Uttar Pradesh : पूर्वांचल के गांधी उपनाम से मशहूर फ्रीडम फाइटर जयराम वर्मा ने आजादी के लिए संघर्ष किया। देश आजाद होने के बाद उन्होंने पूरा जीवन शिक्षा की अलख जगाने में लगाया। जयराम वर्मा का जन्म 4 फरवरी 1904 को अम्बेडकरनगर (उस वक्त फ़ैजाबाद) के बड़ागांव इब्राहिमपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम नन्हकू वर्मा और माता का नाम नेपाली देवी था। प्राथमिक स्तर की शिक्षा अपने गांव से लेने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। जिले एचटी इंटर कॉलेज टांडा में बतौर शिक्षक कार्य करने लगे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की देश को आजाद कराने के लिए होने वाली बैठक में शामिल होने लगे। इससे नाराज होकर तत्कालीन प्रबंधक ने जयराम वर्मा को शिक्षण कार्य या आजादी की लड़ाई में किसी एक को चुनने को कहा। इस पर उन्होंने शिक्षण कार्य को तत्काल इस्तीफा दे दिया और पूर्णरूप से देश को आजाद कराने में लग गए।
स्वतंत्रत आंदोलन के दौरान जेल आना-जाना लगा रहा
जयराम वर्मा ने कहा, "धरती मां अपने बेटे को पुकार रही है और अब वक्त आ गया है कि सबकुछ छोड़कर देश को आजाद कराने में लगना होगा। 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। सत्याग्रह में कई बार जेल गए। सबसे पहले सत्याग्रह में भाग लेने के आरोप में 3 अप्रैल 1941 को गिरफ्तार किया गया था। तब 3 महीने की कैद और 100 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। दूसरी बार 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में भाग लेने के लिए 11 अगस्त, 1942 को गिरफ्तार किया गया और 11 नवंबर, 1943 को रिहा किया गया था। 21 फरवरी, 1945 को युद्ध के प्रयासों में हस्तक्षेप के आरोप में फिर से गिरफ्तार किया गया और 15 दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया।
पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं मांगी माफ़ी
जब जयराम वर्मा 1942 में वाराणसी जेल में बंद थे तो उनकी पत्नी प्राण देवी का स्वर्गवास हो गया। तत्कालीन जेलर ने कहा कि माफी मांग लो और घर जाकर पत्नी का अंतिम संस्कार करो, लेकिन वर्मा जी ने इससे इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, "जिसे जाना था वः रो चली गई, अब मिट्टी बची है। उसके लिए जेल से छोटकर क्या करूंगा? माफ़ी मांगकर देश का अपमान नहीं कर सकता।" वह महात्मा गांधी का सिद्धांतों का कड़ाई से पालन करते थे। रोजाना चरखा कातना उनकी दिनचर्या में था। वह जब सांसद और मंत्री थे, तब भी चरखा चलाना अनिवार्य था। इसी कारण उन्हें 'पूर्वांचल का गांधी' कहा जाता था।
आजादी के बाद विधायक, सांसद और मंत्री बने
1946 में प्रथम बार बाराबंकी विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध विधायक निर्वाचित हुए। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की पहली विधानसभा के सदस्य थे। उत्तर प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री सम्पूर्णानन्द के साथ जून 1959 से दिसंबर 1960 तक उपमंत्री रहे। मार्च 1962 से फरवरी 1967 तक दो मुख्यमंत्रियों चन्द्रभानु गुप्त और सुचेता कृपलानी के साथ उपमंत्री रहे थे। जब 1967 में चौधरी चरण सिंह कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल बनाया तो जयराम वर्मा ने भी कांग्रेस छोड़ दी थी। जब 1967 में चुनाव जीतकर चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो वर्मा को कैबिनेट मिनिस्टर बनाया था। जब चरण सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो जयराम वर्मा भी मंत्री बने। वह 1946 से 1968 तक और फिर 1970 से 1974 तक लगातार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे। उन्होंने 1975 में कांग्रेस में फिर वापसी की। सातवीं लोकसभा के लिए 1980 में फ़ैजाबाद सीट से चुने गए थे।
राजीव गांधी ने बनाया गवर्नर, कर दिया इंकार
वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें नेशनल सीड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया और गवर्नमेंट फार्म का सभापति मनोनीत किया। वर्ष 1980 के लोकसभा के सामान्य चुनाव में फैजाबाद संसदीय क्षेत्र से सासंद चुने गए थे। दिल्ली में मन नहीं लगा तो वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव लड़ा और पुन: टांडा से विधायक निर्वाचित हो गए। नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो मंत्रिमंडल में नियोजन मंत्री बन गए। इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जयराम वर्मा को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। उन्होंने विधानसभा क्षेत्र टांडा के लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए राज्यपाल के पद को स्वीकार नहीं किया। बोले, "मैं अपने लोगों को छोड़कर दिल्ली में सांसद नहीं रहना चाहता। हिमाचल या किसी दूसरे राज्य में गवर्नर बनना तो बहुत मुश्किल है। हालांकि, वर्ष 1986 में सार्वजनिक उपक्रम एवं सयुंक्त निगम समिति के सभापति बने रहे। बेहद शानदार ढंग से गांधीवादी सिद्धांतों पर जीने वाले विशाल इंसान ने 14 जनवरी 1987 को दुनिया से अलविदा ली।
गांवों में शिक्षा के प्रसार पर बहुत जोर दिया
जयराम वर्मा ने अम्बेडकरनगर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा क्षेत्र में नई शुरुआत की। उन्होंने एक समाज सुधारक के रूप अपनी पहचान बनाई। शिक्षा के लिए क्षेत्रों में उनका योगदान एक मिसाल है। जिले के ग्रामीण इलाकों में कई विद्यालयों की स्थापना उन्होंने की है। जयराम वर्मा बापू स्मारक इंटर कॉलेज नाऊसांडा की स्थापना की। कामता प्रसाद सुंदर लाल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज समेत कई शैक्षणिक संस्थानों के संस्थापक, अध्यक्ष और प्रबंधक रहे थे।