Tricity Today | कल्याण सिंह के साथ पीएम मोदी और मुरली मनोहर जोशी
Kalyan Singh Death : भारतीय राजनीति में हिंदूवादी विचारधारा को प्रबल रूप देने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का शनिवार की देर रात निधन हो गया है। कल्याण सिंह से जुड़े तमाम किस्से और घटनाएं उत्तर प्रदेश के लोगों को याद हैं। उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी घटना अयोध्या मन्दिर विवाद में बाबरी मस्जिद विध्वंस है। 6 दिसंबर 1992 को ढांचा गिरते ही कल्याण सिंह ने खुद इस्तीफा लिखकर दे दिया था। उन्हें जिंदगी में कभी ढांचा गिराने का अफसोस नहीं था। ढांचा गिराने के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने एक किस्सा सुनाया था।
जनसभा के दौरान कल्याण ने बताया था कि 6 दिसंबर 1992 को केंद्रीय गृहमंत्री शंकर राव चव्हाण ने उन्हें फोन किया था। गृहमंत्री बोले, "मुझे सूचना मिली है कि कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं? मैंने उन्हें जवाब दिया कि मेरे पास तो एक कदम आगे की सूचना है कि गुंबद तोड़ना शुरू कर दिया है।" राम मंदिर निर्माण पर 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो एक खबरिया चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "ढांचा ढहाए जाने का मलाल न तो तब था, न अब है। राम मंदिर बनने के फैसले से मैं इतना खुश हूं कि अब मैं चैन से मर पाऊंगा।"
'वहां बाबरी मस्जिद थी, इस पर मुझे ऐतराज है, ढांचे की कीमत मैंने अदा कर दी है"
बाबू कल्याण सिंह ने कई बार अलग-अलग मौकों पर कहा, "मुझे इस बात पर ऐतराज है कि लोग उसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। वो एक ढांचा था। अयोध्या राम का जन्मस्थल है। 6 दिसंबर 1992 को जो घटना हुई, वह पूर्व नियोजित नहीं थी। कोई षड्यंत्र नहीं था। देश में लंबे समय से करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को कुचला गया था। उसकी प्रतिक्रिया में यह स्वत: स्फूर्त विस्फोट था। घटना घटित हो गई तो मैंने जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। मैं किसी और को क्यों कसूरवार ठहराऊं। मैं उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री था। जो हुआ, उसकी मैं पूरी तरह जिम्मेदारी लेता हूं। ढांचा गिर गया तो मैंने उसकी कीमत अदा कर दी। मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। अभी और क्या कोई हमारी जान लेगा? राम मंदिर बनाने की खातिर एक क्या 10 बार सरकार कुर्बान करनी पड़ेगी तो हम तैयार हैं। ये राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न है।"
मस्जिद का ढांचा गिराना राष्ट्रीय शर्म नहीं बल्कि राष्ट्रीय गर्व का विषय है
कल्याण सिंह ने आगे कहा, "बाबरी मस्जिद का ढांचा नहीं बचा, मुझे इस पर कोई गम नहीं है। इस बात का मुझे कोई पश्चाताप नहीं है और न ही कोई दुख है। जो हुआ वह भगवान राम की इच्छा थी। टूटने के बाद लोग कहते हैं कि ये राष्ट्रीय शर्म का विषय है। मैं कहता हूं ये राष्ट्रीय गर्व का विषय है। ढांचा गिरने के बाद मैंने इस्तीफा दे दिया था।" उन्होंने आगे कहा था, "मुझे 6 दिसंबर 1992 को जिला प्रशासन से एक नोट आया। उसमें लिखा था कि ढांचे की सुरक्षा के लिए चार बटालियन हमें मिल गई हैं, लेकिन अयोध्या में वह ढांचे तक नहीं पहुंच पा रही हैं। 3 लाख लोगों की भीड़ ने साकेत महाविद्यालय के पास फोर्स को रोक दिया है। मैंने लिखित में आदेश दिया कि गोली नहीं चलाई जाएं। गोली चलाने के अलावा अन्य उपाय किए जाएं। गोली नहीं चलेगी। देश भर से कारसेवक आए थे। हजारों लोग मारे जाते। मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने एक भी कारसेवक के प्राण नहीं लिए।"
15 अगस्त, 26 जनवरी की तरह 5 अगस्त 2020 भी इतिहास में दर्ज होगा
एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में बाबू कल्याण सिंह ने कहा था, "जब इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें 15 अगस्त, 26 जनवरी की तरह 5 अगस्त 2020 की तारीख भी अमिट हो जाएगी। इस दिन राम मंदिर के लिए भूमिपूजन हुआ। उसी पन्ने में ये भी लिखा जाएगा कि 6 दिसंबर को ढांचा चला गया था। ढांचे के साथ सरकार भी चली गई थी। मेरे जीवन की आकांक्षा थी कि राम मंदिर बने। मंदिर बनते ही मैं बहुत चैन के साथ दुनिया से विदा हो जाऊंगा।" अंततः शनिवार की रात बाबू कल्याण सिंह ने इस दुनिया से विदा ले ली। इसमें कोई दोराय नहीं कि वह भारतीय राजनीति और मन्दिर आंदोलन के इतिहास में अमर रहेंगे।