बिलारी सीट पर भाजपा और सपा में होगी कांटे की टक्कर, परिणाम तय नहीं

कौन जीतेगा यूपी : बिलारी सीट पर भाजपा और सपा में होगी कांटे की टक्कर, परिणाम तय नहीं

बिलारी सीट पर भाजपा और सपा में होगी कांटे की टक्कर, परिणाम तय नहीं

Tricity Today | बिलारी सीट पर ग्राउंड रिपोर्टिंग

Moradabad : बिलारी विधानसभा सीट के इतिहास की बात करें तो आजादी के बाद यह सीट अस्तित्व में आ गई थी, लेकिन पहले परिसीमन आयोग की सिफारिशों पर 1962 के बाद इस सीट को खत्म कर दिया गया था। अब वर्ष 2008 में परिसीमन आयोग ने इस सीट के गठन की दोबारा सिफारिश की और 2012 में एक बार फिर यहां चुनाव करवाया गया। इस सीट से जुड़े परिणामों की बात करें तो यहां एक जमाने में कांग्रेस का दबदबा था। 1951 से लेकर 1962 तक यहां कांग्रेस कामयाबी हासिल करती रही। साल 2012 और 2017 के चुनावों में समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की है।



बिलारी विधानसभा सीट के लिए पिछले विधानसभा चुनाव से जुड़ी कुछ जानकारियां बताते हैं। वर्ष 2017 में इस सीट पर वोटरों की संख्या 3,43,939 थी। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मोहम्मद फहीम को 85,682 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार सुरेश सैनी को 72,241 वोट मिले थे। इस तरह सपा ने यहां 13,441 मतों से कामयाबी हासिल कर ली थी। बहुजन समाज पार्टी के ऋषिपाल सिंह 60,976 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। इस सीट पर नजर रखने वाले चुनावी पंडितों का कहना है पिछली बार बसपा ने यहां भारतीय जनता पार्टी का गणित बिगाड़ दिया था बसपा के उम्मीदवार ने ना केवल दलित बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग की अच्छी खासी वोट बटोर ली थीं। समाजवादी पार्टी के मोहम्मद फहीम इकलौते मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार थे। लिहाजा, वह आसानी से चुनाव जीत गए थे।

अब आने वाले विधानसभा चुनाव के गणित पर थोड़ी नजर दौड़ाते हैं। बिलारी विधानसभा सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या 40% है और हिंदू मतदाता 60% हैं। अगर हिंदू मतदाताओं में जातिगत आधार पर बंटवारा करें तो सबसे ज्यादा जाट करीब 30% हैं। दलित वोटरों की संख्या भी 30-35% है। ब्राह्मण वैश्य और ठाकुर 10% हैं। सैनी और अन्य पिछड़ा वर्ग की दूसरी बिरादरी के मतदाता भी 10-10% हैं।

1. इस बार मुस्लिम वोटर पूरी तरह समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के पक्ष में खड़े नजर आते हैं। गठबंधन के लिहाज से यह सीट समाजवादी पार्टी के खाते में जाएगी।

2. जाट वोटरों में किसान आंदोलन के चलते भारतीय जनता पार्टी के प्रति नाराजगी नजर आ रही है ऐसे में सपा-रालोद गठबंधन यहां अच्छा-खासा मजबूत नजर आता है।

3. इस बार बहुजन समाज पार्टी पिछली बार के मुकाबले कमजोर नजर आ रही है। इस बात का फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा।

5. कांग्रेस की चुनौती इलाके में कुछ खास नहीं है। हालांकि, अब यह देखना होगा कि कांग्रेस जाति और धर्म के गणित को साधते हुए किसे मैदान में उतारती है।

6. अगर जाट वोटरों में सपा-रालोद गठबंधन सेंधमारी करने में कामयाब हुआ तो एकबार फिर भारतीय जनता पार्टी का गणित यहां बिगड़ सकता है।

कुल मिलाकर इतना तय है कि बिलारी विधानसभा सीट पर आने वाले चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी और सपा-रालोद गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने के लिए मिलेगी। भारतीय जनता पार्टी अच्छी कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ेगी तो दूसरी ओर सपा-रालोद गठबंधन किसान आआंदोलन के साथ महंगाई के कार्ड को खेलकर जीत दोहराने का भरपूर प्रयास करेगा।

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