Bulandshahr : बुलंदशहर की जिला पंचायत चेयरमैन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जिला पंचायत सदस्य उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं। उनके खिलाफ वार्ड संख्या -45 की जिला पंचायत सदस्य दुलारी देवी विपक्ष में आ गई हैं। दुलारी देवी का कहना है कि जिला पंचायत चेयरमैन डॉक्टर अंतुल तेवतिया विकास कार्यों में मनमानी कर रही हैं।
क्या है आरोप
दुलारी देवी का कहना है कि जिला पंचायत चेयरमैन ने अपने करीबी सदस्यों के क्षेत्र में विकास कार्य करवाए हैं और बाकी इलाकों में मनमानी की जा रही है। इसी को लेकर जिला पंचायत चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा।
"मेरे पर लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद"
वहीं दूसरी ओर इस मामले में जिला पंचायत चेयरमैन डॉ.अंतुल तेवतिया का कहना है कि उनके ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं। विकास कार्य वितरण में लगाए गए सभी आरोप निराधार है। केवल एक सदस्य उनके ऊपर दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है। बुलंदशहर पंचायत के सभी सदस्य उनके साथ है और उनसे संतुष्ट हैं।
कौन हैं अंतुल तेवतिया
अंतुल तेवतिया बुलंदशहर में गुलावठी कस्बे की रहने वाली हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी हुई है। उनके पिता चौधरी राजेंद्र सिंह आरएसएस के विभाग प्रचारक थे। अंतुल तेवतिया की मां भी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। अंतुल की उम्र 35 वर्ष है और वह एमबीबीएस एमएस डॉक्टर हैं। गुलावठी कस्बे में ही उनका प्राइवेट अस्पताल है। पति अनीश तेवतिया मेडिकल बिजनेस से जुड़े हुए हैं। उनके दुबई और आर्मेनिया में प्राइवेट हॉस्पिटल हैं।
बुलंदशहर जिला पंचायत वेस्ट यूपी की सबसे बड़ी जिला पंचायत
बुलंदशहर जिला पंचायत पश्चिम उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जिला पंचायत है। यहां 52 सदस्य हैं। इनमें से भारतीय जनता पार्टी को केवल 10 जिला पंचायत सदस्य जिताने में कामयाबी मिल पाई थी। समाजवादी पार्टी के 11 सदस्य हैं और राष्ट्रीय लोकदल को 6 सदस्य जिताने में सफलता मिली थी। इस तरह सपा-रालोद गठबंधन के पास 17 वोट थीं। बड़ी बात यह है कि 25 जिला पंचायत सदस्य निर्दलीय हैं। अध्यक्ष पद के लिए 27 सदस्यों का समर्थन जरूरी था। सपा-रालोद गठबंधन को केवल 10 सदस्यों के समर्थन की दरकार थी। जबकि भाजपा को बहुमत तक पहुंचने के लिए 17 उम्मीदवार चाहिए थे। भाजपा ने लगभग सभी निर्दलीय जिला पंचायत सदस्यों को अपने पाले में खींच लिया। जिसके चलते समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के पास बहुमत नहीं रह गया था।