बलरामपुर के इस सेनानी ने गांधी को दिए थे 6 हजार रुपए, आम आदमी के सामने महाराजा हुए मजबूर

आज़ादी का अमृत महोत्सव : बलरामपुर के इस सेनानी ने गांधी को दिए थे 6 हजार रुपए, आम आदमी के सामने महाराजा हुए मजबूर

बलरामपुर के इस सेनानी ने गांधी को दिए थे 6 हजार रुपए, आम आदमी के सामने महाराजा हुए मजबूर

Tricity Today | आज़ादी का अमृत महोत्सव

Uttar Pradesh : स्वतंत्रता संग्राम में बलरामपुर के सपूतों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। यहां के पांच पांडव उस दौरान खासे मशहूर हुए थे। क्रांतिकारियों के देशप्रेम ने ही महात्मा गांधी को 'असहयोग आंदोलन' के बाद बलरामपुर आने को मजबूर कर दिया था। साथ ही यहां के राजघराने को मजबूर कर दिया था कि अंग्रेजों के खिलाफ जाकर महात्मा गांधी का स्वागत करें। इतना ही नहीं राष्ट्रीय आंदोलन के लिए बलरामपुर के राजपरिवार और आम आदमी ने गांधी को उस जमाने में 6,000 रुपए का योगदान दिया था।

पांच पांडवों ने अंग्रेजों को बरसों तक छकाकर रखा
बात 1920 से 1929 की है। जलियावाला बाग कांड के बाद महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 'असहयोग आंदोलन' का बिगुल फूंक दिया था। 'असहयोग आंदोलन' में बलरामपुर के मौलवी जमा खां, बाबूराम, रामलौटन, चुन्नीलाल और राम प्यारे ने जमकर अंग्रेजों की खिलाफत की। पूरे इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ आम आदमी को लामबंद किया। इनको 'पांच पांडव' के नाम से जाना जाता था। पांडवों को असहयोग आंदोलन के दौरान अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार किया। पीटा और जेल में प्रताड़ना भी दी। मौलवी जमा खां और चुन्नीलाल को सब्जी मंडी से सिटी पैलेस तक अंग्रेजी सैनिकों ने घेराबंदी करके गिरफ्तार किया था। असहयोग आंदोलन के बाद गांधीजी ने देशभ्रमण शुरू किया था। मनकापुर के राजा रघुराज सिंह ने महात्मा गांधी को गोंडा आने का निमंत्रण दिया था। इसकी जानकारी स्वतंत्रता आंदोलन के सिपाही मौलवी अहमद जमा खां और उनके साथियों को हुई। मौलवी साहब भी गांधीजी को बलरामपुर बुलाकर उनका स्वागत करना चाहते थे। उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन के लिए सहयोग राशि देना चाहते थे, लेकिन उनके खुद के पास तो देने की व्यवस्था नहीं थी। ऊपर से राजपरिवार अंग्रेजों के दबाव में था। जब पूरे मुल्ज के राजा, रियासतदार और नवाब गांधी को समर्थन दे रहे थे, तब बलरामपुर में सन्नाटा था। यह बात पांच पांडवों को अखर रही थी।

मौलवी जमा खां और उनके साथियों ने रचा गजब स्वांग
जब कोई बात नहीं बनी तो निराश होकर मौलवी साहब एक दिन चटाई और अन्य सामान लेकर घर से निकल पड़े। रास्ते में लोगों ने उनसे पूछा यह सारा तामझाम लेकर कहां जा रहे हैं। इस पर मौलवी जमा खां ने कहा कि कब्रिस्तान जा रहा हूं। जब शहर के लोग महात्मा गांधी का स्वागत नहीं कर सकते हैं तो कब्रिस्तान में ही बुलाकर उनका स्वागत करेंगे। उनके चारों दोस्तों और बाकी आंदोलनकारियों की मंडली ने इस बात को प्रचारित किया। यह बात बलरामपुर राजदरबार में पहुंच गई। यही मौलवी साहब का मकसद था। महाराजा और महारानी ने अपने तत्कालीन प्रबंधक जसबीर सिंह से गांधी जी के स्वागत की इच्छा व्यक्त की। प्रबंधक ने अंग्रेज गवर्नर से बात की। राजघराने के आग्रह को देखते हुए गवर्नर ने स्वागत की अनुमति दे दी। महाराजा आंदोलन कोष में धन भी देने को भी तैयार हो गए। महात्मा गांधी को बलरामपुर आने का न्यौता दिया गया। उनके स्वागत के लिए यूरोपियन गेस्ट हाउस (वर्तमान में माया होटल) को खद्दर से सजाया गया था। गोंडा रोड पर कुआनों पुल के पास तत्कालीन महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने गांधीजी का स्वागत किया।

उस वक्त बच्चों को स्कूलों में गांधी के बारे में बताया गया
बलरामपुर के रहने वाले 90 वर्ष के तबारक अली ने 2018 में एक समाचार पत्र से बातचीत करते हुए उस घटना की विस्तार से जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि वह उस समय कक्षा पांच में पढ़ते थे। स्कूल में ही बापूजी के आने की जानकारी दी गई थी। पहले उनके आने की अनुमति तत्कालीन अंग्रेज अधिकारियों ने नहीं दी थी। महात्मा गांधी का जिलें में आने का कार्यक्रम पहले नहीं था। गांधी जी का कार्यक्रम गोंडा जिले में लगा था। स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही मौलवी अहमद जमा खां और उनके साथियों को इसकी जानकारी हुई थी। पहले वह लोग गोंडा जा रहे थे। फिर मौलवी साहब ने गांधी जी को बलरामपुर लाने के लिए शहर वासियों से सहयोग मांगा, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। मौलवी साहब ने एक स्वांग रचा और महाराज बलरामपुर के दरबार में यह बात पहुंचाई। तत्कालीन महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह तैयार हो गए थे। तबारक अली के मुताबिक महाराजा ने कहा था कि गांधी जी का जिले में जोरदार स्वागत ही नहीं बल्कि उनको सहयोग में धनराशि भी भेंट की जाएगी। महाराज और महारानी ने महात्मा गांधी जी के स्वागत की कमान स्वयं संभाली थी। महाराज ने चार हजार रुपये और महारानी ने महिलाओं की तरफ से दो हजार रुपये की थैली भेंट की थीं। इसकी चर्चा आज भी लोग करते हैं। 'राष्ट्रीय स्वंतत्रता संघर्ष नामक' किताब में इसका उल्लेख मिलता है।

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