सिर्फ मुस्कुरा कर चुनौतियों को पराजित करने का सियासी शगल

ऐसे हैं सुरेंद्र सिंह नागर : सिर्फ मुस्कुरा कर चुनौतियों को पराजित करने का सियासी शगल

सिर्फ मुस्कुरा कर चुनौतियों को पराजित करने का सियासी शगल

Tricity Today | पीएम नरेंद्र मोदी और सुरेंद्र सिंह नागर

Noida News : किसी शायर ने क्या खूब कहा है, 'ये इश्क नहीं आसां, इतना तो समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।' राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह नागर एक ऐसे सियासी योद्धा हैं, जिनका शगल हर चुनौतियों को सिर्फ मुस्कुरा कर पराजित करना है। उनके सियासी जीवन के अतीत में झांकें तो यही पाएंगे कि उनके जीवन के शब्दकोश में 'हार' शब्द है ही नहीं। शायद उन्होंने उसे डिलीट कर दिया है। जब से उन्होंने सियासत की सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू किया, तब से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब यही खूबी उनकी सफलता का मूल मंत्र बन गया।

हर अग्निपरीक्षा को पार बड़ा किया सियासी कद
अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही सुरेंद्र सिंह नागर ने कभी हार मानना नहीं सीखा। उन्होंने हर अग्निपरीक्षा के पार कर अपने सियासी कद को इतना बड़ा कर दिया कि अब वह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के दुलारे हो गए हैं। यही कारण है कि उन्हें लगातार दूसरी बार केंद्रीय संगठन में शामिल किया गया है। उन्हें एक बार फिर राष्ट्रीय सचिव पद की जिम्मेदारी दी गई है। गुर्जर बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले सुरेंद्र सिंह नागर का ढाई दशक पुराना सियासी अनुभव है। अपनी मेहनत और मृदुभाषी होने के नाते उन्होंने अपने को गुर्जर नेता के रूप में स्थापित किया है।

देश के बड़े गुर्जर नेताओं में शुमार हैं सुरेंद्र नागर
पश्चिमी यूपी, हरियाणा, राजस्थान और जम्मू एंड कश्मीर में भी गुर्जर वोटरों की बड़ी तादाद है। कई जगह तो गुर्जर बिरादरी के वोट चुनाव को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। अगर बिरादरी से अलग होकर बात करें तो सुरेंद्र नागर की पैठ गैरगुर्जर बिरादरी के बीच भी है। सुरेंद्र सिंह नागर की गिनती बड़े गुर्जर नेताओं में होती है। भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया। उन्हें राज्यसभा में उपसभापति भी नियुक्त किया गया। जब भी पार्टी को उनकी जरूरत पड़ी सुरेंद्र सिंह नागर ने पूरे मनोयोग से काम किया। अगर भारतीय जनता पार्टी के प्रोटोकॉल की बात करें तो सांसद सुरेंद्र सिंह नागर सबसे ऊंचे पद पर हैं। संसदीय व्यवस्था में राज्यसभा सांसद का स्थान लोकसभा सांसद से ऊपर माना जाता है।

25 साल पहले शुरू हुई संसदीय राजनीति
सुरेंद्र सिंह नागर ने संसदीय राजनीति की शुरुआत उत्तर प्रदेश विधान परिषद से की। 1998 में वह स्थानीय निकाय सीट से चुनाव जीतकर एमएलसी बने। साल 2004 में दोबारा इसी सीट से चुनाव जीता। विधान परिषद में 10 समितियों के सदस्य रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले गौतमबुद्ध नगर सीट सामान्य हो गई। सुरेंद्र नागर ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। उनके सामने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डॉ. महेश शर्मा थे। सुरेंद्र नागर ने जीत हासिल की और लोकसभा पहुंच गए। इसके बाद 2016 में राज्यसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

कोविड से ठीक पहले थामा भाजपा का दामन
सुरेंद्र सिंह नागर ने जुलाई 2019 में भाजपा का दामन थाम लिया। इससे पहले वह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद रहे। समाजवादी पार्टी और राज्यसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने सुरेंद्र नागर के इस्तीफे से खाली हुई राज्यसभा की सीट पर उन्हीं को अपना उम्मीदवार बनाया। इस तरह सुरेंद्र नागर ने दूसरी बार राज्यसभा चुनाव जीता। सुरेंद्र सिंह नागर उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं, जिन्हें विधान परिषद, राज्यसभा और लोकसभा में काम करने का अनुभव हासिल है।

मिहिरभोज प्रकरण से बढ़ा कद
गौतमबुद्ध नगर में सम्राट मिहिरभोज की प्रतिमा से जुड़े विवाद को गठबंधन प्रत्याशी जोर-शोर से उठा रहे थे। यह मामला दादरी में पैदा हुआ था। उस वक्त भी सुरेंद्र नागर ने हालात संभालने के लिए कड़ी मशक्कत की थी। तब सुरेंद्र नागर ने दादरी विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार तेजपाल नागर के पक्ष में गुर्जरों का समर्थन जुटाया। यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नागर को विधानसभा चुनाव में स्टार कैंपेनर घोषित किया था। पार्टी ने मेरठ और सहारनपुर में प्रचार करने के लिए भेजा था। यह नागर की काबिलियत ही थी कि अधिकतर सीटों पर वह पार्टी उम्मीदवारों के जीत दिलाने में सफल रहे। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने वेस्ट यूपी में सात गुर्जर उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इनमें से पांच जीतकर विधानसभा पहुंच गए हैं। हालांकि, शामली जिले की कैराना विधानसभा सीट से मृगांका सिंह और मुजफ्फरनगर में मीरापुर विधानसभा सीट से प्रशांत गुर्जर को हार का मुंह देखना पड़ा था।

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