UP Assembly Election 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) समेत तमाम राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। अब इसी सिलसिले में समाजवादी पार्टी ने बड़ा फैसला लिया है। जानकारी मिली है कि पिछले दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ हुई नेताओं की बैठक में एक बड़ा फैसला लिया गया है। समाजवादी पार्टी ने निर्णय लिया है कि पिछले दो विधानसभा चुनाव हारने वाले नेताओं को आने वाले चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा। इससे करीब 100 से ज्यादा उम्मीदवारों की छंटनी हो गई है। अब ऐसी सीटों पर नए चेहरों को पार्टी तरजीह देगी।
लगातार मेहनत कर रहे जूनियर नेताओं को आगे बढ़ाएगी समाजवादी पार्टी
समाजवादी पार्टी एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पिछले दो चुनावों में लगातार हार रहे नेताओं को आने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलेगा। इनकी जगह लगातार पार्टी के लिए काम कर रहे जूनियर नेताओं को प्राथमिकता दी जाएगी। सपा नेता ने कहा, "इस फैसले का युवा और नए चेहरों को बड़ा फायदा मिलेगा। दरअसल, लगातार चुनाव हार रहे नेता पार्टी में भी बड़े-बड़े पदों पर बैठे हुए हैं। जिसकी वजह से युवाओं को अवसर नहीं मिल रहा है। अब इस फैसले से ऐसे ही युवाओं को आगे बढ़ने का बड़ा मौका मिलने वाला है। अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरोत्तम पटेल की ओर से ऐसे विधानसभा क्षेत्रों और वहां से लगातार दो बार हारने वाले नेताओं की सूची पेश की गई थी। जिस पर अखिलेश यादव और बाकी नेताओं ने सहमति दे दी है।
करीब 100 सीटों पर सपा को जातिगत समीकरण साधने में मदद मिलेगी
समाजवादी पार्टी के विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि ऐसी करीब 100 विधानसभा सीटों की सूची तैयार की गई है। इन सीटों पर वर्ष 2012 और उसके बाद 2017 में लड़ने वाले उम्मीदवार लगातार दो-दो चुनाव हार गए हैं। अब इन पर दांव नहीं लगाया जाएगा। इतना ही नहीं पार्टी ने अंदरूनी तौर पर फैसला लिया है कि इन नेताओं की बिरादरी वाले दूसरे नेताओं पर भी पार्टी दाव नहीं खेलेगी। मतलब, इन विधानसभा सीटों पर दूसरे जातीय समीकरण साधने का प्रयास समाजवादी पार्टी करेगी। कुल मिलाकर साफ है कि समाजवादी पार्टी ने इन विधानसभा क्षेत्रों में नए उम्मीदवार मैदान में उतारने का फैसला ले लिया है।
समाजवादी पार्टी के लिए इस चुनाव में "करो या मरो" की स्थिति है
आने वाला उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए "करो या मरो" वाली स्थिति जैसा हो गया है। दरअसल, पार्टी के बड़े नेताओं का मानना है कि अगर इस विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई तो विपक्ष में बैठने का वक्त लंबा हो जाएगा। पिछले 5 वर्षों से समाजवादी पार्टी विपक्ष में है और आने वाले और 5 वर्षों तक विपक्ष में बैठने पर वोट बैंक कमजोर पड़ेगा। जिससे आने वाले चुनाव में स्थिति सुधारने की बजाय और लगातार बिगड़ सकती है। दरअसल, समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में तेजी से सक्रिय हो रही कांग्रेस और प्रियंका गांधी को लेकर भी चिंतित है। राजनीतिक पंडितों का साफ-साफ मानना है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में जितनी मजबूत होगी, समाजवादी पार्टी को भी उतना ही नुकसान बढ़ता चला जाएगा। दरअसल, समाजवादी पार्टी के पास इस वक्त जो वोट बैंक है, वह पहले कांग्रेस का हुआ करता था। कांग्रेस की मजबूती का सीधा सीधा मतलब उसके वोट बैंक की वापसी है।
नोएडा और मेरठ के कई नेता नए फार्मूले के चलते चुनाव से दूर हो जाएंगे
लगातार दो चुनाव हारने वालों को इस बार टिकट नहीं देने का फार्मूला नोएडा और मेरठ समेत वेस्ट यूपी के कई जिलों में कद्दावर नेताओं पर भारी पड़ेगा। मसलन, नोएडा से समाजवादी पार्टी के लगातार दो बार उम्मीदवार रहे सुनील चौधरी को इस बार टिकट नहीं मिल पाएगा। साथ ही समाजवादी पार्टी इस बार नोएडा शहर में ब्राह्मण कैंडिडेट उतारना चाहती है। ठीक इसी तरह मेरठ में सपा की छात्र राजनीति से केंद्रीय कार्यकारिणी तक पहुंचे अतुल प्रधान भी हैं। अतुल प्रधान भी सरधना विधानसभा सीट से लगातार वर्ष 2012 और 2017 में चुनाव हार चुके हैं। उन्हें दोनों बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक संगीत सोम के सामने हार का मुंह देखना पड़ा है। जानकारी मिल रही है कि इस बार समाजवादी पार्टी संगीत सोम के सामने ठाकुर बिरादरी का ही उम्मीदवार मैदान में उतारेगी।