वोकल फॉर लोकल के मंत्र को सिद्ध करेंगी बांस की राखियां
राखियां पूरे प्रदेश में पहली बार गोरखपुर में बनाई जा रही हैं
प्रायोगिक तौर पर एक लाख रुपये की राखियां बनवाने का लक्ष्य
Gorakhpur : इस रक्षाबंधन भाइयों की कलाई पर बांस से बनी बेहद ख़ास राखियां सजेंगी। यह राखियां ना केवल त्यौहार की खुशियां बढ़ाएंगी बल्कि उत्तर प्रदेश में पिछड़े इलाकों की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएंगी। पीएम मोदी और सीएम योगी के 'वोकल फॉर लोकल' के मंत्र को सिद्ध करने में गोरखपुर का वन विभाग आगे आया है। एक ख़ास पहल करते हुए बांस की राखियां बनवाई जा रही हैं। नेशनल बम्बू मिशन के तहत कैम्पियरगंज के लक्ष्मीपुर गांव में स्थापित सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) के स्वयंसेवी समूह की महिलाएं इस रक्षाबंधन के लिए एक लाख रुपये की कीमत की राखियां बनाकर बेचेंगी। यह एक पायलट प्रोजेक्ट है। सफलता मिली तो इसे कुटीर उद्योग का रूप दिया जाएगा।
कैम्पियरगंज के लक्ष्मीपुर में महिला समूह बनाया गया
महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना केंद्र और प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में शुमार है। इसके लिए सरकार कई तरह के कार्यक्रमों व योजनाओं से महिलाओं को जोड़ रही है। ऐसी ही एक योजना नेशनल बम्बू मिशन है। यह मिशन ग्रामीण महिलाओं को बांस के उत्पाद बनाने हुए मार्केटिंग करने के लिए प्रेरित करता है। उन्हें रोजगार का मंच उपलब्ध करा रहा है। नेशनल बम्बू मिशन के तहत कैम्पियरगंज के लक्ष्मीपुर में एक सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) की स्थापना की गई है। यहां महिलाओं को प्रशिक्षण देकर बांस के खिलौने, गिफ्ट आइटम्स और ज्वेलरी आदि बनाने में पारंगत किया गया है। अब सीएफसी के स्वयंसेवी समूह से जुड़ी महिलाओं के बांस से बने उत्पादों को बेहतर बाजार मिलने लगा है।
बांस की राखियां बनाने का अभिनव प्रयोग शुरू हुआ
गोरखपुर के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) विकास यादव बताते हैं, "मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रायः कुछ नया करने को प्रेरित करते हैं। नवाचार को लेकर यह ख्याल आया। बम्बू मिशन के तहत बांस की ईको फ्रेंडली राखियां बनवाई जा सकती हैं। इससे लोगों को पर्यावरण के अनुकूल राखियों का विकल्प मिलेगा और बनाने वाली महिलाओं की आमदनी बढ़ेगी।" समूह की महिलाओं से बात हुई तो वह डीएफओ के विचार पर अमल करने को तैयार हो गईं। उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया गया और शुरू हो गया बांस की राखियों को बनाने का सिलसिला।
महिलाओं ने राखियों के डिजाइन खुद तैयार किए
महिलाओं को बांस के सजावटी सामान बनाने का प्रशिक्षण तो मिला है लेकिन प्रदेश में पहली बार बन रही बांस की राखियों के डिजाइन उन्होंने खुद तैयार किए हैं। लक्ष्मीपुर सीएफसी पर राखी बनाने के काम में जुटीं बिंदु देवी, राजमती, झिनकी, मीना, मीरा, शीला, संजू और अंजू बताती हैं कि मोबाइल पर राखियों के डिजाइन देखे। उनमें कुछ परिवर्तन करके बांस से बनने वाली राखियों के लिए डिजाइन तैयार किए। दर्जन भर से अधिक राखियों के डिजाइन तैयार किए गए हैं। उसके अनुरूप लगातार काम जारी है। महिलाओं के उत्साह को देखते हुए इस रक्षाबंधन के पहले तक कुल एक लाख रुपये की कीमत की राखियों को बिक्री के लिए उपलब्ध कराने की तैयारी है।
पूरे साल वन विभाग बांस की राखियां प्रदर्शित करेगा
हेरिटेज फाउंडेशन गोरखपुर की संरक्षिका डॉ.अनिता अग्रवाल और हेरिटेज एवियंस की मल्लिका मिश्रा ने गोरखपुर वन प्रभाग की इस पहल की सराहना की। उन्होंने कहा, "औद्योगिक प्रतिष्ठानों से अपील है कि वे अपनी सीएसआर गतिविधियों से जोड़कर इन प्रयासों को और बढ़ावा दें।" डीएफओ विकास यादव बताते हैं कि बांस की राखियां चिड़ियाघर में नेशनल बम्बू मिशन के स्टाल पर प्रदर्शनी व बिक्री के लिए रखी जाएंगी। इसके साथ ही 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस पर योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल सेमिनार में इसकी प्रदर्शनी लगाई जाएगी।
प्रतिमाह 30-35 हजार रुपये कमा रहीं महिलाएं
डीएफओ ने बताया कि चिड़ियाघर के स्टाल में ये राखियां रक्षाबंधन के बाद भी अवलोकन के लिए उपलब्ध रहेंगी, ताकि अगले साल के पर्व के पूर्व तक इसकी खासी मांग उपलब्ध हो सके। बांस की राखियों के बाजार में आने से पहले बांस के गहनें, श्रृंगारदान, नाइटलैंप, परदे, नेकलेस, ईयर रिंग, फ्लावर स्टैंड और खिलौने आदि बनाने में पूरी दक्षता हासिल कर चुकी महिलाओं का समूह चिड़ियाघर के आउटलेट से प्रतिमाह 30-35 हजार रुपये की कमाई कर रहा है।