Uttar Pradesh Vidhansabha Chunav 2021 : सियासत के तमाम रंग होते हैं। कई बार सत्ता की चाल विपक्ष को भारी पड़ती है तो अक्सर विपक्ष की चाल सत्ता को ही नहीं, विपक्ष में बैठे बराबर वाले साथी पर भी भारी पड़ जाती है। आजकल उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ ऐसी ही कदमताल देखने को मिल रही है। आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर शतरंज की बिसात बिछ चुकी है। उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से चार राजनीतिक दल हैं। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है। विपक्ष में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी हैं।
खास बात यह है कि भाजपा, सपा और कांग्रेस की गतिविधियां बहुत तेजी से चल रही हैं। अभी बहुजन समाज पार्टी लगभग सुषुप्त अवस्था में ही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान पहली बार पूरी तरह महासचिव प्रियंका गांधी के हाथों में है। सामान्य तौर पर तो प्रियंका के बढ़ते प्रभाव से भाजपा को परेशानी होनी चाहिए, लेकिन जैसे-जैसे प्रियंका गांधी तेज दौड़ रही हैं, भाजपा खुश है। दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी परेशान है। बहुजन समाज पार्टी भी परेशानी जाहिर कर रही है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के नेता प्रियंका और कांग्रेस पर सीधे-सीधे भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। रविवार को प्रियंका गांधी गोरखपुर में थीं। उन्होंने जनसभा को संबोधित करते हुए इस आरोप का करारा जवाब भी दिया है।
प्रियंका गांधी ने पूछा- संकट में साथ खड़े क्यों नहीं होते?
प्रियंका गांधी ने रविवार को गोरखपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए सवाल किया, "जब आम आदमी संकट में होता है तो सरकार के खिलाफ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेता खड़े क्यों नहीं होते हैं? अब जब मैं आम आदमी के साथ खड़ी हूं तो मेरे ऊपर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलीभगत करने का आरोप लगा रहे हैं। यह सरासर झूठ है। अपनी नाकामियों को छिपाने का प्रयास है। मैं साफ तौर पर कहना चाहती हूं कि मर जाऊंगी लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ कोई समझौता नहीं करूंगी।" प्रियंका गांधी ने अपने संबोधन में ना केवल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी बल्कि भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी जमकर हमला बोला। दरअसल, प्रियंका गांधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में खड़ी थीं और उन्होंने सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
प्रियंका को लेकर क्यों परेशान हैं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव
पिछले दिनों दिल्ली से लखनऊ जाने वाली फ्लाइट में प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव का आमना-सामना हुआ था। इस दौरान फ्लाइट में मौजूद दूसरे यात्रियों ने दोनों के बीच दूर खड़े-खड़े हुए संवाद की एक फोटो ली थी, जो बाद में तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। दोनों की मुलाकात को लेकर मीडिया ने सवाल भी पूछे थे। जिन पर प्रियंका गांधी ने बताया था, "मैंने अखिलेश यादव को धन्यवाद दिया। उनसे कहा कि आप हमारी पार्टी के कायर नेताओं को ले गए। यह अच्छा किया।" इससे ठीक 4 दिन पहले अखिलेश यादव ने प्रियंका गांधी को लेकर एक बयान दिया था। जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि प्रियंका और सरकार के बीच मिलीभगत चल रही है।
दरअसल, पिछले कुछ महीनों के दौरान प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में होने वाली घटनाओं को लेकर मुखर रही हैं। हाथरस बलात्कार कांड, सोनभद्र में आदिवासियों की हत्या, लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा और फिर आगरा में पुलिस कस्टडी में दलित युवक की हत्या के मामलों को लेकर प्रियंका गांधी विरोध में खड़ी दिखीं। इन सारी जगहों पर जाने से प्रियंका गांधी को पहले रोका गया। फिर 24 से 48 घण्टों तक कस्टडी में रखने के बाद सरकार ने मुलाकातों की इजाजत दी हैं।
नेशनल मीडिया में छाई रहीं प्रियंका गांधी और कद बढ़ा
प्रियंका गांधी जैसे ही उत्तर प्रदेश में होने वाली किसी घटना को लेकर सड़क पर उतरती हैं, उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें गिरफ्तार करवा लेती है। एक-दो दिन कस्टडी में रखा जाता है। इस दौरान प्रियंका गांधी नेशनल मीडिया की सुर्खियों में छा जाती हैं। सीधी सी बात है, इस सबसे प्रियंका गांधी के राजनीतिक अक्स को बड़ा फायदा पहुंच रहा है। यही वजह समाजवादी पार्टी के लिए सिरदर्द बन गई है। समाजवादी पार्टी के थिंकटैंक का मानना है कि यह सबकुछ उत्तर प्रदेश सरकार जानबूझकर कर रही है। इसी कारण प्रियंका गांधी और योगी आदित्यनाथ पर इंटरनल तालमेल का आरोप लगाया जा रहा है।
दरअसल, सीधा सा गणित है कि प्रियंका गांधी जितना आगे बढ़ेंगी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को ही नुकसान पहुंचाएंगी। आज समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का कोर वोटर अल्पसंख्याक और दलित है। एक वक्त में यह कांग्रेस का वोट बैंक था, जो तमाम वजहों से कांग्रेस से छिटककर इन क्षेत्रीय पार्टियों में पहुंच गया है। सपा और बसपा के सामने यही संकट है कि प्रियंका गांधी जितना मजबूत होंगी, उनका वोट बैंक कांग्रेस की ओर आकर्षित होता जाएगा। आने वाले चुनाव में इसका सीधा नुकसान इन दोनों ही राजनीतिक दलों को उठाना पड़ेगा।
समाजवादी पार्टी के लिए प्रियंका गांधी ज्यादा बड़ा खतरा
उत्तर प्रदेश के लिए आने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी है। दूसरी तरफ यह बात सभी को पता है कि कांग्रेस और प्रियंका गांधी अपनी खोई हुई जमीन तलाश करने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। किसी भी सूरत में कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने की हैसियत में अभी नहीं है, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जितनी मजबूत होगी, आने वाले वक्त में उसे उतनी सांस मिलेगी। कांग्रेस को यह सांस मिलना समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। अगर कांग्रेस आने वाले चुनाव में 10-15 सीटें भी जीतने की स्थिति में पहुंचती है तो कम से कम 50-60 सीट समाजवादी पार्टी को हरवा सकती है। बस यही सबसे बड़ी परेशानी अखिलेश यादव के सामने खड़ी हुई है। मौजूदा परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यक वोटरों की पहली पसंद है, लेकिन कांग्रेस जिन सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारेगी, वहां गफलत पैदा होना लाजमी है। विधानसभा चुनाव में सहारनपुर, बिजनौर, शामली, रामपुर, मुरादाबाद, सम्भल, अलीगढ़, झांसी, ललितपुर, मिर्जापुर और वाराणसी में कांग्रेस के ऐसे ही उम्मीदवार समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते है।
कांग्रेस के मुस्लिम नेता भी चाहते हैं गठबंधन
शायद यही वजह है कि कांग्रेस के ऐसे मुस्लिम नेता जो समाजवादी पार्टी के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखते हैं और यूपी में भाजपा को सत्ता से बाहर करना चाहते हैं, वह एक बार फिर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की पैरवी कर रहे हैं। इनमें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और सहारनपुर के दिग्गज नेता इमरान मसूद सबसे आगे हैं। इमरान मसूद सपा और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल करवाने के लिए प्रस्ताव लेकर राहुल गांधी से मिल चुके हैं। इमरान मसूद ने ट्राईसिटी टुडे से खास बातचीत में कहा, "अगर भाजपा को वाकई सत्ता से बाहर करना है तो उत्तर प्रदेश में दोनों दलों को मिलकर चुनाव लड़ना पड़ेगा। अगर दोनों अलग-अलग लड़ेंगे तो हार निश्चित है। मैं यह बात प्रियंका गांधी तक पहुंचा चुका हूं और राहुल गांधी से इस मुद्दे को लेकर मुलाकात भी कर चुका हूं।"
प्रियंका सपा के लिए खतरा लेकिन उन्हें राजनीति का हक है
पिछले करीब एक साल से केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत भी इस पूरे राजनीतिक गुणा-गणित पर नजर गड़ाए हुए हैं। पिछले दिनों जब ट्राईसिटी टुडे ने राकेश टिकैत का इंटरव्यू किया था तो मौजूदा माहौल को लेकर बातचीत हुई थी। राकेश टिकैत से जब यह पूछा गया कि अगर प्रियंका गांधी तेजी से आगे बढ़ेंगी तो अखिलेश यादव को नुकसान होना लाजमी है। ऐसे मैं भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए क्या दोनों को गठबंधन कर लेना चाहिए? इस पर राकेश टिकैत ने कहा, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रियंका गांधी जितना आगे बढ़ेंगी, कांग्रेस को फायदा मिलेगा। कांग्रेस को जितना फायदा मिलेगा उसका नुकसान समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ेगा, लेकिन अपनी पार्टी के लिए काम करने और उसे आगे बढ़ाने का प्रियंका गांधी को पूरा हक है। अगर कांग्रेस को सही मायने में फिर से खड़ा होना है तो गठबंधन की बजाए अपने बूते पर राजनीति करनी चाहिए। इस बात का इससे कोई ताल्लुक नहीं है कि प्रियंका गांधी की राजनीति का किसे फायदा और किसे नुकसान होता है।"
योगी से नाराज वोटर सपा की बजाय कांग्रेस जाएगा
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ और भाजपा की नीतियों को पसंद नहीं करने वाला सेक्युलर वोटर, जिसमें ब्राह्मण शामिल हैं, वह समाजवादी पार्टी को मिलता, अगर प्रियंका गांधी मजबूती के साथ खड़ी नहीं होतीं। अब जब प्रियंका गांधी मजबूती के साथ खड़ी हो रही हैं तो समाजवादी पार्टी को मिलने वाला यह लाभ लगभग खत्म हो गया है। ब्राह्मण मतदाता की एक और खूबी है, वह अकेला नहीं जाता है, बल्कि कई दूसरे वोटरों को अपने साथ लेकर चलता है। प्रियंका गांधी के उभार का सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा। कांग्रेस के मजबूत होने से भाजपा के खिलाफ नाराज मतदाताओं की लामबंदी समाजवादी पार्टी की ओर नहीं हो पाएगी। यह बात भी सही है कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस शानदार प्रदर्शन करेगी तो अधिकतम 15-20 सीटें जीत सकती है, लेकिन समाजवादी पार्टी को कम से कम 50-60 सीटें हरवा देगी। पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मजबूत थी। जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला था। इस बार बसपा बेहद कमजोर है। अगर सीधे तौर पर सपा और भाजपा के बीच मुकाबला हो तो नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ता। ऐसे में कांग्रेस की मजबूती भाजपा को बड़ा फायदा और सपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है।"