नूरपुर सीट पर सपा-रालोद गठबंधन हुआ मजबूत, भाजपा को करनी होगी मशक्कत, VIDEO

कौन जीतेगा यूपी : नूरपुर सीट पर सपा-रालोद गठबंधन हुआ मजबूत, भाजपा को करनी होगी मशक्कत, VIDEO

नूरपुर सीट पर सपा-रालोद गठबंधन हुआ मजबूत, भाजपा को करनी होगी मशक्कत, VIDEO

Tricity Today | नूरपुर सीट पर ग्राउंड रिपोर्टिंग

कौन जीतेगा यूपी! आज हम आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बिजनौर जिले में नूरपुर विधानसभा सीट के वोटरों की नब्ज टटोलने का प्रयास करेंगे। सबसे पहले हम आपको बता दें, यह विधानसभा क्षेत्र परिसीमन आयोग की सिफारिशों के चलते बनता और बिगड़ता रहा है। पहली बार 1967 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। केवल दो चुनाव करवाए गए और उसके बाद खत्म कर दी गई। अब वर्ष 2008 में एक बार फिर परिसीमन आयोग ने इस सीट का गठन किया है। जिसके बाद वर्ष 2012 और 2017 में यहां चुनाव करवाया गया। इन दोनों चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह ने जीत हासिल की, लेकिन दुर्भाग्यवश 2018 में एक सड़क दुर्घटना के दौरान लोकेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई। लिहाजा, यहां उपचुनाव करवाया गया और समाजवादी पार्टी ने सीट पर कब्जा कर लिया।



अगर इस सीट के समीकरण की बात करें तो यहां जाट, सैनी, ठाकुर, अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं का बोलबाला है। लोकेंद्र सिंह लोकप्रिय नेता थे। उन्हें लगभग हर बिरादरी का समर्थन मिलता था। जिसकी बदौलत वह यहां से दो बार विधायक चुने गए थे। उपचुनाव में भाजपा ने अवनीश सिंह पर दांव लगाया लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए। पहले आपको वर्ष 2017 में हुए चुनाव का परिणाम बताते हैं। उस वक्त सीट पर मतदाताओं की संख्या 3,03,478 थी। इनमें से लोकेंद्र सिंह को 79,172 वोट मिले थे। समाजवादी पार्टी के नईम उल हसन को 66,436 वोट मिले थे। बहुजन समाज पार्टी के गोहर इकबाल 45,902 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। आप सहज रूप से अंदाजा लगा सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को विरोधी मतदाताओं में विभाजन का सीधा फायदा मिला।

अब विधायक लोकेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद 2018 में हुए उपचुनाव का परिणाम समझिए। इस बार भाजपा उम्मीदवार अवनीश सिंह को 89,213 वोट मिले और समाजवादी पार्टी के नईम उल हसन को 94,875 वोट मिले। कुल मिलाकर परिणाम बदल गया। दरअसल, उपचुनाव में अल्पसंख्यक वोटर एकतरफा समाजवादी पार्टी को मिले।

अब अगर आने वाले विधानसभा चुनाव की बात करें तो माहौल लगभग उपचुनाव जैसा ही नजर आता है, बल्कि इस बार जाट वोटरों पर किसान आंदोलन के प्रभाव है और सपा-रालोद गठबंधन के साथ नजर आ रहे हैं। बसपा और कांग्रेस इस बार लड़ाई से बाहर दिख रही हैं। कुल मिलाकर सीधी टक्कर भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच होने की संभावना है।

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