- इंजीनियरों ने विद्युत निगमों के शीर्ष अफसरों पर लगाए कई गंभीर आरोप
- बिजली उत्पादन रुकने की वजह कोयले का भुगतान नहीं होना बताया
- राज्य में बिजली उत्पादन रुका एक्सचेंज से बड़ी कीमत पर बिजली खरीदी
- महज 25 करोड़ रुपये का ईआरपी सॉफ्टवेयर 700 करोड़ में खरीदने का आरोप
- चार, पांच और छह अप्रैल को सामूहिक अवकाश पर रहेंगे प्रदेश के इंजीनियर
- एस्मा लगाने और बल प्रयोग करने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी
Uttar Pradesh News : ऊर्जा निगमों के अभियन्ताओं और जूनियर इंजीनियरों ने उत्तर प्रदेश ऊर्जा निगमों में शिखर प्रबन्धन पर ईआरपी व्यवस्था में अरबों के घोटाले करने का आरोप लगाया है। इंजीनियरों ने इस मामले में सीबीआई से कराने की मांग की है। वहीं, प्रदेशभर में नियमों की अनदेखी करके कार्मियों के विरूद्ध हो रहे उत्पीडन की बात कही है। प्रदेशभर के जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं ने आगामी 4, 5 और 6 अप्रैल को सामूहिक अवकाश पर रहने की घोषणा की है। इससे पूरे राज्य में आम आदमी और उद्योगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
'एस्मा लगाया तो सरकार की गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे'
प्रदेशभर में मंगलवार को जनपद मुख्यालयों और परियोजनाओं पर विरोध सभा करके विद्युत निगमों के अभियन्ताओं ने प्रबन्धन पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है। ऊर्जा निगमों के अभियन्ताओं और जूनियर इंजीनियरों ने अफसरों पर भ्रष्टाचार और भय का वातावरण बनाने का आरोप लगाया। इन लोगों का कहना है कि उनके शान्तिपूर्ण ध्यानाकर्षण कार्यक्रम का दमन करने के लिए ऊर्जा विभागों के प्रबन्धन झूठ बोल रहे हैं। संगठन के पदाधिकारियों केके तेवतिया, आरए कुशवाहा, रोहित कुमार और दीपांशु सहाय ने चेतावनी दी है कि एस्मा और पुलिस बल के जरिये आन्दोलन को दबाने की कोशिश हुई तो उसके गम्भीर परिणाम होंगे।
'बिजली निगम में शीर्ष स्तर पर हुआ करोड़ों का घोटाला'
प्रेस वार्ता में बताया कि ऊर्जा निगमों के प्रबन्धन ईआरपी खरीद और कोयले का समय से भुगतान नहीं कर रहे हैं। जिसकी वजह से राज्य में 20 रुपये प्रति यूनिट तक बिजली खरीद की जा रही है। निगमों की ओर से जारी प्रेस बयान को पूरी तरह झूठ बताते हुए संगठन के पदाधिकारियों ने यह आरोप दोहराया है कि ईआरपी प्रणाली खरीद और बिजली खरीद करने में उच्चस्तर पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। जिस पर पर्दा डालने के लिए प्रबन्धन कर्मचारी संगठनों के शान्तिपूर्ण ध्यानाकर्षण आन्दोलन को एस्मा लगाकर अलोकतांत्रिक ढंग से दमन करना चाहता है।
'सरकार के सामने घोटालों का खुलासा नहीं चाहते अफसर'
जूनियर इंजीनियर संघ के अध्यक्ष जय प्रकाश ने कहा, "उत्तर प्रदेश में प्राइवेट कंपनियों से ऊंचे दामों पर बिजली खरीद की जा रही है। 20 रुपये प्रति यूनिट तक की दर से बिजली की खरीद की गई है। इससे सरकार का करोड़ों रुपया प्राइवेट कंपनियों की जेब में गया है। इस खरीद में बिजली निगमों के शीर्ष अफसरों ने बड़ा घोटाला किया है। ईआरपी प्रणाली खरीदने के नाम पर भी बड़ा घोटाला किया गया है। हम लोगों के शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने की कोशिश की जा रही है। दरअसल, निगमों के शीर्ष अधिकारी इन घोटालों को सरकार और जनता के सामने आने देना नहीं चाहते हैं।"
चार निगमों ने तीन प्राइवेट कम्पनियों को अरबों दिए
संगठन के पदाधिकारियों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति 'जीरो टोलरेन्स' नीति की खुलेआम धज्जियां उड़ाकर अरबों रुपये के इस घोटाले की सीबीआई से उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। घोटाले के दोषी शीर्ष प्रबन्धन पर कठोर कार्यवाही की जाए। संगठन के पदाधिकारियों ने ऊर्जा निगमों के प्रबन्धन की ओर से जारी आदेशों का हवाला देते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन (यूपीपीसीएल) ने बीते 29 दिसम्बर 2018 को एसेन्चर सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को 244.49 करोड रुपये दिए। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने 21 सितम्बर 2019 को एल एण्ड टी इन्फोटेक को 122 करोड रुपये और 1 जनवरी 2021 को ओडिसी कम्प्यूटर्स को 38.49 करोड़ रुपये दिए। उत्तर प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ने बीते 4 दिसंबर को एसेन्चर सोल्यूशन को 5,298 करोड़ रुपये का कार्यादेश जारी किया है। यह कुल धनराशि 457.97 करोड़ रुपये होती है। जिस पर 18 प्रतिशत जीएसटी जोड़ने पर कुल खर्च 511.52 करोड़ रुपये है। जबकि ऊर्जा निगमों के प्रबन्धन ने मात्र 244 करोड़ रुपये का हवाला दिया है, जो कि पूरी तरह असत्य है। इन सभी आदेशों की कॉपी संगठनों के पास है।
संघ ने कहा- घोटाले के दस्तावेज सरकार को सौंपेंगे
जूनियर इंजीनियर संघ के अध्यक्ष जयप्रकाश ने कहा, "पिछले दो-तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश के विद्युत निगमों में भ्रष्टाचार बुरी तरह हावी हुआ है। एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, दूसरी तरफ विद्युत निगमों में खुलेआम चोरी हो रही है। गलत ढंग से सॉफ्टवेयर और ईआरपी सिस्टम खरीदने के लिए प्राइवेट कंपनियों को अरबों रुपए दिए गए हैं। यह बड़ा घोटाला है। इससे जुड़े दस्तावेज हमारे पास उपलब्ध हैं। हम सरकार को यह दस्तावेज देंगे। संघ इस पूरे घोटाले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग करता है। निगमों के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। हमें पता है, हम लोगों के आंदोलन को कुचलने के लिए शीर्ष अधिकारी एस्मा लगाएंगे और पुलिस का सहारा लेंगे। अगर इंजीनियरों पर ज्यादती की गई तो इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे।"
जानबूझकर कोयला खरीद का भुगतान नहीं किया
संगठन के पदाधिकारियों ने बताया कि यह लगभग 511.52 करोड़ रुपए ईआरपी लागू करने के लिए खर्च का प्रारम्भिक आदेश है, जबकि ईआरपी की पूरी प्रणाली लागू होने तक खर्च लगभग 700 करोड़ रुपये पहुंच जायेगा। आगे उन्होंने कहा कि देश के अधिक कर्मचारी और सबसे अधिक विद्युत उपभोक्ता वाले प्रदेश महाराष्ट्र में विद्युत वितरण कम्पनी ने मात्र 25 करोड़ रुपये में ईआरपी प्रणाली खरीदने का आदेश दिया है। जिसके बाद उन्होंने कहा कि उसकी तुलना में उत्तर प्रदेश में 20 गुना से अधिक की धनराशि खर्च की गयी है, जोकि सरासर भ्रष्टाचार है। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाली 4, 5 और 6 अप्रैल को पूरे उत्तर प्रदेश के सभी विद्युतकर्मी अवकाश पर होंगे। उससे होनी वाली हर तरह की परेशानी के जिम्मेदार विद्युतकर्मी नही होंगे।
विद्युत इंजीनियरों ने बताया कि बीते वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में विद्युत उत्पादन निगम के बिजली घरों में कोयले के संकट का मुख्य कारण खरीद का समय से भुगतान न कर पाना है। जिसके लिए शीर्ष ऊर्जा प्रबन्धन सीधे जिम्मेदार है। आगे उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लगातार मुनाफा देने वाली विद्युत उत्पादन कम्पनी है। प्रदेश को सबसे सस्ती बिजली देने वाली कम्पनी है। ऐसे में शीर्ष ऊर्जा प्रबंधन ने कोयले के भुगतान की अदायगी समय नहीं की और मंहगी बिजली 20 रुपए प्रति यूनिट की दर से एनर्जी एक्सचेंज से खरीदी है। यह शीर्ष ऊर्जा प्रबन्धन की विफलता और भ्रष्टाचार है। आपको बता दें कि इस विरोध सभा में इंजीनियर जयप्रकाश, इंजीनियर बीपी सिंह, इंजीनियर एसएम सिंह, इंजीनियर अरबिन्द, इंजीनियर आरएस कुशवाहा सहित तमाम इंजीनियर और अन्य सदस्य मौजूद रहे।