Noida/ Ayodhya : कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है। शास्त्रों और वेद पुराणों के पन्नों में दर्ज एक त्रेता युग की एक घटना को कलियुग में दोहराने की तैयारी की जा रही है। यह घटना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के काल यानि त्रेता युग से जुड़ी है। रावण के वध और लंका पर विजय के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौटने की तैयारी करने लगे, तब लंका के राजा विभीषण ने पुष्पक विमान से जाने का अनुरोध किया। प्रभु ने उनके आग्रह को स्वीकार किया और पुष्पक विमान से अयोध्या पहुंचे। दिलचस्प है कि भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में त्रेता युग के बाद अब कलियुग में विमान उतारने और उड़ाने की तैयारी की जा रही है।
वचन के पालन के लिए स्वीकार किया विभीषण का आग्रह
पिता के वचन को पूरा करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने 14 वर्षों के लिए वनगमन किया। भरत नहीं चाहते थे कि उनके बड़े भाई राम वनवास काटें। आखिर, भरत ने कहा कि यदि वे 14 वर्ष पूरे होने के अगले दिन यदि अयोध्या नहीं लौटे तो वह अपना देह त्याग देंगे। तब श्रीराम ने भरत को वचन दिया था कि वह तय समय पर अयोध्या लौट आएंगे। लंका में रावण के वध और विभीषण के राज्याभिषेक के बाद उन्हें अयोध्या लौटना था। जिस दिन श्रीराम अयोध्या के लिए कूच करने वाले थे, उसी दिन वनवास खत्म हो रहा था। वह पैदल तय समय पर अयोध्या नहीं पहुंच सकते थे। इसलिए उन्होंने महाराज विभीषण का आग्रह स्वीकार किया और पुष्पक विमान से अयोध्या की धरती पर उतरे।
करिश्माई था पुष्पक विमान
पुष्पक विमान हिन्दू पौराणिक महाकाव्य रामायण में वर्णित वायु वाहन था। इसमें लंका का राजा रावण आवागमन किया करता था। इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि इसी विमान से रावण ने माता सीता हरण किया था। लंका में विजयी होने के बाद श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, लंका के नवघोषित राजा विभीषण के अलावा बड़ी संख्या में लोगों को अयोध्या आना था। तब प्रभु को लगा कि इतने लोग इस विमान में कैसे सवार हो सकते हैं। उनकी आशंका को समझकर विभीषण ने कहा, प्रभु ये करिश्माई विमान है। इसमें अनगिनत लोग बैठ सकते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि इस पुष्पक विमान की खासियत थी कि उसमें चाहे जितने लोग सवार हो जाएं, एक सीट खाली रहती थी। एक सीट खाली रहने के पीछे के कारणों में कहा गया कि भक्त हनुमान प्रभु के बराबर में नहीं बैठते थे। उनका स्थान प्रभु के चरणों में था। इसलिए उनकी सीट हमेशा खाली रहती थी।
पुष्पक विमान की खासियत
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, पुष्पक विमान मोर जैसी आकृति का आकाशचारी विमान था, जो अग्नि-वायु की समन्वयी ऊर्जा से चलता था। इसकी गति तीव्र थी और चालक की इच्छानुसार इसे किसी भी दिशा में गतिशील रखा जा सकता था। इसे छोटा-बड़ा भी किया जा सकता था। यह सभी ऋतुओं में आरामदायक यानी वातानुकूलित था। इसमें स्वर्ण खंभ मणिनिर्मित दरवाजे, मणि-स्वर्णमय सीढ़ियां, वेदियां (आसन) गुप्त गृह, अट्टालिकाएं (कैबिन) तथा नीलम से निर्मित सिंहासन (कुर्सियां) थे। अनेक प्रकार के चित्र एवं जालियों से यह सुसज्जित था। यह दिन और रात दोनों समय गतिमान रहने में समर्थ था।
इतिहास दोहराने की तैयारी
त्रेता युग में श्रीलंका पर विजय पताका फहराने के बाद प्रभु श्रीराम रावण के पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे थे। अब कलियुग में अयोध्या का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। प्रभु के दर्शन के लिए देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और सैलानियों के लिए अयोध्या में श्रीराम इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया जा रहा है। इसका 90 फीसदी काम पूरा हो गया है। श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण भी एयरपोर्ट के साथ ही पूरा हो जाएगा। संभावना है कि श्रीराम मंदिर और श्रीराम एयरपोर्ट का उद्घाटन एक साथ या कुछ ही दिनों के अंतर में हो जाएगा। वह दिन भी दूर नहीं है। उम्मीद है कि साल 2024 के पहले महीने में ही अयोध्या की धरती पर नए युग का 'पुष्पक विमान' लैंड कर जाएगा। इसी के साथ इतिहास के पन्नों में वह दिन सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो जाएगा। यानि भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में त्रेता युग का इतिहास कलियुग में दोहराया जाएगा।