ने अपना बचपन बिताया, वह ढाका में रोड 18 पर स्थित धानमंडी के पास था। यह घर करीब 200 गज के प्लॉट पर बना था। वह एक मंजिला मकान था। इस घर में तीन बेडरूम और एक बड़ा बरामदा था, जहां शेख हसीना अपने भाई-बहनों के साथ खेला करती थीं। इस साधारण से घर में शेख हसीना के माता-पिता, उनकी छोटी बहन और भाई समेत कुल पांच लोग रहते थे। जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश को आजाद कराया, तब शेख मुजीबुर रहमान के परिवार को इसी घर में बंधक बनाकर रखा गया था। पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंदी बना लिया था और उनकी जान को खतरा था। इस दौरान कर्नल अशोक कुमार तारा को इस परिवार को मुक्त कराने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने परिवार को सुरक्षित बाहर निकाला।
शेख हसीना की मां ने सौंपा बांग्लादेश का नया झंडा
कर्नल तारा बताते हैं कि जब शेख हसीना की मां फजीलतुन्नसा मुजीब ने उन्हें बांग्लादेश का नया झंडा फहराने के लिए सौंपा था। यह झंडा उसी घर में फहराया गया जहां शेख हसीना ने अपना बचपन बिताया था। यह पल न सिर्फ कर्नल तारा की जिंदगी का अहम हिस्सा है, बल्कि बांग्लादेश के इतिहास का भी बेहद यादगार पल है।
परिवार ने बेटा माना, शेख हसीना ने भाई
सेवानिवृत्त कर्नल अशोक कुमार तारा कहते हैं कि उन्हें देखकर पाकिस्तानी सैनिक हैरान रह गए। थोड़ी देर बाद जब भारतीय सेना का एक हेलीकॉप्टर ऊपर से गुजरा, तो पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। कर्नल तारा ने शेख हसीना के परिवार से मुलाकात की और उनके घर से पाकिस्तानी झंडा हटाकर बांग्लादेश का झंडा फहराया। इसके बाद शेख हसीना और उनके परिवार ने कर्नल तारा को अपना बेटा और भाई मान लिया।
30 साल पुरानी गलती से सबक
तख्तापलट के बाद यदि शेख हसीना कुछ घंटे और बांग्लादेश में रुक जाती तो हिंसक भीड़ उन्हें मार डालती, लेकिन भारतीय वायुसेना ने मुस्तैदी दिखाते हुए उन्हें सुरक्षित निकाल लिया। भारत ने अपने दोस्त की जान बचा ली। इसके पीछे 30 साल पुराना बड़ा सबक भी था। 27 सितंबर 1996 को संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस में छिपे अफगानिस्तान के राष्ट्रपति नजीबुल्ला की तालिबान ने बेरहमी से हत्या कर दी थी और उन्हें लैम्प पोस्ट पर टांग दिया था। नजीबुल्ला भारत के भारत के बेहद करीबी दोस्त थे। उनकी पत्नी और बच्चे तो भारत सुरक्षित पहुंच गए थे लेकिन भारत उन्हें निकाल नहीं पाया था। अफगानिस्तान के लोग आज भी कहते हैं कि कहते हैं भारत ने नया दोस्त बनाने के चक्कर में अपने पुराने दोस्त की जान बचाने में देरी कर दी थी।