जिले में डीसीपी बनकर संभाल रहीं कमान, कोई देवदूत बनकर बचा रहीं जिंदगियां

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : जिले में डीसीपी बनकर संभाल रहीं कमान, कोई देवदूत बनकर बचा रहीं जिंदगियां

जिले में डीसीपी बनकर संभाल रहीं कमान, कोई देवदूत बनकर बचा रहीं जिंदगियां

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Noida News : महिला किसी भी घर, समाज और देश का एक अहम हिस्सा होती है। कभी मां, बेटी, बहन, पत्नी के रूप में वह हमेशा खड़ी मिलती है। किसी भी बच्चे को जब चोट लगती है, तो वह सबसे पहले मां को पुकारता है। हमारे समाज में महिला अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक एक अहम किरदार निभाती है। अपनी सभी भूमिकाओं में निपुणता दर्शाने के बावजूद आज के आधुनिक युग में भी महिला पुरुष के पीछे ही खड़ी दिखाई देती है। पुरुष प्रधान समाज में महिला की योग्यता को आदमी से आंका जाता है। सरकार के जागरूकता फैलाने वाले कई कार्यक्रम चलाने के बावजूद महिला की जिंदगी पुरुषों की के मुकाबले काफी जटिल हो गयी है। महिला को अपनी जिंदगी का ख्याल तो रखना ही पड़ता है, साथ में पूरे परिवार का भी ध्यान रखना पड़ता है। सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी वह पूरी शक्ति से नौकरी करती है, ताकि अपना, परिवार और देश का भविष्य उज्ज्वल बना सके। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमारे गौतमबुध्द नगर में अहम पदों पर तैनात रहकर अपने काम को अंजाम तक पहुंचाने वाली महिलाओं से ट्राईसिटी टुडे ने उनका नजरिया जानने की कोशिश की। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रस्तुत है खास बातचीत...

8 मार्च को ही क्यों मनाते हैं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए 8 मार्च का दिन चुनने की एक खास वजह है। दरअसल, अमेरिका में काम करने वाली महिलाओं ने 8 मार्च को अपने अधिकारों को लेकर आंदोलन छेड़ा था। सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने न्यूयॉर्क में साल-1908 में वर्कर्स को सम्मान देने के मकसद से ये दिन चुना था। वहीं, रूसी महिलाओं ने महिला दिवस मनाते हुए पहले विश्व युद्ध का विरोध किया था। रूस की महिलाओं ने ब्रेड एंड पीस को लेकर साल-1917 में हड़ताल की थी। यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस एक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां निकाली थीं। इस वजह से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई। बाद में साल-1975 में संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दे दी।

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