कांग्रेस से टूट गया 100 साल पुराना त्रिपाठी खानदान का रिश्ता, आखिर ललितेश पति त्रिपाठी ने क्यों लिया यह फैसला, पढ़िए जवाब

उत्तर प्रदेश : कांग्रेस से टूट गया 100 साल पुराना त्रिपाठी खानदान का रिश्ता, आखिर ललितेश पति त्रिपाठी ने क्यों लिया यह फैसला, पढ़िए जवाब

कांग्रेस से टूट गया 100 साल पुराना त्रिपाठी खानदान का रिश्ता, आखिर ललितेश पति त्रिपाठी ने क्यों लिया यह फैसला, पढ़िए जवाब

Tricity Today | कांग्रेस से टूट गया 100 साल पुराना त्रिपाठी खानदान का रिश्ता

कांग्रेस को छोड़ने और बिछड़ने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। नए तो छोड़िए अब तो 100-100 साल पुराने नाते टूट रहे हैं। इस बार कांग्रेस से 100 साल पुराना त्रिपाठी खानदान का रिश्ता टूट गया है। सवाल उठ रहा है कि आखिर ललितेश पति त्रिपाठी ने यह फैसला क्यों लिया ? ललितेश पति त्रिपाठी ने ग्रांड ओल्ड पार्टी के साथ चार पीढ़ियों का नाता क्यों तोड़ लिया ?उत्तर प्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री और कांग्रेस के धाकड़ नेता कमलापति त्रिपाठी के परपोते ललितेश ने जवाब देते हुए कहा, "मैंने बहुत दुखी मन से यह फैसला लिया है।" जितिन प्रसाद के बाद यूपी में दूसरे ब्राह्मण नेता ललितेश का जाना कांग्रेस की उम्मीदों को बड़ा झटका है। प्रियंका गांधी दो अक्टूबर से पूर्वांचल का दौरा करने वाली हैं। ठेठ पूर्वांचल से यह खबर अच्छी नहीं है।

ललितेश ने कहा- कांग्रेस में लगातार मेरी अनदेखी की जा रही थी
गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले ललितेश पति त्रिपाठी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है  कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के करीबी रहे ललितेशपति ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देते हुए कहा, "पार्टी में उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा था, जिसके चलते कांग्रेस को अलविदा कहा है।" कांग्रेस छोड़ने के बाद ललितेश के समाजवादी पार्टी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन उन्होंने कहा, "अभी किसी पार्टी में जाने का विचार नहीं किया है। फिलहाल किसी पार्टी में शामिल होने की कोई प्राथमिकता नहीं है।" ललितेश ने कहा, "आगे की रणनीति तय करने के लिए अपने लोगों से बातचीत करूंगा। अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करके इस पर विचार विमर्श करूंगा।"

ठीक 100 साल पहले कमलापति त्रिपाठी ने थामा था कांग्रेस का दामन
बनारस के इस त्रिपाठी ब्राह्मण परिवार का गांधी परिवार से बेहद नजदीकी और पुराना रिश्ता था। ठीक 100 साल पहले यानि वर्ष 1921 में कमलापति त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन थामा था। वह गांधी जी के 'असहयोग आंदोलन' में शामिल हुए थे। उसके बाद 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' में सक्रिय भागीदार थे, जिसके लिए उन्हें जेल हुई थी। फिर 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लेने के लिए मुंबई जा रहे थे, उन्हें गिरफ्तार किया गया और 3 साल की जेल हुई। कमलापति त्रिपाठी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर संयुक्त प्रांत (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) से संविधान सभा के लिए चुने गए और उन्होंने भारत के संविधान के प्रारूपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

प्रियंका गांधी के बेहद करीबी नेताओं में शामिल थे ललितेश पति
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ललितेश पति त्रिपाठी का कांग्रेस छोड़ना कोई छोटी बात नहीं है। यह पूर्वांचल में पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है। ख़ास बात यह है कि ललितेश पति त्रिपाठी को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी का बेहद करीबी मन जाता था। मिर्जापुर की मड़िहान विधानसभा सीट से वह 2012 से 2017 तक विधायक रहे। 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं सके थे। फिलहाल यूपी कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे। पिछले दिनों जब 10 सितंबर को यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी के लखनऊ दौरे पर आई थीं तो ललितेश पति त्रिपाठी ने उनसे मुलाकात की थी। इसके बाद कांग्रेस से उनका मोहभंग हुआ है। अंततः 100 साल पुराना त्रिपाठी परिवार का कांग्रेस से रिश्ता इस इस्तीफे के साथ टूट गया है।

जब इंदिरा ने कमलापति को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी कर ली थी
गांधी और त्रिपाठी खानदान के घनिष्ठ रिश्तों का एक उदाहरण दिया जाता है। कांग्रेस को जानने वाले बताते हैं कि इंदिरा गांधी ने एक बार कमलापति त्रिपाठी को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी कर ली थी। इमरजेंसी लगाने के फैसले से पहले इंदिरा गांधी कांग्रेस के भीतर विरोध झेल रही थीं। चंद्रशेखर, मोहन धारिया और जगजीवन राम की इच्छा थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा इस्तीफा दे दें। सिंडिकेट के झटके से उबरी इंदिरा के लिए यह बगवात भयानक साबित हो सकती थी। उन्होंने पार्टी के भीतर समर्थन हासिल करने के लिए बेटे संजय गांधी की मदद ली। राज्यमंत्री चंद्रजीत यादव के घर बैठक बुलाई गई। इंदिरा समर्थक देबकांत बरूआ ने प्रणब मुखर्जी को बुलाया। चर्चा हुई कि अगर उनके नेता को पीएम पद छोड़ना पड़े तो क्या किया जाए? दो विकल्प थे, पहले बाबू जगजीवन राम और दूसरे सरदार स्वर्ण सिंह थे। इंदिरा समर्थकों ने तय किया कि जगजीवन राम को चुनना खतरनाक है। इंदिरा से उनकी अदावत की जानकारी छिपी नहीं थी। स्वर्ण सिंह नतमस्तक नेता थे। सुप्रीम कोर्ट से पक्ष में फैसला आने पर वह दोबारा इंदिरा के लिए कुर्सी खाली कर सकते थे। पर जगजीवन राम ऐसा करने से मना भी कर सकते थे।

इसी बीच इंदिरा गांधी के पसंदीदा अफसर पीएन हक्सर ने एक चिट्ठी बनाई। इसमें इंदिरा को बेशर्त समर्थन देने की बात कही गई। देशभर के सीएम और कांग्रेसी नेताओं को इस पर दस्तखत करने को कहा गया। संजय गांधी हस्ताक्षर करने वालों की पूरी जानकारी मां को लगातार दे रहे थे। उड़ीसा की सीएम नंदिनी सत्पथि उसी शाम दिल्ली पहुंची और दस्तखत कर दिए। यह इंदिरा के प्रति वफादारी जताने की रेस थी। जीतने वाले को पीएम पद मिलने की आस जो थी। दूसरी तरफ समाजवादी सोच के युवा नेता जगजीवन राम को आगे कर रहे थे। इंदिरा को इसकी भनक लग गई। इंदिरा ने प्रस्ताव दिया कि इस्तीफा देने की स्थिति में अंतरिम प्रधानमंत्री को नामित करने का अधिकार उन्हें मिलना चाहिए। जगजीवन राम और यशवंत राव चव्हाण ने इसका विरोध किया। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब इमरजेंसी-रीटोल्ड में इसका जिक्र किया है।

इंदिरा गांधी ने जरूरत पड़ने पर अंतरिम पीएम बनाने के लिए कमलापति त्रिपाठी के नाम की पेशकश की। इंदिरा ने उन्हें यूपी से केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया था। यह जानकर जगजीवन राम रूष्ट हो गए। उन्होंने अपने एक साथी से कहा, "ठीक है समर्थन कर देंगे उनका लेकिन इसी शर्त पर कि वो इंदिरा को दोबारा कुर्सी नहीं सौंपेंगे।" हालांकि इसकी नौबत ही नहीं आई। इंदिरा ने पीएम रहते हुए आपातकाल घोषित कर दिया।

इंदिरा गांधी के दौर पर कमलापति त्रिपाठी की सियासी तूती उत्तर प्रदेश में बोलती थी। ललितेश के परबाबा कमलापति त्रिपाठी 1971 में यूपी के मुख्यमंत्री बने और करीब सवा दो साल तक शासन किया। वर्ष 1973, 1978, 1980, 1985 और 1986 में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रहे। केंद्र सरकार में मंत्री रहे। वह पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का ब्राह्मण चेहरा माने जाते थे। उनकी सियासी विरासत को ललितेश त्रिपाठी ने संभाला और कांग्रेस से अब उनका भी मोहभंग हो गया है।

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