सबने घुटने टेके लेकिन चार साल अंग्रेजों से लोहा लेता रहा अकेला राजा

आज़ादी का अमृत महोत्सव : सबने घुटने टेके लेकिन चार साल अंग्रेजों से लोहा लेता रहा अकेला राजा

सबने घुटने टेके लेकिन चार साल अंग्रेजों से लोहा लेता रहा अकेला राजा

Tricity Today | symbolic

Uttar Pradesh : उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। यहां के बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का शौर्य और पराक्रम अंग्रेजों को भारी पड़ा। इनके सामने अंग्रेजों को कई बार हार का सामना करना पड़ा। हरदोई के माधौगंज कस्बे के पास एक रुइया गढ़ी नाम का गांव है। इस गांव का नाम सुनकर अंग्रेज थरथर कांपते थे। अंग्रेजों ने अवध क्षेत्र में कब्जा करने के बाद गंगा किनारे के क्षेत्र पर कब्जा करने की रणनीति बनाई। अंग्रेज सेना अपनी तोपों के साथ गंगा की तलहटी में आगे बढ़ रही थी। इस दौरान राजा नरपति सिंह के नेतृत्व में रुइया गढ़ी की सेना ने अंग्रेजों पर जोरदार हमला बोला। उस लड़ाई में अंग्रेजी सेना को राजा नरपति सिंह के सैनिकों ने भारी क्षति पहुंचाई थी।

अंग्रेजों ने कई युद्ध लड़े, लेकिन रुइया किला फतह नहीं कर पाए
हरदोई के सिटी मजिस्ट्रेट डॉ. सदानंद गुप्ता ने स्थानीय इतिहास का अध्ययन किया है। वह बताते हैं कि जिला मुख्यालय से 36 किलोमीटर की दूरी पर रुइया गढ़ी गांव है। वहां के लोग आज भी अंग्रेजों से हुई जंग की कहानी सुनाते हैं। किस तरह भारतीयों ने कम संसाधनों के बावजूद ब्रिटिश आर्मी को शिकस्त दी थी। यहां का दुर्ग देश के लिए गौरव का विषय है। हरदोई की जमीन पर अंग्रेजों की शिकस्त की कहानी यहीं से शुरू हुई थी। राजा नरपत सिंह और कानपुर के पेशवा ने अंग्रेजों को घुटनों पर ला दिया था। राजा नरपत सिंह ने कहा था कि उनके जिंदा रहते अंग्रेजी हुकूमत हरदोई का कुछ नहीं बिगाड़ सकती है।

रुइया गढ़ी के सैनिकों ने चार वर्षों तक अंग्रेजों को करारी शिकस्त दी
हरदोई गजेटियर के अनुसार राजा नरपत सिंह ने अंग्रेजों को हरदोई में डेढ़ वर्ष तक घुसने नहीं दिया था। रुइया गढ़ी के सैनिकों ने चार वर्षों तक अंग्रेजों को करारी शिकस्त दी थी। मेरठ और बैरकपुर से शुरू हुई क्रांति की आग 8 जून 1857 को हरदोई पहुंची। उस दिन छापामार युद्ध के दौरान राजा और उनके सैनिकों ने अंग्रेजी फौज की एक बड़ी टुकड़ी को मल्लावां में मौत के घाट उतार दिया था। इस दौरान जिले का डिप्टी कमिश्नर डब्ल्यूसी चैपर हरदोई छोड़कर महफूज ठिकाने की तरफ भाग निकला था। अंग्रेजी फौज ने फिर से राजा नरपत सिंह पर हमला बोला, लेकिन इस बार भी अंग्रेजों को शिकस्त खानी पड़ी थी। 

कम संसाधन के बावजूद एक के बाद एक लड़े लगातार चार युद्ध 
अंग्रेजों ने वापसी की और पहला युद्ध 15 अप्रैल 1858 को दुर्ग पर हुआ। वहीं, दूसरा युद्ध 22 अप्रैल 1858 को सिरसा गांव में हुआ था। 28 अक्टूबर 1858 में रुइया दुर्ग पर तीसरा युद्ध हुआ था और फिर आखिरी युद्ध 9 नवंबर 1858 को मिनौली में हुआ था। इसके बाद जिले के नवाब और राजाओं ने अंग्रेजों की गुलामी फिर से स्वीकार कर ली थी, लेकिन इसके बावजूद नरपति सिंह के करीब डेढ़ साल बाद तक युद्ध जारी रहा था। अंततः नरपति सिंह शहीद हो गए थे। 1857 की आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले राजा नरपत सिंह की याद में इस स्थान पर स्मारक बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष सौरव मिश्रा ने हरदोई के इतिहास पर खासा काम किया है। वह इतिहास अध्ययन में रुचि रखते हैं। उन्होंने कहा, राजा नरपत सिंह की वीरगाथा हरदोई के लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध हुए युद्ध की याद दिलाती है। यह इस बात की भी गवाह है कि उस समय अंग्रेजों को किस तरीके से खदेड़ा गया था, क्योंकि राजा नरपत सिंह का दुर्ग अभेद्य और शौर्य की जीती जागती मिसाल थी, जिसकी कुछ निशानियां आज भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा, आज की युवा पीढ़ी को इनके विषय में जानने की जरूरत है। 

आम और ख़ास की मांग, पर्यटन स्थल घोषित हो रुइया गढ़ी
रुइया गढ़ी स्मारक का निर्माण वर्ष 2000 में तो हो गया था, लेकिन आज भी इस स्थल को पर्यटन स्थल घोषित नहीं किया जा सका है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह सोमवंशी और क्षेत्रीय लोगों के तमाम प्रयासों के चलते इस स्मारक का लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। तमाम लोगों की भावनाएं और विश्वास जुड़ा हुआ है। करीब 100 एकड़ में स्मारक के आसपास हरियाली क्षेत्र, झील और तालाब हैं, जिसके चलते पिछले लंबे समय से इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग की जा रही है। व्यास स्मारक समिति के अध्यक्ष धर्म सिंह सोमवंशी और जिले के लोग इस स्थल को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। अशोक सिंह मुनौरापुर बताते हैं कि क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित करने के लिए कई बार मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह से समिति के पदाधिकारियों ने मुलाकात की थी। तत्कालीन सांसद जयप्रकाश ने भी प्रयास किए। जिसके चलते स्मारक बन गया, लेकिन अभी पर्यटन स्थल बनाने की मांग अधूरी है।

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