Chitrakoot : चित्रकूट में मां मंदाकिनी नामक एक नदी है। यह वही नदी है, जिस पर ऋषि मुनि तपस्या किया करते थे और इस नदी में आकर स्नान करते थे। यह वही नदी है, जिसकी परछाई आज भी प्रभु राम की देखी जाती है। जिसकी छाया आज भी प्रभु राम की कलर से मिलती करती है। शाम के समय इस नदी का पानी सांवला हो जाता है।
शाम 7:00 बजे होती है आरती
जी हां! हम बात कर रहे हैं चित्रकूट के राम घाट पर बहती मां मंदाकिनी नदी के महत्व की। इस नदी का महत्व इसलिए ज्यादा हो जाता है, क्योंकि इस नदी पर प्रतिदिन त्रेतायुग से शुरू आरती आज तक होती है। उसका नाम है गंगा आरती और इस गंगा आरती का आयोजन त्रेतायुग से हुआ है। ऋषि-मुनियों ने गंगा आरती की शुरुआत की थी और आज इसी आरती को भव्य रूप से मनाया जाता है। इसका आयोजन प्रतिदिन शाम को 7:00 बजे रामघाट में होता है।
इस नदी पर प्रभु राम को बाबा तुलसी ने देखा था
प्रभु राम की तपोस्थली चित्रकूट का यह रामघाट इस बात की गवाही देता है कि प्रभु राम ने साढे 11 वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे और यह वही जगह है, जहां पर कलयुग में प्रभु राम को बाबा तुलसी ने देखा था। यानी कि प्रभु राम के दर्शन बाबा तुलसी को कलयुग में हुए थे। यह करीब 400 साल पुराना वाक्य है। जब प्रभु राम ने कलयुग में बाबा तुलसी को दर्शन दिए और आज उसी गंगा आरती का भव्य रूप मनाया जाता है। समय बदला आरती और सुंदर होती चली गई।
आज भी 'गंगा आरती का महत्त्व'
यह वही रूप है, जब त्रेता युग में ऋषि मुनि यहां पर तप किया करते थे और इसी नदी में स्नान कर अपनी सभी मनोकामना को पूरा करते थे। इसी धारणा से श्रद्धालु की टोली कई किलोमीटर की दूरी तय करके चित्रकूट के रामघाट में पहुंचते हैं और सच्चे मन से जो भी भक्त गंगा आरती पर आता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही वजह है प्रतिदिन यहां भक्त इकठ्ठा हो कर गंगा आरती में शामिल होते है और अपनी मन चाही मुराद पाते है।