जब पूरा देश गुलामी की बेड़ियों को काटने में जुटा था तो कुशीनगर के सपूत हाथों पर हाथ धरकर कैसे बैठ जाते ?

आज़ादी का अमृत महोत्सव : जब पूरा देश गुलामी की बेड़ियों को काटने में जुटा था तो कुशीनगर के सपूत हाथों पर हाथ धरकर कैसे बैठ जाते ?

जब पूरा देश गुलामी की बेड़ियों को काटने में जुटा था तो कुशीनगर के सपूत हाथों पर हाथ धरकर कैसे बैठ जाते ?

Tricity Today | आज़ादी का अमृत महोत्सव

Uttar Pradesh : बड़ी संख्या में जिले के सपूतों ने जंग-ए-आजादी में भाग लिया और अपना लहू बहाने से पीछे नहीं हटे। इंकलाब की आवाज को दबाने के लिए अंग्रेजों ने आजादी के परवानों को जिंदा जलवा दिया। गोलियों से भून दिया। कुछ को कारागार में डाल दिया गया। उस जमाने में अंग्रेजाें के खिलाफ बगावत करने वालों को बूटों तले कुचलकर सजा दी जाती थी। अंग्रेजों को नहीं करने दी नील और अफीम की खेती दुदही विकास खंड का दुमही गांव और छोटी गंडक से निकल कर गुजरने वाली झरही नदी स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों के लिए महफूज ठिकाना था। नदी के किनारे घनघोर जंगल में डमुर की दुर्गा माता का स्थान सेनानियों के मिलने और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाने का ठिकाना था। दुमही गांव के मदन गोपाल सिंह देवी दुर्गा के भक्त थे। उन्हीं के इकलौते पुत्र बाबू गेंदा सिंह 1942 में गांधी जी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में शरीक हो गए। अंग्रेज अफसर क्षेत्र के बभनौली और पटहेरवा में नील व अफीम की खेती करवाते थे। उनके मन मुताबिक काम नहीं करने वालों को यातना दी जाती थी। बाबू गेंदा सिंह अपने साथी तपी लाल श्रीवास्तव, रामबरन भगत, धनेश्वर खरवार व रामपति चौधरी के साथ इलाके में नील और अफीम की खेती रोकने का बीड़ा उठा लिया।

पुजारी बनकर जंगल में करते थे बैठक
झरही नदी के किनारे डमुर देवी दुर्गा के स्थान पर पुजारी के वेश में पहुंचते थे। अंग्रेजों से लड़ने की योजना बनाते थे। इस दौरान कई बार उनका अंग्रेजों से आमना-सामना हुआ। आजादी के दीवाने अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंककर अपने मिशन को पूरा करने निकल जाते थे। इन लोगों ने गांधी जी के पश्चिमी चंपारण से शुरू किए गए। असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के साथ काफी दिनों तक प्रदेश के कई हिस्सों में काम किया।

अंग्रेजों को रोकने के लिए तोड़े दो पुल
बाबू गेंदा सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1942 में अंग्रेजों का रास्ता रोकने के लिए कसया और तुर्कपट्टी मार्ग पर पंसरवा गांव के पुल और पडरौना-तमकुही रोड मार्ग के गगलवा गांव में स्थित पुल को धवस्त कर दिया। अंग्रेज आग बबूला हो गए और इस आंदोलन के अगुवा बाबू गेंदा सिंह को गिरफ्तार करने के लिए पटहेरवा पुलिस को उनके घर भेज दिया। पुलिस ने बाबू गेंदा सिंह के पिता को बगावत की जानकारी दी। उनके पिता मदन गोपाल सिंह ने आजादी की लड़ाई को जायज बताया। तभी धनेश्वर खरवार अपने हाथों में कंटीला तार लपेटे वहां पहुंच गए। पुलिस को रोकते हुए बाबू गेंदा सिंह से लिपट गए। 

गोरखपुर कारागार में डाल दिया गया
यह बात पुलिस को नागवार गुजरी और धनेश्वर खरवार की मानसिक हालत खराब बताकर लाठियों से पिटाई शुरू कर दी। गिरफ्तार बाबू गेंदा सिंह को बरेली जेल भेज दिया। वह वहां 1945 तक जेल में रहे। जेल की बैरक में भर देते थे मिर्च का धुंआ उनके साथी रामबरन भगत, तपीलाल श्रीवास्तव और रामपति चौधरी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें गोरखपुर कारागार में डाल दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत ने तपीलाल श्रीवास्तव को जेल में काफी प्रताड़ित किया। उनकी बैरक में मिर्च का धुआं कर दिया जाता था। उन्हें घुट-घुटकर मरने को मजबूर कर दिया गया। वह छह माह में ही चल बसे। रामबरन भगत और रामपति चौधरी दो साल की सजा पूरी कर जेल से बाहर आए।

दादा फिरंगी ने किए थे फिरंगोयों के दांत खट्टे
दुदही विकास खंड का बांसगांव टोला खैरवा ऐसा ही एक ऐतिहासिक गांव है। यहां के निवासी दादा फिरंगी के नेतृत्व में 1942 के अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के बाशिंदों ने बरतानिया हुकूमत से लोहा लिया था। दुदही में रेल लाइन को उखाड़ डाला, टेलीफोन के तारों को काट दिया और सरकारी गोदामों को लूटकर गरीबों में बांट दिया था। झल्लाए अंग्रेजों ने पूरे खैरवा गांव को फुंकवा दिया। स्त्री, पुरुष और बच्चे गांव छोड़कर महीनों जंगलों और दूसरे इलाकों में ठोकरें खाते रहे। इनकी अगुवाई फिरंगी, बउक, शिव, भिखारी और फागू कर रहे थे। बड़ी संख्या में ग्रामीणों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया। अंग्रेजी हुकूमत ने फिरंगी और भिखारी को एक-एक साल की सजा सुनाई थी। बउक और शिव को छह-छह महीने की सजा सुनाई गई। आजादी के बाद भारत सरकार ने दादा फिरंगी को ताम्र पत्र दिया।अपनी सरकार ने भी नहीं दिया हक साल 1963 में इस गांव में सरकार ने एक जूनियर हाईस्कूल खोला और गांव वालों के लिए पानी के पीने के पांच कुएं बनवाए। लेकिन 100 साल से यहां बसे इस गांव की जमीन को वन विभाग अपनी जमीन बताता है। जिसके चलते यहां के लोग अपना कुआं नहीं खोद सकते हैं। पक्का मकान बनवा सकते हैं। यहां तक कि खुद के लगाए पेड़ भी नहीं काट सकते हैं।

शहीद स्मारक पड़े हैं उपेक्षित
विशुनपुरा क्षेत्र के चिरइहवा टोला सिसहन के रहने वाले बाबूराम कुशवाहा स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गए थे। दरअसल, 1942 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने एक जुलूस निकालने की योजना बनाई। इसी क्षेत्र के वृंदावन निवासी खुदादीन मियां के यहां बैठक हुई। जुलूस निकला। सैकड़ों लोगों ने जुलूस में हिस्सा लिया था। ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए जुलूस में शामिल लोग मंसाछपरा होते हुए नंदलाल छपरा पहुंचे। अंग्रेजों ने जुलूस पर लाठियां तोड़नी शुरू कर दीं। इसके बावजूद आजादी के दीवाने नहीं माने तो अंग्रेजों ने गोलियां दागनी शुरू कर दीं। गोलीबारी में बाबूराम कुशवाहा के सीने में गोली लगी और वह मौके पर ही शहीद हो गए। उनकी स्मृति में नंदलाल छपरा में एक स्मारक बनवाया गया है, जो अतिक्रमण का शिकार है। ब्लॉक परिसर में दूसरा स्मारक है, जिस पर उमर, खुदादीन, चिरकुट, झकरी, फूल कुंवर, बरन, विश्वनाथ मिश्र, बाबू नंदन, बिंदेश्वरी भगत, राजबली, रघुनाथ, सिंहासन राय, सलीम उर्फ दीपक सहित 13 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम अंकित हैं। यह स्मारक भी उपेक्षित है।

10 लोगों ने दी प्राणों की आहुति
नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र के जगरनाथ दूबे, बुधन, मदन, महादेव, मोल्हू, महावीर तेली, रामजी, सरजू, सुकई, श्यामदेव और श्यामबदन तिवारी सहित 10 लोगों ने जंग-ए-आजादी में अपने प्राणों की आहुति दी थी।इनकी याद में यहां वर्ष 1972 में शहीद स्मारक स्थापित किया गया था। सेवरही नगर पंचायत के जानकी नगर में अंग्रेजों ने आधा दर्जन लोगों को गोली मार दी थी। उनके नाम का शहीद स्मारक कस्बे में है। इसके अलावा हाटा और कसया समेत जिले के कई स्थानों पर शहीदों की याद में स्मारक हैं, लेकिन जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को इनकी याद केवल राष्ट्रीय पर्वों पर आती है। कप्तानगंज क्षेत्र के सिधावट गांव के राम प्यारे सिंह 90 वर्ष के हैं। वह बताते हैं कि वर्ष 1938 में क्रांतिकारियों ने ट्रेन में आग लगा दी थी। इसमें सिधावट गांव के कुछ लोग शामिल थे। अंग्रेजों ने कुछ लोगों को चिह्नित कर लिया और उन्हें पकड़ने के लिए गांव में काफी लूट-पाट की। गांव मेंभगदड़ मच गई। लोगों को अपने घर के आभूषण, रुपये और कीमती सामान जमीन में दबाकर गांव छोड़ना पड़ा था। पकड़े गए लोगों को अंग्रेजों ने पेड़ों में बांधकर पीटा था।

Copyright © 2023 - 2024 Tricity. All Rights Reserved.