कौन जीतेगा यूपी : आज हम आपको मुरादाबाद जिले की कुन्दरकी विधानसभा सीट के बारे बताएंगे। कुंदरकी विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी का मजबूत गढ़ है। इस सीट के इतिहास की बात करें तो देश में पहले परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर यह सीट वर्ष 1967 के चुनाव में अस्तित्व में आई थी। तब से अब तक यहां 13 बार विधानसभा के लिए चुनाव करवाया जा चुका है। यह सीट हमेशा से कांग्रेस विरोधी राजनीतिक दलों के कब्जे में रही है। केवल एक बार वर्ष 1985 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की रीना कुमारी यहां से एक कामयाब हुई थीं। पिछले कई चुनावों में इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच टक्कर होती रही है।
अगर वर्ष 2017 में हुए चुनाव की बात करें तो मतदाताओं की संख्या 3,70,262 थी। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद रिजवान को 1,10,561 वोट मिले। दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी के रामवीर सिंह रहे। उन्हें 99,740 वोट मिले थे। इस तरह करीब 11,000 वोटों से समाजवादी पार्टी ने यह सीट जीत ली थी।
बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी अकबर हुसैन 36,071 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे। मुरादाबाद में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम धीरे-धीरे पांव पसार रही है। पिछले चुनाव में इस पार्टी के उम्मीदवार इसरार हुसैन को 7,025 वोट मिले थे। राष्ट्रीय लोकदल ने भी मुस्लिम प्रत्याशी मोहम्मद नबी पर दांव लगाया था और उन्हें 4,078 वोट मिले थे।
आने वाले चुनाव के मद्देनजर हमारे इस दौरे में सामने आई कुछ जानकारियां अब आपको देते हैं। जैसा आपने शुरुआती विश्लेषण में देखा कि इस सीट पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, एआईएमआईएम और राष्ट्रीय लोकदल के बीच मुसलमान मतदाताओं का बंटवारा होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को पिछले चुनाव में 11,000 वोटों से शिकस्त का सामना करना पड़ा था, ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए इस सीट पर जीत हासिल करना आसान नहीं होगा। इसकी कुछ खास वजह हैं।
1. इस बार अल्पसंख्यक मतदाता पूरी तरह समाजवादी पार्टी के समर्थन में खड़ा नजर आ रहा है। मुसलमान वोटरों में पिछली बार जितना विभाजन भी होता नहीं दिख रहा है।
2. मुरादाबाद की दूसरी विधानसभा सीटों की तरह यहां भी समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान का असर है। आजम खान के जेल में बंद होने से मुस्लिम वोटरों में एकता बढ़ी है।
3. जैसा हमने आपको पिछली सीट पर विश्लेषण में बताया था, यहां एआईएमआईएम को लेकर मुस्लिम मतदाता सतर्क हैं। बिहार और बंगाल में चुनाव परिणामों को बिगाड़ने के लिए मुस्लिम वोटर असदुद्दीन ओवैसी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
4. इस सीट पर अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या आधे से भी ज्यादा है। ठाकुर, सैनी, गुर्जर वैश्य और ब्राह्मण भारतीय जनता पार्टी को खुलकर समर्थन कर रहे हैं।
5. किसान आंदोलन के चलते जाट बिरादरी में विभाजन साफ दिख रहा है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच गठबंधन हो चुका है। जाट वोटर यहां से गठबंधन उम्मीदवार को वोटिंग जरूर करेंगे।
6. दलित वोटर बहुजन समाज पार्टी के साथ हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस और बसपा की चुनौती बेहद कमजोर हैं। मुरादाबाद की बाकी सीटों की तरह कुंदरकी में भी कांग्रेस और प्रियंका गांधी का कोई असर नजर नहीं आता है।
कुल मिलाकर आने वाले विधानसभा चुनाव में कुंदरकी विधानसभा सीट पर एक बार फिर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा। स्थानीय लोगों और जानकारों का कहना है कि दोनों ही पार्टी अपने उम्मीदवार बदल सकती हैं। लिहाजा, समीकरणों में छोटा-मोटा बदलाव होगा। आपको एक जानकारी और देना चाहेंगे। इस सीट पर अब तक केवल वर्ष 1993 में भाजपा ने कामयाबी हासिल की है। तब राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का असर था।