आजादी का दीवाना बना विधायक और फिर सन्यासी, पढ़िए बाराबंकी के फ्रीडम फाइटर की अजीब कहानी

आज़ादी का अमृत महोत्सव :  आजादी का दीवाना बना विधायक और फिर सन्यासी, पढ़िए बाराबंकी के फ्रीडम फाइटर की अजीब कहानी

आजादी का दीवाना बना विधायक और फिर सन्यासी, पढ़िए बाराबंकी के फ्रीडम फाइटर की अजीब कहानी

Tricity Today | आज़ादी का अमृत महोत्सव

Uttar Pradesh : ऐसे कई फ्रीडम फाइटर रहे, जिन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष किया और आजादी हासिल करने के बाद देश में सामाजिक परिवर्तन की नींव रखी। ऐसे ही बाराबंकी के पंडित उमाशंकर मिश्र थे। उन्होंने पहले देश को आजादी दिलाने के लिए संघर्ष किया। करीब 24 महीने तक कठोर कारावास की सजा भुगती। देश को आजादी मिली तो विधायक चुने गए। क्षेत्र में ऐसे विकास कार्य किए कि वह आज भी मील के पत्थर हैं। फिर बहुत जल्दी राजनीति से मोहभंग हो गया और सन्यास ले लिया। वह चित्रकूट धाम चले गए। वहां के महंत हो गए। आज भी उनके हजारों शिष्य हैं। पंडित उमाशंकर मिश्र को लोग 'काका जी' और 'प्रेम पुजारी' के नाम से जानते हैं।

उमाशंकर मिश्र हैदरगढ़ सीट से 1952 में विधायक बने
आजादी के बाद साल 1952 में पहली बार देशभर में आम चुनाव करवाए गए थे। उत्तर प्रदेश में गठित पहली विधानसभा में पंडित उमाशंकर मिश्र हैदरगढ़ सीट से विधायक चुने गए। उमाशंकर मिश्र का जन्म सिद्धौर ब्लॉक के ग्राम शेषपुर दामोदर में 14 जनवरी 1910 को हुआ था। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। वर्ष 1941 में अंग्रेजी हुकूमत ने व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण इन्हें एक वर्ष का कठोर कारावास और 100 रुपये अर्थदंड दिया था।

जिसने विकास के कीर्तिमान गढ़े, उसके गांव के लिए रास्ता नहीं
उमाशंकर मिश्र ने नौ अगस्त 1942 से 28 अगस्त 1943 तक चौदह माह तक कठोर कारावास की सजा काटी थी। महात्मा गांधी और कांग्रेस ने देश की आजादी के लिए लड़े गए प्रत्येक संघर्ष में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। पूरे जीवन अविवाहित रहकर देश की सेवा करते रहे। देश की आजादी के बाद पहले आम चुनाव में विधायक चुने जाने पर क्षेत्र में विकास की अलख जगाई। दूसरी तरफ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा उमाशंकर के पैतृक गांव तक पहुंचने के लिए खड़ंजा मार्ग भी नहीं बनाया गया है। उनकी स्मृति के लिए गांव में कोई स्मारक और प्रतीक चिन्ह नहीं बनाया गया है।

चित्रकूट धाम के कामदगिरि तीर्थ स्थल का महंत बने उमाशंकर
9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में 14 माह का कठोर कारावास काटा। जब 1947 में देश आजाद होने के बाद वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश की पहली विधानसभा का गठन हुआ तो उमाशंकर हैदरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। विधायक बनने के बाद उन्होंने हैदरगढ़-रामसनेही घाट के मार्ग पर नैपुरा गांव के पास गोमती नदी पर पुल का निर्माण करवाया। जो आज विकास का प्रतीक है। 1958 में बाबा उमाशंकर का मन राजनीति से उतर गया और वह चित्रकूट चले गए। वहां पर जनसेवा के कार्यों को देखते हुए इन्हें चित्रकूट धाम के कामदगिरि तीर्थ स्थल का महंत बना दिया गया। कामदगिरि चित्रकूट तीर्थ स्थल सबसे प्राचीन धार्मिक स्थल है। ऐसी मान्यता है कि कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। नंगे पैर परिक्रमा लगाते हैं। कामदगिरि के मुख्य देव भगवान कामता नाथ हैं। सन्यास लेने के बाद इनका नाम प्रेम पुजारी दास रखा गया। 21 अक्टूबर 1994 को इनका निधन हो गया।

इंदिरा गांधी का दिया ताम्र पत्र शेषपुर गद्दी के पास मौजूद
उमाशंकर मिश्र के पौत्र और शेषपुर गद्दी के महंत डॉ.अंजनी कुमार मिश्र बताते हैं, "बाबा उमाशंकर के सेवा, समर्पण और त्याग के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सम्मानित करते हुए ताम्र पत्र भेंट किया था। यह आज भी हमारे पास है। बाबा जी स्वतंत्रता संग्राम सैनानी रहे। देश की आजादी के बाद विधायक बने लेकिन वह राजनीती में रम नहीं पाए। उन्होने सन्यास लेकर समाज को दिशा दी। सन्यासी के रूप में छुआछूत, जातिवाद, धर्मिक आडंबर और दहेज प्रथा जैसी बुराइयों के खिलाफ आम आदमी को जागरूक किया।"

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