पर्यावरण संकट पर बोले विशेषज्ञ- यह आतंकवाद से भी खतरनाक

AKTU News : पर्यावरण संकट पर बोले विशेषज्ञ- यह आतंकवाद से भी खतरनाक

पर्यावरण संकट पर बोले विशेषज्ञ- यह आतंकवाद से भी खतरनाक

Tricity Today | पर्यावरण विशेषज्ञ

  • एकेटीयू में दो दिवसीय कार्यशाला का हुआ शुभारंभ
  • विशेषज्ञों ने पर्यावरण बचाने के सुझाए उपाय
  • कुलपति ने कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रकृति
Lucknow News : डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय और शिक्षा एवं संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ शनिवार को हुआ। पर्यावरण के प्रति चेतना एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण विषयक इस वर्कशॉप में पहले दिन वक्ताओं ने पर्यावरण संकट पर गहनता से चर्चा की। पर्यावरण पर बढ़ते खतरे के विभिन्न पक्षों को उभारते हुए तकनीकी शिक्षा के जरिये इसके समाधान पर विचार किया। इस दौरान विभिन्न सत्र भी हुए।

उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण देते हुए माननीय कुलपति प्रोफेसर प्रदीप कुमार मिश्र ने पर्यावरण को तकनीकी शिक्षा में समाहित करने पर जोर दिया। कहा कि निर्माण कार्य तकनीकी के जरिये ही होता है। निर्माण ऐसा होना चाहिए, जो पर्यावरण के अनुकूल हो, न की उसे नष्ट करने वाला। विकास का लक्ष्य विनाश नहीं बल्कि पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए मनुष्य के जीवन को सुविधाजनक बनाना होना चाहिए। सतत विकास के लिए जरूरी है कि हम उत्पाद को प्रकृतोन्मुखी बनायें।  

ऑनलाइन माध्यम से जुड़े मुख्य वक्ता न्यास के सचिव अतुल भाई कोठारी ने पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि फिलहाल दुनिया के सामने आतंकवाद और पर्यावरण के रूप में दो बड़े संकट हैं। आतंकवाद पर तो फिर भी हम काबू पा लेंगे लेकिन यदि अभी प्रयास नहीं किये तो पर्यावरण की अनदेखी पूरी मानव सभ्यता पर भारी पड़ेगी। हवा, पानी, वायु, जमीन सब प्रदूषित हो गया है। जिस तरह से प्रकृति को हर ओर से नुकसान पहुंचाया जा रहा है, वह खतरनाक है। अब समय आ गया है कि हम इस बारे में चेतें। 

उन्होंने आगे कहा, पर्यावरण के प्रति चेतना आयी है। इस दिशा में कदम भी उठाये गये हैं, लेकिन वह बेहद छोटे स्तर पर है। उन्होंने कहा कि छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम पर्यावरण बचाने में अपना योगदान दे सकते हैं। इसकी शुरूआत खुद से करनी होगी। फिर परिवार स्तर पर हमें सोच बदलनी होगी। अंत में समाज में पर्यावरण के प्रति प्रयास करना होगा। कहा कि इस दिशा में तकनीकी शिक्षा के जरिये बहुत कुछ किया जा सकता है। तकनीकी छात्रों को इस तरह शिक्षा देनी चाहिए कि वह जो भी निर्माण करें, उससे पर्यावरण के को क्षति न पहुंचे। 

अतुल कोठारी ने कहा कि तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए पर्यावरण को शामिल कर छात्रों को प्रेरित किया जा सकता है। कहा कि हमने अंधानुकरण कर अपनी ज्ञान परंपरा को छोड़ दिया। जबकि हमारी पुरातन शिक्षा में न केवल पर्यावरण की चिंता की गयी है, बल्कि उसके संकट का समाधान भी बताया गया है। कहा कि हमें फिर से अपनी ज्ञान परंपरा की ओर लौटना पड़ेगा।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वृषभ प्रसाद जैन ने कहा कि पर्यावरण संकट मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आम जन में हमें प्रकृति के प्रति चेतना लानी होगी। कहा कि पहले हमारे घरों में ही हमें ऐसे संस्कार मिलते थे कि हम प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहते थे। लेकिन हमने अपनी प्राप्त परंपरा को ही नष्ट कर दिया। जब से हम उपभोक्तावादी बने तब से हमने प्रकृति को गहरी चोट दी है। प्रकृति हमारे लिए अब सिर्फ उपभोग की वस्तु बनकर रह गयी है। यह मानसिकता बदलनी होगी। तकनीकी शिक्षा के जरिये हम पर्यावरण को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। धन्यवाद प्रोफेसर एचके पालीवाल ने दिया, जबकि संचालन मनीषा ने किया।

पर्यावरण पर भारतीय दृष्टि विषय पर प्रथम सत्र का आयोजन किया गया जिसके मुख्य वक्ता माननीय कुलपति प्रोफेसर प्रदीप कुमार रहे। इस दौरान उन्होंने प्रस्तुति के माध्यम से पर्यावरण संकट की समस्या, परिणाम और उसके समाधान पर प्रकाश डाला। कहा कि मनुष्य ने पिछले कुछ सालों में पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया। जल, जंगल और जमीन को दूषित कर दिया गया। हमने पश्चिमी दर्शन को ऐसा आत्मसात किया कि भारतीय ज्ञान परंपरा को भूल गये। परिणाम ये हुआ कि प्रकृति से नाता टूट गया। उदाहरण देते हुए बताया कि आज हमारी नदियां नालों में बदल गयी हैं, तालाब पाटे जा रहे हैं, कुंए की जगह बोरिंग की जा रही हैं, साफ हवा का मिलना मुश्किल हो गया है। जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रकृति की पूजा का संस्कार दिया गया है। वेद, उपनिषद, पुराण शास्त्र सबमे पर्यावरण को बचाने के लिए विस्तार से लिखा गया है। हमें भारतीय ज्ञान परंपरा की और लौटना पड़ेगा। 

उन्होंने प्रकृति को बचाने का समाधान भी बताया। कहा कि हमें विकास के लिए अपना तरीका बदलना पड़ेगा। नवीनीकृत ऊर्जा को अपनाना होगा। जल प्रबंधन और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, वृहद स्तर पर पौधरोपण, जैविक खाद के जरिये हम बदलाव ला सकते हैं। वहीं, तीसरे सत्र में डॉ सदाचारी सिंह तोमर ने पर्यावरण लिखी पुस्तकों का कार्य, पर्यावरण पत्रक और साहित्य सृजन पर चर्चा की। इसके पहले कार्यक्रम की शुरूआत मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुई। विषय स्थापना न्यास के राष्ट्रीय संयोजक पर्यावरण संजय स्वामी जी ने की। इस मौके पर राजकुमार देवल, विजय कुमार गोस्वामी, डॉ. इंदु चूड़न, गगन शर्मा सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

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