रावण की ससुराल के इस गांव में 166 साल से छाया है मातम, जानना चाहते हैं क्यों

मेरठ से दिलचस्प खबर : रावण की ससुराल के इस गांव में 166 साल से छाया है मातम, जानना चाहते हैं क्यों

रावण की ससुराल के इस गांव में 166 साल से छाया है मातम, जानना चाहते हैं क्यों

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Meerut News : 1857 के गदर की क्रांति धरा मेरठ को दशानन रावण की ससुराल भी कहा जाता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, मेरठ का नाम रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता मयदानव के नाम पर है। मय के कारण ही मेरठ का नाम मयराष्ट्र पड़ा। इसका उल्लेख गजेटियर में भी है। दानवों के अनुरोध पर मय ने अपनी पुत्री मंदोदरी का विवाह रावण से किया। जिला मुख्यालय करीब 20 किलोमीटर दूर एक गांव ऐसा भी है, जहां पिछले 166 सालों से दशहरे का कोई पर्व नहीं मनाया जाता है। इस दिन गांव में पूरे दिन मातम का माहौल रहता है। आइए जानने की कोशिश करते हैं इसके पीछे की वजह...

शहीद क्रांतिकारी के वंशज ने बताया
महान क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 में विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले शहीद क्रांतिकारी धन सिंह कोतवाल के वंशज तश्वीर चपराना ने बताया कि 10 मई 1857 में मेरठ में क्रांति का आरंभ हुआ था। यहां मेरठ और आसपास के जिलों के लोग सदर थाने पहुंचे और कोतवाल धन सिंह के नेतृत्व में जेल को तोड़ दिया था और जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ा लिया था। 

यहीं से फूंका गया था अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल
शहीद क्रांतिकारी के वंशज ने बताया कि यहां आसपास के गांव पांचली, नंगला, घाट, गुमि, गगोल, नूरनगर और लिसाड़ी आदि सभी गांव के क्रांतिकारियों ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था। जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों ने इन क्रांतिकारियों की आवाज दबाने की पुरजोर कोशिश की थी। उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों के दमन के लिए भी प्रयास किया।

गांव के पीपल के पेड़ पर दी गई फांसी
चपराना बताते हैं कि दशहरे का दिन था और उस दिन गांव में बहुत से क्रांतिकारी मौजूद थे। इस बात की खबर अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंच गई थी। उसके बाद अंग्रेज गगोल गांव में सुनियोजित तरीके से पहुंच गए और 9 क्रांतिकारियों को पकड़कर पीपल के पेड़ पर फांसी दे दी गई। इतना ही नहीं, उन्हें कई दिनों तक पेड़ पर ही लटका रहने का भी आदेश दिया था।

सरकारी रिकार्ड में है दर्ज नौ लोगों की फांसी
तश्वीर चपराना ने बताया कि ऐसा करके अंग्रेजों ने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि लोग उनसे डरें। जो भी मेरठ से क्रांति का बिगुल बजाएगा, उसे ऐसे ही फांसी पर लटका दिया जाएगा। इस वजह गांव में दशहरा के दिन कोई उत्साह नहीं रहता है और एक मायूसी सी छाई रहती है। एक साथ इतने क्रांतिकारियों के फांसी पर लटकना सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज है। 

अंग्रेजों ने दिया था निर्मम होने का परिचय
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास विभाग के अध्यक्ष विग्नेश त्यागी ने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जब क्रांति की शुरुआत हुई थी। उस समय अंग्रेजों ने विजयदशमी के ही दिन गगोल गांव के पीपल के पेड़ पर फांसी पर क्रांतिकारियों को लटकाकर अपने निर्मम होने का परिचय दिया था। 

इस दिन नहीं होता कोई शुभ कार्य
इतिहास विभाग के अध्यक्ष ने बताया कि जिन्हें फांसी दी गई थी, उनमें प्रमुख रूप से गगोल गांव के रामसहाय, हिम्मत सिंह, रमन सिंह, हरजीत सिंह, कड़ेरा सिंह, घसीटा सिंह, शिब्बत सिंह, बैरम और दरयाब सिंह शामिल थे। तब से अब तक उस घटना को 166 साल हो चुके हैं। इतिहासकार देवेश शर्मा ने बताते हैं कि इस दिन पूरा गांव गम में डूबा रहता है। पूरे गांव में इस दिन कोई शुभ कार्य भी नहीं होता है।

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