नजीबाबाद सीट पर जिसे मुसलमान चाहेंगे उसे मिलेगी जीत, VIDEO

कौन जीतेगा यूपी : नजीबाबाद सीट पर जिसे मुसलमान चाहेंगे उसे मिलेगी जीत, VIDEO

नजीबाबाद सीट पर जिसे मुसलमान चाहेंगे उसे मिलेगी जीत, VIDEO

Tricity Today | ग्राउंड रिपोर्टिंग

कौन जीतेगा यूपी! इस सिलसिले में आज हम आपको बिजनौर जिले में लेकर आए हैं। सबसे पहले नजीबाबाद विधानसभा सीट का दौरा करेंगे। नजीबाबाद में फिलहाल समाजवादी पार्टी काबिज है और हाजी तसलीम अहमद यहां से विधायक हैं। वर्ष 2012 में हाजी तस्लीम अहमद ने इस सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर कामयाबी हासिल की थी। 2017 के चुनाव से ऐन पहले उन्होंने पार्टी बदल दी और समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी से राजीव कुमार अग्रवाल, बहुजन समाज पार्टी से जमील अहमद और राष्ट्रीय लोकदल से लीना सिंघल ने चुनाव लड़ा था।



हाजी तसलीम अहमद को 81,082 वोट मिले थे। राजीव कुमार अग्रवाल को 79,080 वोट मिले थे। इस तरह महज 2000 वोटों के मामूली अंतर से हाजी तसलीम अहमद यह बाजी जीत गए थे। बहुजन समाज पार्टी को 45,070 और राष्ट्रीय लोकदल को केवल 3,587 वोट मिले थे। इस परिणाम को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछली बार मुसलमान मतदाताओं में अच्छा-खासा विभाजन तसलीम अहमद और जमील अहमद के बीच हुआ था।

अब अगर आने वाले विधानसभा चुनाव की बात करें तो नजीबाबाद विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद दलित, सैनी, ठाकुर, ब्राह्मण और वैश्य जातियों से ताल्लुक रखने वाले वोटर हैं। खास बात यह है कि इस विधानसभा सीट का पूरा गणित अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं पर टिका है। इस बार मुसलमान मतदाता पूरी तरह एकजुट नजर आ रहा है। मुस्लिम वोटर बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस के प्रत्याशी से विभाजित होना मुश्किल है। शायद यही वजह रही कि जब हमने यहां के विधायक तस्लीम अहमद से बात की तो उन्होंने साफतौर पर कहा, "आप मेरे भविष्य का अनुमान इलाके के वोटरों से बात करके लगा सकते हैं।"

अगर प्रत्याशियों की बात करें तो समाजवादी पार्टी की ओर से मौजूदा विधायक तस्लीम अहमद का मैदान में उतरना तय है। भारतीय जनता पार्टी से पूर्व प्रत्याशी राजीव अग्रवाल और कई अन्य चेहरे दावेदारी कर रहे हैं। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है। कुल मिलाकर इस सीट पर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है। बड़ी बात यह है कि पिछली बार की तरह बहुजन समाज पार्टी इस मर्तबा त्रिकोणीय संघर्ष में खड़ी नजर नहीं आती है।

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