आगरा की इस सीट पर 36 साल से भाजपा का कब्जा, सपा और बसपा नहीं दर्ज कर पाई जीत

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : आगरा की इस सीट पर 36 साल से भाजपा का कब्जा, सपा और बसपा नहीं दर्ज कर पाई जीत

आगरा की इस सीट पर 36 साल से भाजपा का कब्जा, सपा और बसपा नहीं दर्ज कर पाई जीत

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UP Assembly Election 2022 : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। 10 फरवरी को पहले चरण में मतदान होंगे। वहीं आगरा की सभी नौ विधानसभा सीट के लिए 15 जनवरी से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है। आगरा में सभी नौ विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है, जबकि समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन ने पांच और बीएसपी से सभी नौ विधानसभा के प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। आगरा की उत्तरी विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने अभी तक जीत दर्ज नहीं की है, जबकि बीएसपी और एसपी दोनों ही दलों ने पूर्ण बहुमत से प्रदेश में सरकारें बनाईं हैं। आगरा की उत्तरी विधानसभा सीट पर पिछले 36 साल से बीजेपी का कब्जा है। कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली वैश्य बाहुल्य उत्तरी विधानसभा सीट पर अब तक बीजेपी ने अपना परचम लहराया है।

36 सालों से बीजेपी का है कब्जा
आगरा की उत्तरी विधानसभा सीट वर्ष 2012 के परिसीमन के दौरान अस्तित्व में आयी थी। इससे पहले इस सीट को आगरा पूर्वी के नाम से जाना जाता था। 1952 से 1989 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। इसके बाद बीजेपी ने किसी पार्टी को यहां से जीत दर्ज करने नहीं दी। सत्यप्रकाश विकल के बाद जगनप्रसाद गर्ग उत्तरी विधानसभा सीट से लगातार पांच बार विधायक रहे हैं। 36 साल से बीजेपी इस सीट पर काबिज है। 2019 के उपचुनाव में बीजेपी ने पुरुषोत्तम खंडेलवाल को यहां से प्रत्याशी घोषित किया गया था। जिन्होंने एसपी के प्रत्याशी सूरज शर्मा को पटखनी दी थी।

कैडर वोटर कर रहे हैं विरोध
वैश्य समाज बीजेपी का कैडर वोट माना जाता रहा है, लेकिन उत्तरी विधानसभा सीट पर वैश्य समाज का एक धड़ा अग्रवाल समाज में खासा रोष है। अग्रवाल समाज के तमाम संगठन बीजेपी प्रत्याशी के विरोध में उतर आएं हैं। शनिवार यानि 15 जनवरी को टिकट की घोषणा होने के बाद से अग्रवाल समाज के लोगों ने बीजेपी के ब्रजक्षेत्र कार्यालय पर विरोध प्रकट किया था। बता दें कि उत्तरी विधानसभा सीट पर 4 लाख 30 हजार 500 के करीब वोटर हैं जिनमें से 1.50 लाख अग्रवाल समाज के ही वोटर हैं। इसके अलावा वैश्य और व्यापारी वर्ग भी शामिल हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बीजेपी समाज से प्रत्याशी नहीं उतारेगी तो तस्वीर बदल भी सकती है।

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