चंदौसी में गुलाब देवी को चुनौती नहीं, पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हुए बनीं पॉलीटिशियन

कौन जीतेगा यूपी : चंदौसी में गुलाब देवी को चुनौती नहीं, पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हुए बनीं पॉलीटिशियन

चंदौसी में गुलाब देवी को चुनौती नहीं, पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हुए बनीं पॉलीटिशियन

Tricity Today | चंदौसी में ग्राउंड रिपोर्टिंग

कौन जीतेगा यूपी! देसी घी की मंडी के लिए मशहूर चंदौसी विधानसभा सीट का इतिहास खासा पुराना है। देश में लागू हुए पहले परिसीमन आयोग की बदौलत यह सीट अस्तित्व में आई थी और 1962 में यहां पहला चुनाव करवाया गया था। तब से अब तक 14 मर्तबा यहां इलेक्शन करवाए जा चुके हैं। 



पॉलिटिकल साइंस की अध्यापिका से पॉलीटिशियन बनीं गुलाब देवी चंदौसी विधानसभा सीट का चौथी बार प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वह दूसरी बार भाजपा की सरकारों में मंत्री हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पहले गुलाब देवी, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी की दलित और महिला चेहरा हैं। करीब 66 वर्ष की गुलाब देवी अब तक छह चुनाव लड़ चुकी हैं और सातवीं बार मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं।

आपको थोड़ा पिछले विधानसभा चुनाव के बारे में बता दें। चंदौसी में पिछली बार वोटरों की संख्या 3,63,471 थी। गुलाबो देवी को 1,04,806 वोट मिले थे। जबकि उनकी निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस की प्रत्याशी विमलेश कुमारी को 59,337 वोट मिले थे। इस तरह गुलाबो देवी ने 45,469 वोटों के बड़े मार्जन से जीत हासिल की थी। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों के टॉप विनिंग मार्जिन में शामिल है। बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी वीरमति 51,049 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रही थी। इस सीट पर हुए पिछले चुनाव की एक और खासियत थी। सात में से पांच उम्मीदवार महिलाएं थीं। सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली टॉप-4 उम्मीदवार भी महिलाएं ही थीं।

अब अगर आने वाले विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस सीट के समीकरण साथ-साथ नजर आते हैं। गुलाब देवी बढ़ती उम्र के बावजूद आम आदमी के बीच सक्रिय हैं। उन्हें लेकर भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों में सकारात्मक रुख है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा उम्मीदवार के रूप में गुलाब देवी ही मैदान में उतरेंगी। लिहाजा, समीकरणों में कोई खास बदलाव आने की संभावना नहीं है। कुछ जरूरी बातें हैं, जो हम आपको बता रहे हैं।

1. इस सीट पर दलित, ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, जाट, सैनी और अल्पसंख्यक वोटरों की बहुलता है। जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी का इस सीट पर दावा मजबूत है।

2. अल्पसंख्यक वोटर पूरी तरह समाजवादी पार्टी-रालोद गठबंधन के साथ हैं। बसपा, कांग्रेस या दूसरे दलों के साथ मुसलमान वोटर जाता नजर नहीं आ रहा है।

3. ब्राह्मण, वैश्य, सैनी और अन्य पिछड़ा वर्ग की दूसरी बिरादरियां भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़ी हुई हैं।

4. इस बार जाट मतदाताओं में थोड़ा बिखराव नजर आ रहा है। कुछ जाट सपा-रालोद गठबंधन के साथ जाएंगे। हालांकि, अभी यह नहीं कहा जा सकता कि बिखराव कितना होगा।

5. इस बार बहुजन समाज पार्टी पिछली बार के मुकाबले कमजोर नजर आती है। भारतीय जनता पार्टी की विधायक गुलाब देवी खुद दलित हैं। उन्हें सामान्य रूप से भी दलितों के अच्छे खासे वोट मिलते रहे हैं। अबकी बार संभावना है कि आने वाले चुनाव में दलित वोटर उनकी ओर ज्यादा जाएंगे। कुल मिलाकर जाट मतों में होने वाले विभाजन की भरपाई दलित वोटर कर देंगे।

6. पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था। यह सीट कांग्रेस के कोटे में थी। अब जब कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी तो कमजोर रहेगी।

कुल मौजूदा हालात में मुकाबला सपा-रालोद गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के बीच होगा। गुलाब देवी के विनिंग मार्जिन और जातिगत समीकरणों के लिहाज से उनका पलड़ा भारी है।

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